आज मैं हरियाणा में लाकडाउन के चलते महिलाओं की स्थिति का मूल्यांकन अपनी नज़र से इस प्रकार देख रहा हूँ। हरियाणा के लिए कहावत है – देशां में देश हरियाणा, जहां दुध दही का खाणा। लेकिन अगर पैनी नज़र से देखा जाए तो यह दुध दही का खाणा तो युवाओं तथा पुरुषों के लिए बना है, लड़कियों तथा महिलाओं की अगर बात करे तो उनके लिए तो घर का काम और घर की चारदिवारी ही बनी है। महिलाएं घर का कार्य करे और चारदिवारी में रहे, अगर पशुओं का गोबर कूड़ा बाहर डालना है तो घूंघट करके चलें या फिर ढाटा मारकर चलें, लड़कियों को अगर बाहर जाना है तो सिर पर चुन्नी डालकर चलें।
बात यहां भी खत्म नहीं होती। घर का कार्य महिलाओं को सुबह से रात तक करना पड़ता है और उसके बाद पति महोदय की तथा ससुर की मार पीट भी खाने को मिलती है। ‘सब्जी में नमक कम है, कपड़े ढंग से नहीं धोती, खाना टाइम पर नहीं बनाती, तेरी वजह से मैं लेट हो गया, माँ बाप ने कुछ सिखाया या नहीं?’ आदि। इस तरह के ताने तथा मार पीट करना, यह सभी पुरुषों की दिनचर्या में शामिल है और फिर पुरूषों का दोस्तों में बैठकर अपने आप को सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश करना। “आज मैने अपनी घरवाली को गालियां देकर अच्छा सबक सिखाया”, इस पर अपने दूसरे साथी का बोलना, “तूने तो सिर्फ बोला, मैने तो बोलने के साथ दो-चार हाथ भी साफ कर दिए।” इतना कहकर सभी का एक स्वर में बोलना कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते और ठहाका लगाना।
यह सब कुछ यही दिखाता है कि महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा किस तरह अलग-अलग रुप में होता है तथा महिलाओं की यह स्थिति घरेलू महिला तथा कामकाजी महिला दोनो पर लागू होती है।
25 मार्च का दिन अर्थात लाकडाउन के तारीख ने तो महिलाओं के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया। इस लाकडाउन ने महिलाओं की स्थिति को और दयनीय बना दिया है क्योंकि जहां लाकडाउन से पहले वह कुछ समय हिंसा (शारीरिक, मानसिक) का शिकार होती थी, क्योंकि पुरुष घर से बाहर होते थे तथा वह निश्चित समय पर ही आते थे, लेकिन अब महिलाएं 24 घंटे घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं।
पहले पुरुष दिहाड़ी पर चले जाते थे, आफिसों में नौकरी करते थे तथा गांव में चौपालों मे, चौराहों पर, गलियों में बैठकर मर्दानगी दिखाते हुए हुक्का गुड़गुड़ाते हुए ताश खेलते रहते थे। साथ ही कनखियों से किसी महिला को घूंघट में जाते देखकर यह देखने की कोशिश करते कि किसकी बहु है या घूंघट से ना देख पाए (क्योंकि पुरुषों के अनुसार महिलाओं का घूंघट लम्बा होना चाहिए) तो उस महिला की चाल देखकर यह पता लगाने की कोशिश करना कि किसकी बहु है। लाकडाउन के चलते अब ये सब लगभग समाप्त हो गया है। अब सब पुरुष घरों में ही रहते हैं तो अपनी इस कुंठा, बैचेनी को शांत करने के लिए उन्होंने घरों में रहने वाली महिलाओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए हैं। जवान से बूढे सभी पुरुष इस गतिविधि में लगे हुए हैं।
अब घर पर रहने वाले सभी पुरूषों की ख्वाहिशें बढ़ गई हैं। अगर एक घर में 4 पुरुष हैं तो सभी की अलग-अलग ख्वाहिशें हैं। जहां एक तरफ औरतों को मसालेदार सब्जी ना बनाने के कारण मार पीट सहनी पड़ती है, दूसरे तरफ लाकडाउन के चलते लोगों की आमदनी भी कम हो गई है। जो लोग आटो रिक्शा, ट्रक, बस या दुकानों पर काम करते थे या अपनी दुकानें जैसे वैल्डिंग, कपड़े, बर्तन, मकेनिक आदि, इनकी आमदनी भी खत्म हो गई। इस कारण से वह अपनी निराशा, गुस्सा महिलाओं पर निकालते है। वही पुरुषों द्वारा बैठे बैठे उनको घूरना, उनके कार्य का आंकलन करना तथा फिर सांयकाल को पुरुषों द्वारा दारू पीकर महिला द्वारा दिन में किए गए कार्य में कितनी कोताही बरती, इसको लेकर बेदर्दी से महिलाओं को पीटना।
यह स्थिति सिर्फ घरेलू महिलाओं के साथ ही नहीं अपितु कामकाजी महिलाओं के साथ भी है। बहुत सी कामकाजी महिलाओं को अपने आँफिस का कार्य घर से ही करना पड़ता है जिसके चलते 8 घंटे घर पर ही कार्य करना तथा इस दौरान पति या फिर किसी अन्य पुरुष सदस्य द्वारा किसी काम को करने के लिए बोलना तथा ना कर पाने की स्थिति में शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना आदि। कामकाजी महिला पर कार्य का दोहरा दबाव है। उसे प्रतिदिन आँफिस का कार्य समय पर पूरा करके देना भी है तथा घर की व्यवस्था को भी सुचारु रुप से चलाना है। कुछ घरों में कामकाजी महिलाओं ने अपने यहां साफ सफाई के लिए किसी महिला को नौकरी पर रखा हुआ था लेकिन अब लॉक डाउन के वजह से वह भी नहीं आ पा रही तो कामकाजी महिलाओं के लिए काम का बोझ तथा हिंसा का बोझ भी दुगना हो गया। क्योंकि जहां कामकाजी महिला पहले 8 घंटे घरेलू हिंसा से बच जाती थी क्योंकि वह 8 घंटे उसके आँफिस में होती थी लेकिन अब वह महिला 24 घंटे घरेलू हिंसा का शिकार होती है।
राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी माना है कि लाकडाउन के चलते महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा पहले से बढ़ी है। महिला आयोग की चेयरपर्सन रेखा शर्मा के अनुसार 24 मार्च से 1 अप्रैल तक पूरे देश से घरेलू हिंसा के कई मामले सामने आए है। इसके अलावा ऐसे बहुत से मामले होंगे जिनमें महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकायत ही नहीं करती। हरियाणा महिला आयोग के अनुसार उनके पास एक केस आया जिसमें पुरूष ने अपनी पत्नी को बंधक बनाया हुआ था तथा उसको खाना ही नहीं दे रहा था। पुलिस की मदद से उस महिला को छूड़वाया गया। ऐसा ही एक मामला हरियाणा के झज्जर शहर का है। झज्जर में भट्टी गेट कालोनी में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी का रात में कत्ल कर दिया। इसका कारण यह था कि लाकडाउन के चलते पति का अपना काम छूट गया तथा घर पर रहने लगा। पति को शराब पीने की लत थी जिसके चलते उसकी पत्नी को यह अच्छा नहीं लगता था। इसी कारण से उसकी पत्नी उसको शराब पीने से रोकती थी। पति को यह नागवार लगा कि उसकी पत्नी उसको टोके, इसी के चलते उसने अपनी पत्नी की हत्या कर दी।
इसी तरह एक केस झज्जर जिले के तुम्बाहेडी गांव का है जिसमें एक महिला सोना देवी ने अपने पति से दुखी होकर आत्महत्या कर ली। सोना देवी के बेटे ने अपने पिता के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया कि उसके पिता उसकी माँ के साथ अक्सर हिंसा करते थे जिससे दुखी होकर उसकी मां ने आत्महत्या की। इसका कारण भी महिलाओं के आसपास का माहौल है जो कि महिलाओं को चुप्पी तोड़ने नहीं देता। परिवार के बिखरने का डर, बच्चों की परवरिश, लोगों द्वारा महिलाओं को ही दोष देना, सिंगल मदर के प्रति लोगो की दृष्टि आदि ऐसी बहुत सारी बातें है जो महिलाओं को चुप्पी तोड़ने ही नहीं देती तथा महिलाएं इसी को अपने भाग्य कर्म से जोड़ती हुई अपनी नियति में शामिल कर लेती हैं।
ऐसी स्थिति में मीडिया को, टीवी एजेंसियों का और सजग होना आवश्यक हो गया है तथा इस तरह के प्रोग्राम दिखाने चाहिए जिससे घर बैठे पुरूषों की काऊंसलिंग हो सके तथा उन्हें सिखाया जाए कि कैसे एक पुरुष घर में सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने के लिए अपनी भूमिका अदा कर सकता है ताकि महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा जड़ से खत्म हो।
लेखक ने अपने विषय को बहुत ही बढ़िया तरीके से प्रदर्शित करते हुए सभी मूल बातो पर प्रकाश डाल कर महिलाओं के पक्ष में बहुत ही सही बाते कही है। यह सच्चाई तो औरत ही जानती है कि क्या क्या सहना पड रहा है।इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। लेखक को मेरा धन्यवाद।