क्या घर का काम सिर्फ औरतों की ज़िम्मेदारी है?.

इस समय में पूरे भारत में एक भयंकर महामारी फैली हुई है – जो कोविड 19 यानी कोरोना वायरस है। इस बीमारी की चपेट में लगभग पूरा देश है। प्रतिदिन पीड़ितों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।  

इस बीमारी से बचने के लिए पूरे देश में 22 मार्च से लॉकडाऊन चला हुआ है। जिस वजह से प्रत्येक व्यक्ति, महिलाओं व बच्चों, सब को अपने घरों में रहने के लिए बोला गया है। इस महामारी के चलते महिलाओं पर बहुत ज़्यादा प्रभाव पड़ा है। आज के समय में महिलाओं के प्रतिदिन के जो कार्य होते थे, उन से कई गुना ज़्यादा का बोझ अब महिलाओं पर है। इस बीमारी से पहले तो विवाहित महिलाओं को ज्यादातर काम सुबह और शाम होता था। क्योंकि सुबह महिलाएं जल्दी उठकर अपने बच्चों और पति और परिवार के बाकी सदस्यों के लिए खाना बनाती थी, बच्चों को तैयार करके उन्हें स्कूल भेजती थी। उसी समय उनके पति भी किसी न किसी काम के लिए घर से बाहर जाते थे। जिस वजह से महिलाओं के पास दोपहर के समय में तो कुछ समय उनके लिए होता था। जिस दौरान वे अपने स्वास्थ्य और शारीरिक थकान को कम कर सकती थीं। 

लेकिन अब इस बीमारी के समय में महिलाओं का काम कई गुना बढ़ गया है।अब महिलाओं को घरों पर पूरे परिवार के लिए पूरा दिन और रात तक काम करना पड़ता है। इन दिनों में एक महिला पर काम का बोझ और भी बड़ गया है। वो सुबह उठकर सबके लिए सब की मनपसंद का खाना बनाती है, सब को खिलाती है, एक महिला सुबह से लेकर शाम तक बस अपने परिवार के लिए जीती है। अपने पति और बच्चों के कहने से पहले उनकी हर जरूरत को पूरा करती है। फिर चाहे वो उनके लिए खाना बनाने में भी उनकी मनपसंद खाने की चीजें बनाना ही क्यों न हो। उनके लिए नहाने की तैयारी करना, पूरे परिवार के कपड़े धोना, घर की सफाई करना और बर्तन साफ करना तो पूरे दिन का काम हो जाता है, हर किसी की छोटी-मोटी ज़रूरतों को पूरा करना। इन सब के साथ एक महिला का दिन शुरु होता है और खत्म होता है। 

इस दौरान जो महिला को परेशानी होती है उसे तो वह भूल जाती है। चाहे इसके लिए उसे अपने स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ करना भी पड़े, जिसकी वजह से वे काफी परेशान रहती हैं, लेकिन अभी भी वो परिवार जिसके लिए एक महिला जीती-मरती है, उसके लिए उसके परिवार वाले उसे कभी भी नहीं समझ पाते। बल्कि महिला को उसके परिवार से यह सुनने को मिलता है कि पूरा दिन घर ही तो रहती है तो क्या करती है? रोटी बनाना, कपड़े धोना, अपने छोटे से घर में झाड़ू-पोछा करना क्या बड़ी बात है, ये तो तुम महिलाओं का काम है, इसे करना ही पड़ेगा। अगर ये काम महिला नहीं करेगी तो कौन करेगा? महिला को घर पर ही रहना चाहिए। उन्हें कभी भी पुरूषों की बराबरी करने के लिए चैलेंज नहीं करना चाहिए। जो महिलाएं घरों से बाहर निकलती हैं उनके पति मर्द नहीं होते हैं, जो महिला की कमाई खाते हैं। कोई महिला कैसे घर चला सकती है?  जो महिला अपने घर से बाहर जाती है तो वह बदचलन होती है। महिलाओं पर तो पुरूषों का अधिकार है खासतौर से उसके पति का वो जब चाहे उसके साथ संबंध बना सकता है। फिर वो चाहे किसी महिला के साथ ज़बरदस्ती ही क्यों ना हो। इस तरह के काफी अच्छे शब्दों से महिलाओं की तारीफ की जाती है जिससे महिला को मानसिक परेशानी तो होती ही है उन्हें शारीरिक परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। 

एक महिला ये सब इसलिए सुनती है क्योंकि वो अपने परिवार से अत्यंत प्रेम करती है। जिस वजह से वो पूरा जीवन, अपने परिवार को खुश रखने के लिए लगी रहती हैं। इस तरह समाज में पुरूषों को महिलाओं को समझना बहुत जरूरी है, जिसके लिए महिलाओं को समय देना जरूरी है। परिवार में महिलाओं को यह भी महसूस हो कि जिस तरह वह अपने परिवार में पति और बच्चों से प्रेम करती है, उतना ही उसके पति और बच्चे उससे भी करते हैं। पुरूषों को महिलाओं की सिर्फ मदद नहीं लेकिन पूरा बराबरी का साथ देना चाहिए, घर के सभी कार्य मिलजुल कर करने चाहिए क्योंकि परिवार किसी एक व्यक्ति से नहीं बना, न ही परिवार को संभालने के ज़िम्मेदारी किसी एक सदस्य की है। काम, आराम और सम्मान पर सबका बराबर का हक़ है। महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए साथ की ज़रूरत है ताकि महिला भी अपनी पहचान बना पाए।

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