लॉक डाउन में भी दिख रहे हैं मर्दानगी के साइड इफेक्ट्स.

अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले रोहतक शहर में 16 दिनों में लॉक डाउन के बावजूद तेज़ रफ्तार  हादसों में 8 लोगों की मौत हो गई। अगर पूरे देश के आंकड़े सामने आए तो यह संख्या सैंकड़ों में पहुँचेगी। अभी भी नौजवान लड़के 3-3, 4-4 के झुंड में बाइकों पर फ़र्राटे भर रहे हैं। ऐसे ही लॉक डाउन के दौरान जब औद्योगिक शहरों से मजदूर निकाल दिए गए और वे पैदल ही अपने गाँवों-घरों को चल निकले, तब भी सड़क पर तेज़ रफ्तार गाड़ियों द्वारा सैंकड़ों मजदूर कुचल दिए गए।

ऐसे में जब कोरोना के कहर के कारण लॉक डाउन की वजह से सभी घरों में बंद हैं और हमारे प्रधानमंत्री ने भी जब लक्ष्मण रेखा का उदाहरण दिया तो यह फिर एक बार एक तरह से औरतों को संपूर्ण रूप से घरों के अंदर बंद कर गया। क्योंकि औरतों को हमेशा ही घर की मर्यादा, घूंघट, बुर्के, चारदीवारी के अंदर बंद रहने की सीख दी जाती है। रामायण की लड़ाई का ठीकरा लक्ष्मण रेखा के उल्लंघन के नाम पर हमेशा सीता के ऊपर ही फोड़ा जाता रहा है। उसके बावजूद भी सीता को ही अग्निपरीक्षा देकर अपने सतीत्व को प्रमाणित करना पड़ा। इसलिए औरतें लॉक डाउन के दौरान घरों में ही हैं। लेकिन जेंडर और मर्दानगी के चलते लड़कों और पुरुषों को हमेशा ही घर के बाहर के रोल दिए जाते रहे हैं जिस कारण अब वे घरों में नहीं बैठ पा रहे। इस दौरान भी वे अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल सड़कों पर घूम रहे हैं।

मर्दों को लगता है कि कोरोना जैसा वायरस भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। चंडीगढ़ में लॉक डाउन के दौरान बाहर घूमने के लिए युवाओं द्वारा अजीबो गरीब कारण गिनाए गए, जैसे उन्हें सुखना लेक घूमना है, एक विशेष बेकरी से ही केक लाना है या अपनी माता के लिए एक विशेष दुकान से ही जूस लाना है। इसी तरह खाने के दो पैकेट बांटने के नाम पर उन्हें पास हासिल कर घूमना है। कुछ लोग अभी भी जन्मदिन और दारू पार्टी कर रहे हैं। युवा जनता दल यूनाइटेड बिहार के प्रदेश उपाध्यक्ष को दारू पार्टी का वीडियो वायरल होने के बाद उनके पद से हटाया गया है।

नकारात्मक मर्दानगी हमेशा लड़कों और पुरुषों को अपने आपको साबित करने का दबाव पैदा करती है। इसलिए वे मर्दानगी साबित करने के लिए जोखिम वाले फ़िजूल काम करते हैं। नौजवानों की नजर में एक असली मर्द वही माना जाता है जो ज़्यादा से ज़्यादा जोखिम उठाकर खतरनाक काम करके दिखाए। दिमाग में मर्दानगी वायरस के चलते वे अपने भावों को शेयर नहीं कर पाते, इसलिए उन्हें अकेलेपन से डर लगता है और ग्रुप में अपनी मर्दानगी के चक्कर में झूठी शान बघारते हैं। इसलिए भी अब उनके लिए घरों में बैठना मुश्किल हो रहा है। लेकिन कोरोना वायरस न तो लिंग देखकर हमला करता है और न ही मर्दानगी देखकर। इसलिए मेरी सभी नौजवान व पुरुष दोस्तों से अपील है कि अपनी व अपने परिवार वालों की जिंदगी का ध्यान रखते हुए लॉक डाउन का पालन करें व घर में ही रहे। असली मर्दानगी अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए हिंसा या जोखिम में नहीं है बल्कि एक अच्छा इंसान बनने में है।

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