लॉकडाउन और महिलाओं का कभी ख़त्म न होता काम.

साथियों इस दौर की शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। यह समस्या दिन प्रतिदिन विकराल रूप धारण करता जा रहा है। आधुनिक समय में लोगों ने अपनी आवश्यकताओं को इतना बढ़ा दिया की आवश्यकताएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। शायद बहुत से लोगों ने लॉक डाउन के साथ यह अनुभव किया हो परंतु मैं तो कुछ और ही अनुभव कर रही हूँ और आज मैं, खुद को शामिल करते हुऐ यह बात कह रही हूँ। मैं हर उस महिला की बात कर रही हूँ, जो हमेशा से ही ताले में रही, हमेशा से ही बंधनों में रही, चाहे वह कामकाजी महिला क्यों ना हो। सोचिये उन महिलाओं के बारे में जो सुबह बैग टाँग कर जाती हैं। इनके जाने से सबको तकलीफ़ भी होती है। यह घर का काम करके जाती हैं और बाहर भी काम ही करती हैं। ऐसे ही हंसते मुस्कुराते अंधेरा होने से पहले घर वापस आती हैं। बैग तो बगल में टंगा ही रहता है। इससे पहले वह रसोई घर में चली जाती है। 

“अच्छा तुम आ गई।”

“अरे तुम चाय बहुत अच्छी बनाती हो बस जल्दी से पिला दो। थकान उतर जाएगी।”

“मम्मा भूख लगी है। कुछ खाने को दो।”

“बेटी मेरे लिए भी दलिया बना दो” 

और वह उसी मुस्कान के साथ फिर से वही काम करती है। क्योंकि उसके लिए लॉक डाउन नहीं है। वह तो हमेशा ही चलती रहती है। हमेशा ही काम करती रहती है। आज फिर से चाय की प्याली पीना और उसे कहना की चाय के साथ थोड़े पकौड़े भी बना दो और फिर सोचना अब तो सब घर में हैं। क्या कोई एक चाय की प्याली उसे पिलाने वाला भी है? 

पहले तो वह बाहर निकल ही जाती थी। नौकरी करने, सब्जी लेने, बच्चों को स्कूल छोड़ने, स्कूल से लेकर आना, सास ससुर की देखभाल करना, उनकी दवाइयाँ लाना, बहुत तरह के काम और फिर घर के अंदर के काम। लेकिन अब लॉकडाउन मैं कभी इधर से आवाज़ आती है, तो कभी ऊधर से:

‘मुझे यह खाना है। मुझे वह नहीं खाना। मेरे लिए यह लेकर आओ। मेरे लिए वह लेकर आओ, अब यहां की सफाई करो। अब वहां की सफाई करो। अब खिड़की दरवाज़े साफ करो, सफाई रखो।’

और वह कुछ नहीं कहती क्योंकि लॉक डाउन है। अगर सफाई नहीं करेगी, सबका ध्यान नहीं रखेगी तो कैसे चलेगा? कोरोना जो है। कहीं से आ कर लग गया तो? इसलिए सबका ध्यान भी रखती है। और उसका ध्यान किसने रखा? 

साथियों, महिलाओं के ऊपर बहुत ज़्यादा दबाव इस दौरान काम का पड़ा है। पहले थोड़ा कम दबाव था। क्योंकि सबका काम करने के बाद कोई ऑफिस चला जाता था, बच्चे स्कूल चले जाते थे, बुजुर्ग इधर-उधर टहलने चले जाते थे, तो थोड़ा आराम से अपने घर का काम करके दो घड़ी बैठ जाती थी। लेकिन अब ऐसा मौका नहीं है। उस महिला की भावना को समझने की ज़रुरत है। उसके स्वास्थ्य को समझने की ज़रूरत है। हर महीने माहवारी में वह कितना परेशान होती है। उसके बाद भी वह बगैर रुके काम में लगी रहती है। महिला के हर काम को देखने की ज़रूरत है, महसूस करने की जरूरत है और ज़िम्मेदारी को बांट कर करने की ज़रूरत है।

Leave A Comment.

1 thought on “लॉकडाउन और महिलाओं का कभी ख़त्म न होता काम

  1. बहुत ही शानदार तरीक़े से सभी महिलाओं की यथा-स्थिति से पाठकों को रूबरू करवाने हेतु आपका कोटि-कोटि आभार
    नमन – नारी शक्ति को

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Get Involved.

Join the generation that is working to make the world equal and violence free.
© 2024 Breakthrough Trust. All rights reserved.
Tax exemption unique registration number AAATB2957MF20214