आज के दौर में कोरोना से भी ज़्यादा महामारी महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा का है। इस महामारी में पुरुष को तो उनके कार्यों से निजात मिल गई पर महिलाओं के दोहरी कार्य शुरू हो गए। पहले एक रविवार महिलाओं को नहीं मिलता था और अब पूरा सप्ताह वो खुद के लिए समय नहीं निकाल पा रही हैं। पहले वो कुछ समय खुद के लिए निकाल अपने निजी जीवन में होने वाली समस्याओं को सुलझाने के लिए रखती थी पर अब वो भी नहीं और इतनी सारी समस्याओं के बीच उसे मानसिक तनाव से भी गुज़रना पड़ रहा है।
पुरुष के लिए महिला हमेशा हास्य का पात्र ही बनी रही है और आज कल की स्थिति में पुरुष के खाली दिमाग में और भी कई मज़ाकिया चुटकुले बनते जा रहे हैं। महिला और पुरुष सभी कहीं न कहीं किसी हद तक पितृसत्तात्मक मानसिकता के शिकार होते हैं क्योंकि सदियों से वे यही देखते आये हैं, इसलिए उन्हें यह सब सामान्य लगता है। इसीलिए वे इसमें मज़ा ढूंढते हैं और कई लोगों को इसमें कुछ भी गलत नज़र नहीं आता। इसका असर व्हाट्स एप और फेसबुक के ज़रिये वो बयान करते हैं। मैंने एक वीडियो देखा कि पुरुष मोबाइल चला रहा है और महिला उसके बगल में बैठ कर अपनी फरमाइश कर रही है। इस पर पुरुष तंग आकर सुसाइड कर लेता है। फिर मैंने दूसरा वीडियो देखा जिसमे लॉकडाउन के दौरान पुरुष दिन भर अपनी पत्नी बच्चों के कपड़े धोने और उनके लिए खाना बनाकर परेशान है। एक वीडियो तो में तो हद ही कर दी गई – इसमें दिखाया गया कि एक पुरुष साड़ी पहन कर अपनी पत्नी की भूमिका निभाते हुए मेकअप करते-करते पति को गाली दे रहा और उससे खाने पीने का ऑर्डर दे रहा यानी वो शायद हर पुरुष की परिस्थिति बताने की कोशिश कर रहा है।
दरअसल महिलाओं को चुटकुलों इत्यादि के माध्यम से हँसी का पात्र बनाकर उन्हें अहसास कराया जाता है कि वे हर मामले में पुरुषों से हीन हैं, उनसे कमतर हैं, उनके पास दिमाग नहीं होता या महिलाओं की अक्ल घुटनों में होती है। इसलिये उन्हें हमेशा पुरुषों के अधीन रहना चाहिए एवं अपनी पितृसत्तात्मक सोच को छिपाने के लिए पुरुष इस तरह के माध्यम से ये दर्शाने की कोशिश करते हैं कि लॉकडाउन के दौरान पुरुष पर कितना अत्याचार हो रहा है और भी कई जोक हैं जो कि आप व्हाट्स एप, टिक टोक पर देखते होंगे। उनको लगता है कि महिलाएं अभी भी कुछ काम नहीं कर रही हैं। बेचारे पुरुष, एक तो घर में रह रहे हैं ऊपर से महिला उन्हें चैन से रहने नहीं दे रही है!
तो इन्हीं सारी समस्याओं को देखते हुए मैंने अपने घर,आस-पड़ोस एवं कार्य क्षेत्र में महिलाओं से बात चीत की और उनकी समस्याओं को सुना। हांलाकि ये पहल नई नहीं है मुझसे भी पहले कई महिलाएं इस अभियान में शामिल हुई होंगी पर मेरा ये पहला अनुभव रहा है। मैंने पहले अपने घर में देखा और पाया कि मेरी मां दिन रात सबके मन पसंद का खाना बनाना में ही व्यस्त रहती है। बाकि की महिला कपड़ा धोना और घर की साफ-सफाई, इन सभी के बीच में बच्चों को भी संभालना ताकि बच्चे शोरगुल ना करे जिससे कि घर के पुरुष को किसी भी तरह की समस्या उत्पन्न न हो – इसी में दिन बीत जाता।
इसके पश्चात मैंने अपने आस पड़ोस की महिलाओं की स्थिति देखी तो मैंने पाया की महिला घर से ही सिलाई के दौरान पैसा का स्रोत बनाने के साथ-साथ घर की भी जिम्मेदारियों को संभाल रही है। इस बीच अगर कुछ समय आगे पीछे हो जाए तो पुरुषों द्वारा महिला को डांट फटकार भी झेलना पड़ रहा है। दिन भर के लॉकडाउन के दौरान पुरुष किसी ना किसी समय घर से निकल जाते हैं लेकिन महिलाएं चाह कर भी कहीं नहीं जा सकती। यहां तक कि अपने छत पर भी जाने का समय नहीं है उनके पास।
इसके बाद मैंने अपने कार्य क्षेत्र की महिलाओं से भी बात की। मैंने उनसे पूछा कि आपके घर में अभी कैसी स्थिति बनी हुई है। इसमें एक महिला ने जवाब दिया कि अभी मेरा बाहर का काम बंद है पर घर का काम डबल हो गया है। यानी की दोपहर में मुझे खुद के लिए समय मिल जाता था ताकि मैं कुछ देर आराम कर सकू पर अभी बिल्कुल नहीं मिल पा रहा है। फिर मैंने दूसरी महिला को कॉल किया तो उनसे उनके हाल चाल पूछने के बाद मैंने किशोरी की स्थिति को जानने की कोशिश की – इस दौरान वो क्या कर रही हैं या उसके स्वछता के लिए वो पैड कहाँ से उपलब्ध करवा पा रही हैं। पता चला कि अभी किशोरी घर में ही सूती कपड़े का इस्तेमाल कर पा रही है क्योंकि पैड लेने के लिए उन्हें बाहर जाना पड़ेगा और अभी के हालात इतने सही नहीं है कि एक लड़की दाल चावल तो दूर की बात है पैड लेने बाहर जाए और वो ना ही किसी से खुलकर बोल पाएगी लाने के लिए। इसके बाद मैंने उस महिला से उनके आस पास की समस्या के बारे में पूछा यानी की कोई ऐसा घर जहाँ हिंसा हो रही हो तो उन्होंने अपने गांव की नहीं पर कहीं और की समस्या को बताते हुए कहा कि फोन पे मेरी माँ से बात हुई तो पता चला कि बगल वाले घर में एक पति शराबी था पर अभी लॉक्डाउन के दौरान उसे शराब नहीं मिल पा रहा है जिसके वजह से वह बेचैन रहता है और गुस्से में अपनी पत्नी को पीटता रहता है। समस्या केवल हमारे आस पास रह रही घरेलू महिलाओं की ही नहीं बल्कि कामकाजी महिला की भी है क्योंकि इस लॉक्डाउन के दौरान सारी महिला वर्क फॉर्म होम कर रही है जिसके वजह से उन्हें कार्यालय का समय फोन पर ही देना पड़ता है जिसके वजह से उनके घर में इन बातों को नज़र में रखते हुए उनके साथ हर तरह का शोषण पुरुषों द्वारा किया जाता है – चाहे वो मानसिक शोषण हो या शारीरिक।
मुझे अब ये समझना है कि महिला ही क्यों हमेशा पुरुषों के लिए हास्य का पात्र होती है? क्योंकि वो दिन भर घर के कार्यों में व्यस्त रहती है? दिमाग में हमेशा अपने घर के पुरुषों को खुश देखने की कामना करती है या फिर अपने प्रति हो रहे शोषण को नज़रंदाज़ कर देती है? थोड़ा अटपटा है पर सोचने वाली बात है। तो आएं और अपनी गहरी सोच से इन सारी समस्याओं को समझें। एक दिन, बस एक दिन महिलाओं की ज़िंदगी जीकर देखते हैं कि आखिर क्या है जिसका मज़ाक हम पुरुषों द्वारा सदियों से किया जाता रहा है? एवं इसके साथ साथ मैंने इस तरह के माहौल से ये सीखा कि जिस दिन लोगों को संविधान की भावना के अनुसार समानता का मूल्य आत्मसात हो जाएगा, जिस दिन उन्हें जेंडर और पितृसत्ता की समझ पैदा हो जाएगी, उस दिन यह गैरबराबरी की सोच और महिलाओं को निम्न समझने या उन्हें हास्य का पात्र समझना भी बंद हो जाएगा। इसलिए हमारा काम बनता है कि हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को जेंडर की समझ से परिचित कराएं ताकि हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकें।
So true
People will call it fake feminism and compare to the problems of men….but your article is so accurate.
Absolutely right. As the comment above states, i too have experienced that calling out such patriachial behaviour is brushed aside as fake feminism. Maybe the women who themselves forward such so called funny videos have not yet realized what kind of behaviour they are encouraging – just wanting to male their men happy.