हजारीबाग जिला में ब्रेकथ्रू ने वर्ष २०१२ के जनवरी माह से बाल विवाह उन्मूलन हेतू कार्यक्रम प्रारंभ किया. लगभग दो वर्षों के सफ़र में हजारीबाग में जो भी उपलब्धि रही उसमे जिले के एक वरिष्ठ युवा अधिकारी के योगदानों को भुलाया नहीं जा सकता. यह युवा अधिकारी कठोर परिश्रम, निष्ठा, लगन और ईमानदारी पूर्वक काम करने वालों को बहुत महत्व देते थे और खुलकर उन्हें सहयोग करते थे. इस युवा अधिकारी का नाम है डा. मनीष रंजन जो भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है. 2002 बैच के UPSC Topper रहे इस अधिकारी ने समाजशास्त्र विषय में हिन्दू कॉलेज, दिल्ली स्नातक फिर IRMA से ग्रामीण विकास में प्रबंधन की पढाई की है और बाद में PhD भी किया. डा. मनीष रंजन उस समय हजारीबाग के उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी हुआ करते थे. अपने कार्यक्रम में सहयोग के लिए मुझे इनसे मिलना था पर इस काम में मुझे चार महीने इसलिए लगे क्यूंकि साथ काम करने वाले नामी गिरामी एन.जी.ओ. के साथियों ने मुझे यह कह कर दिग्भ्रमित कर रखा था कि DC साहब बहुत सख्त हैं, उन्हें ग्रामीण विकास, एन.जी.ओ. और शोध प्रविधियो की हर बारीकियां पता है, वे बहुत सवाल करते हैं जिनका कभी कभी जवाब भी देना मुश्किल हो जाता है. साथियों ने कहा की जब जाना हो पूरी तैयारी कर के ही जाना. प्रोजेक्ट और ब्रेकथ्रू के लिए नया होने के कारण मेरे अन्दर नकारात्मक विचार उत्पन्न हो रहे थे कि पता नहीं सरकारी अधिकारियों से कोई सहयोग मिल भी पाएगा या नहीं…. मेरे अन्दर एक अनजाने डर ने घर कर लिया था और मेरे हौसले पस्त हो चले थे…. फिर एक दिन जून २०१२ की तपती दोपहरी में मैंने इनसे मिलने की ठान ली. खूब तैयारी की, आंकड़े रटे… अभ्यास किया और जिले के उपायुक्त महोदय से मिलने पहुँच गया. साहब से मिलने का उद्देश्य और अपना तथा संस्था का नाम एक पुर्जे में लिख कर मिलने की अर्जी लगा कर उपायुक्त कक्ष के बाहर आगंतुकों के लिए बने बैठकखाने में बैठ गया. थोड़ी देर में मुझे बुलाया गया और मैं एक साँस में अपने कार्यक्रम के बारे में उन्हें बताने लगा. उपायुक्त मेरी पूरी बात गंभीरता से सुनते रहे और जब मैं पूरी बात कह चूका तो उन्होंने मुस्कुरा कर मेरी ओर देखते हुए मुझे बैठने का इशारा किया. अब मेरी हालत ख़राब होने लगी कि पता नहीं अब कौन सा सवाल करेंगे, उसका जवाब दे भी पाउँगा की नहीं.
कुछ हीं सेकेंडों में कई तरह के विचार एक दम से मेरे ज़ेहन में घुमने लगे. पर अनुमानों और अटकलों के विपरीत उन्होंने मुझसे पूछा क्या आप फिल्ड से आ रहे हैं? मैंने कहा कि हाँ, पदमा ब्लाक से सीधे आ रहा हूँ. उन्होंने पूछा चाय पीना पसंद करेंगे? मैंने असमंजसता की की वज़ह से ना कह दिया पर उन्होंने कहा की थोड़ी देर पहले वो भी क्षेत्र भ्रमण से लौटे हैं. अगर मैं चाय पीना पसंद करूँ तो वे भी साथ चाय पी लेंगे. मैं पूर्व में भी कई जिलों में कार्य के दौरान उपायुक्तों से मिलता रहा था पर किसी उपायुक्त के कक्ष में बैठ कर चाय पिने का यह पहला मौका था सो मैंने हाँ में अपनी गर्दन हिला कर चाय पिने पर अपनी मौन स्वीकृति दे दी. चाय लाने के लिए आदेश हुआ और बातों का सिलसिला प्रारंभ हुआ. उपायुक्त महोदय ने ब्रेकथ्रू के वेबसाइट के बाबत पूछा और लॉग इन किया. गंभीरता से वेबसाइट देखते रहे… उनकी उँगलियाँ माउस पर रुक रुक कर चल रही थीं और अचानक आश्चर्य मिश्रित भाव से पूछ बैठे “बेल बजाओ” ब्रेकथ्रू का अभियान था !!! उन्होंने बताया की घरेलू हिंसा के खिलाफ़ इस मुहीम के बारे में उन्होंने सुना है. चाय आ गई थी और हमलोगों के बीच बातों का सिलसिला चलता रहा जैसे किस-किस ब्लाक के किस-किस पंचायत में काम शुरू करना है, जिला प्रशासन से किस तरह का सहयोग चाहिए वगैरह-वगैरह. अंत में उन्होंने मेरा मोबाइल न. लिया और अपना पर्सनल और विभागीय मोबाइल न. भी देते हुए कहा की कभी भी कोई मदद की ज़रुरत हो तो सीधे कॉल करें.
एक दिन में इतनी उपलब्धि से मेरा मन पुलकित हो उठा और मैं सोचने लगा की ‘किन्तु-परन्तु’ में मैंने बहुत वक़्त बर्बाद कर दिया. इसके बाद उपायुक्त महोदय से मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू हो गया और एक दिन मैंने उनसे कार्यक्रम से सम्बंधित सभी विभाग के प्रधान को कार्यक्रम में सहयोग हेतू एक पत्र लिखने का आग्रह किया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया और उन्होंने कहा जैसा भी निर्देश निकलवाना है आप उसकी एक ड्राफ्ट तैयार करवा लें. मैं उसे देख-समझ कर जारी कर दूंगा. मैंने स्टेट मैनेजर से बात की. स्टेट मैनेजर ने कहा कि चूँकि यह सरकारी पत्र है इसलिए सोच समझ कर इसे निकलवाना उचित होगा. इसलिए उपायुक्त के साथ बैठक के लिए पूर्वानुमति ली गई. बैठक में स्टेट मैनेजर भी शामिल हुए तथा इसके कुछ दिनों बाद सरकारी निर्देश जारी हो गया.
पुनः कुछ दिनों के पश्चात्, एक दिन उपायुक्त महोदय ने मुझसे फ़ोन करके पूछा की कार्यक्रम कैसा चल रहा है ? कोई परेशानी तो नहीं? ब्लाक में कैसा सहयोग मिल रहा है ? इत्यादि. मेरे अन्दर उत्साह और कुछ अलग करने की भावना प्रबल होने लगी. मैं हर हाल में अपने कार्यक्रम को सफलता के साथ समुदाय में स्थापित करना चाहता था और मेरे अन्दर भी सामाजिक बदलाव की अपेक्षा प्रबल थी जिसमे सरकार के हर विभाग का सहयोग मिलने लगा. अपने कार्यक्रम की हर गतिविधि और उपलब्धियों से सम्बंधित बातें मैं नियमित उपायुक्त महोदय से साझा करने लगा.
इस बीच अक्टूबर २०१२ आ गया जब श्री लोकेश जैन द्वारा निर्देशित थिएटर शो चंदा पुकारे की फिल्ड टेस्टिंग हजारीबाग से शुरू की गई. उपायुक्त को थिएटर शो द्वारा प्रशिक्षण की जानकारी मैंने पहले ही दी थी और उन्होंने श्री लोकेश जैन से मिलने की इच्छा प्रकट की थी. उन्होंने मुझे बताया था की कॉलेज के दिनों में उनका भी रंग मंच से लगाव था और वे दिल्ली की एक्ट वन संस्था से कुछ दिनों तक जुड़े थे और वहीँ उन्होंने श्री लोकेश जैन के बारे में किसी से सुना था.
थिएटर शो द्वारा स्वयं सहायता समूहों का प्रशिक्षण समाप्त होते ही एक दिन मैं लोकेश जैन के साथ उपायुक्त महोदय से मिलने उनके कार्यालय की ओर चल पड़ा पर रास्ते में एक राजनितिक पार्टी की सभा के कारण उमड़ी भीड़ की वज़ह से सड़क जाम हो गयी और हमलोग लगभग दो घंटे देर से हजारीबाग पहुंचे. शाम के सात बज रहे थे. समाहरणालय के कर्मचारी अधिकारी जा चुके थे और समाहरणालय परिसर में सन्नाटा पसरा था पर उपायुक्त महोदय अपने कक्ष में बैठे सिर्फ हमारा इंतज़ार कर रहे थे. यह घटना भी आश्चर्यचकित करने वाली थी कि कैसे जिले का सबसे बड़ा अधिकारी कार्यालय अवधी समाप्त होने के बाद भी दो घंटे तक सिर्फ हमारा इंतज़ार कर सकते हैं !!! मुलाकात हुई और चाय की चुस्कियों के साथ ज़ुल्म सहने वालों का थिएटर पद्धति पर लम्बी बातचीत हुई.
दिसम्बर २०१२ में थिएटर शो के माध्यम से पुनः स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के बीच प्रशिक्षण का आयोजन किया जाना था पर इस बार मैंने धमाकेदार शुरुआत करने की सोची और पहुँच गया उपायुक्त महोदय के पास. उनसे सहयोग माँगा और मैंने कहा की इस कार्यक्रम का उद्घाटन आपको करना है. वे सहर्ष इसके लिए तैयार हो गए और तय हुआ की कार्यक्रम का शुभारम्भ 18 दिसम्बर 2012 को सदर प्रखण्ड के बहेरी पंचायत के आंबेडकर नगर से सदर प्रमुख और पंचायत के मुखिया की उपस्थिति में होगा. तैयारी प्रारंभ हुई और निर्धारित समय पर उपायुक्त डा. मनीष रंजन एक और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री राहुल सिन्हा, जो तत्कालीन समाहर्ता सह दंडाधिकारी थे, के साथ पहुंचे और उन्होंने कार्यक्रम का उद्घाटन किया. कार्यक्रम के पश्चात् उन्होंने मुझसे नाटक की स्क्रिप्ट मांगी और बोले की अभी तो समय का आभाव है इसे पढ़ कर एक-दो दिन में वापस कर दूंगा. मैंने उन्हें हस्त लिखित मूल स्क्रिप्ट दे दी. कार्यक्रम बहुत ही अच्छा रहा और लोगों की भागीदारी भी अपेक्षा के अनुकूल थी.
उद्घाटन के दुसरे दिन 19 दिसम्बर 2012 को अहले सुबह उपायुक्त महोदय ने फ़ोन पर पूछा की आज कहाँ-कहाँ कार्यक्रम है? मैंने उन्हें बताया की आज टाटीझरिया के डूमर पंचायत में प्रशिक्षण का आयोजन है. (बताते चलें कि टाटीझरिया हजारीबाग का एक नक्सल प्रभावित क्षेत्र है जो बड़ी नक्सली वारदातों के लिए कुख्यात रहा है.) एक बार फिर मेरे आश्चर्यचकित और विस्मित होने की बारी थी, क्योंकि अब जो होने वाला था उसकी मिसाल पूरे भारतवर्ष में नहीं है. यहाँ ब्रेकथ्रू एक इतिहास रचने जा रहा था…. उन्होंने मुझसे कहा कि वे प्रशिक्षण में सिर्फ शामिल ही नहीं होना चाहते बल्कि चंदा के किरदार को अदा कर उस किरदार को परानुभूति पूर्वक महसूस कर लोगों को सन्देश भी देना पसंद करेंगे पर इस सूचना को तकनिकी कारणों से गुप्त रखना है. मैनें ऐसा ही किया और योजना की भनक साथ चल रहे लोकेश जैन को भी नहीं होने दी और उन्हें इस बाबत उपायुक्त महोदय के आगमन के आधा घंटा पहले बताया. उपायुक्त आए और नक्सल प्रभावित गांव में या यूँ कहें की नक्सलियों के मांद में घुसकर उन्होंने चंदा का किरदार अदा कर सबको चौंका दिया. कार्यक्रम के पश्चात् उन्होंने बताया कि ऐसा उन्होंने इसलिए किया जिससे और अधिकारी प्रेरित हो सकें और ज्यादा से ज्यादा कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें. और हुआ भी वही. विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर, कई अधिकारी, रिसर्चर, शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों, मुखिया, पंचायत के जन प्रतिनिधियों का थिएटर शो के दौरान फोरम थिएटर में आने का सिलसिला शुरू हो गया. मिडिया ने भी इसे खूब तवज्जो दी और कार्यक्रम ने सफलता के नए आयाम रचे.
इसके बाद डा. मनीष रंजन ब्रेकथ्रू द्वारा आयोजित लगभग हर कार्यक्रम में शिरकत करते, सफल क्रियान्वयन के लिए सुझाव देते या यूँ कहें की कार्यक्रम की सफलता के लिए वे मुझसे कहीं ज्यादा सोचने लगे थे और मेरी समझ से, वे अपने आप को वे एक तरह से ब्रेकथ्रू से जोड़ कर देखने लगे थे. उनमे IAS अधिकारी वाली कोई बात नहीं थी और वे एक ग्रामीणों के बीच अधिकारी कम, एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में ज्यादा दिखते थे पर अपने विभाग के लिए उनकी छवि एक कड़क अनुशासन प्रिय अफसर के रूप में ही थी. कार्यक्रम के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में मेरा उनसे ऐसा रिश्ता रहा की शायद ही कोई ऐसा सप्ताह रहा हो जब उनसे मिलना न हुआ हो. समाहरणालय से लेकर DC कोठी तक उनके दरवाज़े हर समय मेरे और कार्यक्रम से सम्बंधित समस्याओं के समाधान के लिए खुले रहते थे क्योंकि उन्हें जन समुदाय की भागीदारी से एक बहुत बड़े सामाजिक बदलाव की अपेक्षा थी. कार्यक्रम सम्बंधित उनके सुझाव और मार्गदर्शन मेरे बहुत काम आए जिससे मैं हर समय जोश से भरा रहता था और इस तरह हजारीबाग में ब्रेकथ्रू ने बहुत कम समय में अपने आप को कार्यक्रम के साथ साथ स्थापित कर लिया.
आज भी जब कभी मेरा मन उदास होता है मुझे उनकी कही प्रेरक बातें बरबस याद आ जाती हैं जो मुझमे उर्जा और नए जोश भर देती है जिससे मैं सफलता के मार्ग पर पुनः अग्रसर रहता हूँ. मैं उन्हें एक वास्तविक टीम लीडर के रूप में देखता हूँ. वे हमेशा कहते थे कि हर काम टीम वर्क के तहत करना चाहिए क्योंकि सामाजिक बदलाव एक बहुत ज़टिल प्रक्रिया है. परस्पर सहयोग और सटीक रणनीति से आप सफलता के बहुत निकट पहुँच जाते हैं और सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया में एक निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं.
उपरोक्त बातों के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ की हजारीबाग जिले में ब्रेकथ्रू के सफ़र में डा. मनीष रंजन के योगदानों को भूलना उचित नहीं होगा.