अगर मेरी ज़िंदगी के बारे में बात करें तो मेरा जीवन भी सभी लड़कियों जैसा साधारण सा था। मैं एक मुस्लिम समुदाय से हूँ। मेरे पापा एक छोटा सा बिज़नेस करते हैं। मेरी अम्मी गृहिणी हैं, वो ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं लेकिन हमारे प्रोजेक्ट्स वगैरह में तो काफ़ी मदद करती हैं। हम तीन बहने हैं। मैं सबसे छोटी और पढ़ने में थोड़ा सा, दोनों अप्पियों से आगे हूँ। इसलिए मेरे पापा को मुझसे कुछ ज़्यादा उम्मीदें हैं।
आमतौर पर भारत में अभी भी लड़कियों को ज़्यादा पढ़ने की छूट नहीं है, क्योंकि उनके माँ-बाप को समाज का काफ़ी दबाव होता है कि कल को कहीं ऊँच-नीच न हो जाए, तो उनका खानदान बदनाम हो जाएगा। लेकिन मुस्लिम परिवार से होने के बावज़ूद, हमारे घर में पढ़ाई-लिखाई को लेकर कोई रोक-टोक नहीं हैं। हमारे पापा हम तीनों बहनों को अच्छे मुक़ाम पर देखना चाहते हैं ताकि भविष्य में हमें किसी चीज़ के लिए मोहताज न होना पड़े। वो ये सब बातें हमसे बोलते तो नहीं, लेकिन उनकी आँखों में साफ़ झलकता है।
ये तो हो गया एक छोटा सा परिचय। अब बात करते हैं, मेरे बारे में। मैं डरती बहुत थी, हर चीज़ में, बोलने में, लोगों के सामने अपनी सोच रखने में, दूसरों को जल्दी मना करने में। और कई सारी कमियाँ थीं मेरे में, जिनसे शायद अब मैं धीरे-धीरे उबर रहीं हूँ। मैं अपने पापा से बहुत प्यार करती हूँ। इसलिए उनके ख़िलाफ़ या कुछ ग़लत नहीं करना चाहतीं हूँ। स्कूल में ही थी कि मुझे मेरे एक सहपाठी ने प्रोपोज़ कर दिया। ऐसे वो बस मेरा एक अच्छा दोस्त था। लेकिन फ़िर भी मैं उसको न नहीं कह पायी। बस इसलिए कि कहीं उसको बुरा न लग जाए। बहुत बेवकूफ़ थी मैं। फ़िर क्या, बाद में अकल आयी थोड़ी-बहुत और हिम्मत करके उसको मना कर दिया।
फ़िर सोचें थे कि ये सब नहीं करना है- बिल्कुल नहीं। ये सब मुझे अपने लक्ष्य से दूर ले जाएगा। कॉलेज में दाख़िला लेते वक़्त भी सोचा था कि अच्छे से सिर्फ़ पढ़ाई में ध्यान लगाना है। लेकिन एक बार में बात समझ कहाँ आती है, वो भी मुझ जैसी बेवकूफ़ और ड़रपोक को।
ज़िंदगी का खेल भी निराला है। मेरे साथ फ़िर वही हुआ। एक बार चोट खाने के बावज़ूद फ़िर से आ गए रिलेशनशिप में। इतना सोचकर आयी थी, सब बर्बाद। एक बार घर में मम्मी के साथ अकेली बैठी थी। कई तरह की बातें हुई। माँ-बाप ज़िंदगी की सीख बताते ही हैं, कि जिंदगी कैसे जीना चाहिए। दिल में बहुत तकलीफ़ हुई उनकी बातें सुनकर। ऐसा लगा कि हम उनसे धोखा कर रहें हैं। उनकी दी गयी छूट का ग़लत फ़ायदा उठा रहें हैं। वो मेरे बारे में क्या सोचते हैं और हम बाहर आकर कुछ और ही कर रहे हैं।
जिस रिश्ते में थोड़ी भी आशा न हो, उसमें रहना ग़लत है। कहते हैं न, सबको अपने हिस्से का सुख समय पर ही मिलता है। इसका जब समय आएगा, तब देखेंगे। लेकिन अभी जिस चीज़ का समय है, वो करना है वरना वो दोबारा नहीं आएगा।अगर अभी मैंने अपनी पढ़ाई या करियर पर पूरा ध्यान नहीं दिया तो शायद … शायद मेरे जिंदगी में आने वाली ख़ुशी को मैं ख़ुद ही बर्बाद कर दूँ।
इसलिए मैंने सोचा, बहुत सोचा कि ख़ुद में कुछ बदलाव लाना होगा। दस लोगों के बीच में ख़ुद की आवाज़ में ताक़त लाना होगा। पहले ख़ुद के लिए और परिवार के लिए कुछ करना होगा। ताकि समाज में लोग आदर से देखें। और एक ही ग़लती तीसरी बार नहीं करूँ। अगर कुछ हमारी इच्छा के ख़िलाफ़ है – तो है, फ़िर दूसरा कुछ भी सोचे मेरे बारे में।
यही है मेरी जिंदगी की कहानी। ज़्यादा रोचक तो नहीं पर जो भी है, मेरे लिए बहुत बड़ी सीख मिली है मुझे। जिंदगी के जितने भी पड़ाव है उनमें क्रम से आगे बढ़ते रहना चाहिए, वरना बाद में हम खुद नहीं समझ पाते कि हम खुश क्यों नहीं हैं?
Note: 2018 में ब्रेकथ्रू ने हज़ारीबाग और लखनऊ में सोशल मीडिया स्किल्स पर वर्कशॉप्स आयोजित किये थे। इन वर्कशॉप्स में एक वर्कशॉप ब्लॉग लेखन पर केंद्रित था। यह ब्लॉग पोस्ट इस वर्कशॉप का परिणाम है।