हमारे समाज मे अभी तक महिलाएं और लड़कियाँ कुछ अधिकारों से वंचित हैं। इन अधिकारों में से एक है संपत्ति का अधिकार जिसका कानून भी बन चुका है लेकिन फिर भी माता पिता बेटियों को अपने संपत्ति का हिस्सेदार नहीं मानते। अगर कोई लड़की या महिला इसके विपरीत जाकर अपना अधिकार लेने की कोशिश करती है तो उसे इसका दंड अपने रिश्ते नाते टूटने के रूप में मिलता है। संपत्ति में हिस्सा मांगने का परिणाम एक औरत को पुरी उमर भुगतना पड़ता है।
हमारे सविंधान के अनुसार हम सभी को कुछ अधिकार प्राप्त हैं। उन सभी के बारे मे आप सब को भी पता है। क्या आप सब को पूरा विश्वास है कि हमारे समाज मे सब लोग इनका प्रयोग समान तरीके से कर पाते हैं? जब किसी महिला के साथ कुछ गलत होता है तो हम में से कितने लोग उन्हें इन अधिकारों का प्रयोग करने के लिए कहते हैं? बल्कि उस महिला को जगह जगह डाट ही सुनने को मिलती रहती है।
अगर मैं बात करूँ प्राचीन काल की तो हमारे समाज मे महिलाओ की स्थिति काफी दयनीय रही है। उनको घर की चार दीवारी तक ही सीमित रहना पड़ता था।उन्हे पढने तक का अधिकार भी नही था और न ही घर से बाहर जाने की आज़ादी थी। अगर मैं बात करूँ आज के समाज की तो आज भी ये अधिकार केवल लड़कों या पुरुषों के लिये ही हैं। मैं आपको कुछ उदाहरण देता हूँ । मैने अपने आस पड़ोस मे बहुत सी बाते लड़के के जन्म होने पर सुनी हैं:
१. “इस घर का वारिस आ गया।”
२. “मेरा नाम लेने वाला आ गया।”
३. “मेरी संपत्ति का मालिक आ गया।”
४. “मेरा वंश चलाने वाला आ गया।”
अगर कोई महिला या लड़की अपने माता पिता की संपत्ति मे किसी भी तरीके से हिस्सा ले लेती है तो हम उससे सारे रिश्ते नाते तोड़ लेते हैं। मैंने भाइयों को कई बार अपने बहनों को ये कहते सुना है कि बहन अगर तुने अपने भात (एक रिवाज़ जिसमे भाई बहन के बच्चों की शादी में मदद करता है जो की उपहार, कपड़ों और पैसों के रूप में हो सकता है) भरवाने हैं तो अपना हिस्सा मेरे नाम ही रहने दे। नही तो तू अपने भात वगैरह और किसी से भरवा लेना। तेरा हमारा रिश्ता खत्म। क्योंकि भाई पर भात भरने की ज़िम्मेदारी होती है, कई औरतें संपत्ति में अपना हिस्सा नहीं मांगती। या तोह कई बार भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करके महिलाओं को संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है।
कई बार मैने माता पिता को अपनी बेटी को शादी मे ये कहते सुना है कि बेटी तेरा घर तेरा ससुराल है। लेकिन जब बात संपत्ति की करते हैं तो अगर वो अपना भाग ले लेती है तो वह रिश्ते नाते तोड लेते हैं और उसके बाद जब वह महिला हिस्सा अपने ससुराल ले जाती है तो ससुराल वाले वो हिस्सा लेकर उसे घर से निकाल देते हैं। अब मेरा यह सवाल है कि अब आप बताइये कि उस लड़की या महिला का अब कौन सा घर है?
आज भी बहुत से लोग लड़की को पढ़ाने के लिये मना करते हैं और कहते है कि इसकी पढ़ाई पर पैसा लगाना बरबाद है क्योंकि इसका फायदा ससुराल वालो को मिलेगा। हमे इसका कोई फायदा नही है।
मैं मानता हूँ कि हर माता पिता की संपत्ति में उनकी लड़की का भाग होना चाहिये। लड़की को उसकी संपत्ति से वंचित करना, उनसे उनका हक़ छीनना है। इस संघर्ष का मुद्दा संपत्ति नहीं बल्कि समानता है। हमारे समाज में जो यह सोच है जो लड़कियों को लड़कों से कम समझता है और लड़कियों के जीवन के महत्त्व पर भी लगता है, हमें इस सोच को बदलना होगा।