जहाँ आज बहुत सारे देश तकनीकी के आधार पर नंबर वन आने की रेस में दौड़ रहे हैं, वही भारत में हज़ारों लोग रोटी के लिए ही सोचते हैं और कमाने के लिए अपना घर बार छोड़कर दूसरे शहरों मे चले जाते हैं ताकि दो वक्त की रोटी कमा सकें ओर अपने परिवार को भी खिला सकें। पर आज मैं एक दुविधा में हूँ।
पिछले कुछ महीनों से पूरी दुनिया मे कोरोना महामारी फैली हुई है। सभी देशों से इस महामारी से मरने की ख़बरें आ रही हैं लेकिन हमारे देश में मरने के साथ साथ ऐसी हजारों ख़बरें आ रही हैं जैसे मुसलमानों ने देश मे कोरोना फैलाया, धर्म के नाम पर साधुओं को मारा जा रहा है, सरकार ने करोड़ो रुपये लगा दिये राशन पर आदि। अब यहाँ पर मैं परेशान हूँ कि ये खबर नहीं आई कि भूख से कितने मरे? खाना कहाँ तक नही पहुँचा? अगर खाना सभी को मिल रहा है तो हजारों मज़दूर प्रवासी एक राज्य से दूसरे राज्य अपने घरों की तरफ क्यों जा रहे हैं? क्योंकि उनको रोटी नहीं मिल रही। भूख ही थी जो उनको शहरों की ओर ले के आई थी ओर भूख ही है जो उनको वापिस जाने को मजबूर कर रही है। भूख से बहुत से लोग मर गये पर ये खबर नहीं आई। हजारों किलोमीटर पैदल चल कर अपने घर जा रहे मज़दूरों से जब पूछा गया कि क्यों जा रहे हैं तो उनकी आँखों में आँसू आ गये और उनके मुँह से एक ही बात निकली कि बस अब नहीं आएँगे वापस।
कई लोग सैंकड़ो किलोमीटर पैदल चलकर या साइकल से भी अपने घरो तक पहुँच रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक विशेष रिपोर्ट के मुताबिक लाकडाउन में पैदल ही अपने घर का रुख करने वाली 12 साल की एक लड़की की मौत घर पहुँचने से पहले ही हो गई। रिपोर्ट के मुताबिक, 12 साल की जमालो मडकाम करीब दो महीने पहले तेलंगाना में मिर्च की खेती में काम करने के लिए अपने रिश्तेदारों के साथ पहली बार घर से बाहर निकली थी। लेकिन ज़िंदा वापस नहीं लौटी। करीब 100 किलोमीटर पैदल चलने के बाद उसकी मौत हो गई। अख़बार में यह भी लिखा है कि उसके साथ 13 अन्य लोग भी थे। 12 साल की लड़की लगातार तीन दिन तक पैदल चली और छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में स्थित अपने घर से 11 किमी दूर उसकी 18 अप्रैल को इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन और थकान की वजह से मौत हुई। एक महिला जो गर्भवती थी और गोद में एक बच्ची को लेकर 1100 किलोमीटर पैदल चल कर अपने घर पहुँची। ऐसे ही हजारों मज़दूर प्रवासी दिन रात चल कर अपने घरों की तरफ चल रहे है।
देश में कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण के बीच लोग अपने घरों की तरफ पहुंचने के लिए कोई जद्दोजहद नहीं छोड़ते दिख रहे हैं। संकट की इस घड़ी में दिहाड़ी मजदूर सबसे ज़्यादा परेशान हैं और सिर पर छत और दो वक्त की रोटी की तलाश में वह अपने घरों की तरफ पैदल ही निकल पड़े हैं। दिल्ली से यूपी के अलग-अलग जिलों के लिए निकले दिहाड़ी मजदूर और उनके परिवार बीच रास्ते में फंस गए। एक परिवार लखनऊ बस स्टेशन पर पहुंचा लेकिन यहां से भी आगे जाने के लिए उनके पास पैदल जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अपना दुख बयान करते हुए उन लोगों ने बताया कि वह पिछले कई दिनों से चल रहे हैं और पांच दिन से कुछ खाया पिया नहीं है।
मेरा मानना यह है कि अगर इंसान भूखा है, पेट खाली है तो उसे दुनिया की कोई दूसरी चीज समझ में नहीं आती। आर्थिक मंदी क्या है, परमाणु क्या है, सलमान कौन है, सरकार किसकी है? उसे तो मतलब बस पेट से है, भूख से है, रोटी से है। तो शायद आज हमारे देश को भी यह देखना चाहिए कि इस मुसीबत की घड़ी से तो हम किसी ना किसी प्रकार निकल ही जायेंगे पर जो भूख से मर जायेंगे वो वापिस नहीं आएँगे क्योंकि दुनिया मे सबसे बड़ी समस्या भुखमरी है। अंतरिक्ष मे पांव जमाने से पहले, क्या देश को भुखमरी पर विजय नहीं पाना चाहिए? दोस्तों ये भूख, ये रोटी ही है जो हमें अपना घर अपना शहर छोड़ने पर मजबूर करती है। और देश इसी से जूझ रहा है।