सोनीपत ज़िला एजुकेशन हब के नाम से भी जाना जाता है जिसका कारण यहाँ सरकारी और गैर सरकारी कॉलेज का होना और उसके साथ साथ टेक्निकल एवम मैनेजमेंट के भी कॉलेज का भरमार होना है। और अगर प्राइवेट स्कूल की बात करे तो वो भी छोटे स्कूल से लेकर फाइव स्टार स्कूल तक ,गाँव की गली चोराहों से लेकर शहर तक कुकरमुत्ते की तरह फैले हुए है । और कोचिंग सेंटर भी इस तरीके से खोले हुए है की गिनती करने लगे तो मुश्किल होगा ।
अब बात करते हैं हम सोनीपत के कॉलेजेस की जो मुख्य रूप से 11 से 12 सरकारी और बड़ी संस्थाओं के द्वारा चलाये जा रहे हैं । उनमे जो बात सामने आती है वो ये है की कोई भी कॉलेज सहशिक्षा वाला नही है, जहाँ पर लडके और लडकियाँ दोनों एक साथ पढ़ते हो । या तो वे पूरी तरह से गर्ल्स कॉलेज हैं या फिर बॉयज कॉलेज है । ये बात असामान्य नहीं है और हमारे समाज की सोच को भी इस तरह ये कॉलेज ढल देते है की उन्हें भी लगता है की ये सही है और लडकियाँ जयादा सुरक्षित रहेंगी । और लडकों का अलग कॉलेज होने से वो अपनी हुडदंगी व्ही कर लेंगे । शिक्षा के क्षेत्र में इस तरह की पृथकता को बढ़ावा देना कहीं न कहीं इसी समाज को खतरे की और ले जाना का काम है ।
इनके अलावा हम प्राइवेट कॉलेज की बात करते है या स्कूल और कोचिंग सेंटर की बात लेते है इसमें भी एक बात साफ़ नज़र आएगी वो ये है की इनमे सहशिक्षा का नाम तो है पर सही मायनो में सहशिक्षा सिखाई ही नही जाती है । किसी भी प्राइवेट स्कूल में शुरुआत से ही लडको की अलग लाइन और लडकियों की अलग लाइन बना देते है । पेन, कॉपी, पेन्सिल मांगने के अलावा शायद ही कभी कोई आपस में ज़्यादा बात कर पाते हो वरना ये भी कभी कभार ही होता होगा । आपस में पढाई को लेकर या अपनी रुचियों को लेकर कोई बात नही करता होगा । और यही सिलसिला फिर कॉलेज में आगे बढ़ता चला जाता है । वहाँ पर भी वही लाइन्स लडकों की अलग और लडकियों की अलग कॉलेजेस में ज़्यादा हँस बोल कर कोई बात कर लेता है तो लगता है किसी ने गुनाह कर दिया है । साथ में उठ बैठ तक नही सकते । अन्दर ही अन्दर मन में इतनी पाबंदियाँ बना देता है ये समाज कि शिक्षा में भी लडके लडकी को साथ पढने, बात करने की, अनुमति तक नही दे पाता है ।
और यहाँ तक की जो टीचर शिक्षा देते है उनके बारे में विशेष बात ये होती है की वो भी उन्ही दायरों में बंधे रहते है। या तोह वोह उनसे बहार निकलना नही चाहते या डरते है शुरुआत करने के लिए ! क्योंकि उनका जो कार्यक्षेत्र है वहाँ पर वे लोग भी महिला और पुरुष में ही बंटे हुए हैं; ना की एक बेहतर शिक्षक या शिक्षिका के रूप में ! पुरुषों के लिए अलग स्टाफ रूम है और महिलाओं के लिए अलग स्टाफ रूम है ! तो इस पर गहन रूप से सोचने की बात है की एक तरफ तो हम शिक्षा में गुणवत्ता की बात करते हैं और दूसरी तरफ इस तरह के अलगाववाद को बदावा दे रहे है ! जो महिलाओं और पुरषों को बांटने का काम कर रहा है ! जिसका नतीजा ये निकल कर आता है की दोनों आपस में कभी एक दुसरे के मन की भावनाओ को समझ ही नही पाते और उसके आभाव में उनके मन में एक दुसरे को लेकर कई गलत धारणाये बना लेते है ! और उसका परिणाम समाज में नकारत्मक रूप से दिखाई पड़ता है !
क्या इस पर हमे गहरे से सोचने की जरूरत नही है की आखिरकार शिक्षा ही एक ऐसा साधन के जिसके द्वारा हम बदलाव लेकर आ सकते है और समाज में एक नया परिवर्तन लेकर आया जा सकता है ! अगर शिक्षा नीतियों में ही इस तरह की खामियां रहेगी तो हम आने वाले कल को बहतर कैसे कर सकते हैं ? शिक्षा में इस तरह की खामियों को दूर करने पर क्या विचार करना ज़रूरी है ?
ओम नमो नमः।
इस विषय को बड़े ही महत्वपूर्ण शास्त्रीय नैतिक सामाजिक व्यक्ति के विकास के व्हिस्कीदृष्टि से देखना होगा ।
दृष्टि से देखें लेखा जाए तो एक आयु तक बच्चों और बछिया में लड़के लड़कियों में कोई भेदभाव नहीं किया जाना ठीक होता है ।
जब से 10 बादके आयुष शुरुआत हो जाती है तो एक दूसरे के प्रति अनावश्यक आकर्षण भिन्न-भिन्न विचार कल्पना इच्छाए मनाना शुरू हो जाता है और सम प्रेरकों के चलते व्यक्तियों का बाल को काआचरण आश्रय उनके हाथ में नहीं रहता मे नही रहता तीव्र भावनाओं की प्रेरणा से वह ऐसा कुछ कर बैठते हैं जो उनके जीवन में एक प्रतिकूल संस्कार स्थापित करता है। उनके जीवन में सफलता और चारित्र्य संयम इत्यादि के संस्थापना के लिए उनका भिन्न भिन्न स्थानों में सीखना उपयुक्त निश्चित रूप से होता है हमारे भारतवर्ष में वही परंपरा रही पूरे विश्व में भी देखेतो शिक्षण में बैचलर योनिकी ब्रम्हचर्य का एक विशेष स्थान पाया जाता है 25 साल ब्रम्हचर्य का पालन करने के लिए जो भी व्यक्ति अंग्रेजों की भी पदवी प्राप्त करता है उसको बैचलर ऑफ आर्ट्स कहा जाता है या साइंस कहा जाता है या कॉमर्स कहा जाता है उसका अर्थ बैचलर यानि कि ब्रह्मचारी तो उस को प्रोत्साहन करने के लिए उसकी हानि होने न देने के लिए भिन्न भिन्न स्थानों पर अलग पढ़ाई उपयुक्त होती है यह एक काल परीक्षित सिद्धांत है उसके विपरीत आचरण के प्रतिकूल परिणाम हम आज समाज में देख रहे हैं लड़कों का असंयमित आचरण दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है हम प्रतिदिन या प्रतिघंटे होने वाले बलात्कारों की संख्या को गिनने में बढ़ा गर्व अनुभव करते हैं किंतु उसका कारण खोजने की कोई कष्ट नहीं लेते।
हम शास्त्र को माने या तो परिणाम अंकुश झेले सहे।
नमो नमः