मुझे समाज में बदलाव चाहिए। मुझे पूरे विश्व में बदलाव लाना होगा।
एक व्यक्ति पूरे समाज में बदलाव लाएगा?
ये हास्यस्पद हो सकता है मगर नामुमकिन नहीं। बस हौसला और कुछ करने कि चाहत बुलंद होनी चाहिए। यह शस्त्र हैं जिनसे समाज में क्रांति लायी जा सकती है।
समाज में जो सबसे बुरी कृति है वह है असमानता कि। भेदभाव कि। इनसे ही न जाने कितनी समस्याओं का जन्म हुआ है। जैसे गरीबी, अशिक्षा, दहेज़ प्रथा, भ्रूण हत्या, आदि। अगर हम इन समस्याओं की तह में जाएंगे तो देखेंगे की इन सब समस्याओं के पीछे असमानता की एक बहुत बड़ी भूमिका है।
असमानता के बादलों से ढका हुआ समाज आपकी नज़रों से ओझल नहीं होगा क्योंकि समाज पुरुषवादी रास्ते पर अपना जीवन बसाये बैठा है। हर तरफ बस एक ही हवा है – ‘पुरुष महिलाओं से बेहतर’! कितना अपूर्ण और निरर्थक और असभ्य तथ्य है। कोई किसी की ताकत का आकलन उसके लिंग से नहीं कर सकता, बिलकुल भी नहीं। आप कैसे और किस बिनाह पर कह सकते हैं की महिलाएं पुरुषों से बेहतर नहीं हैं? आप खुद से सवाल पूछिए और जवाब ढूंढने की कोशिश करें।
आपको शायद मानवतावादी होने की वजह से जवाब मिल जाए और शायद वो जवाब यह होगा की आपने महिलाओं को काज बढ़ने के लिए कितने मौके दिए? आपने महिलाओं को क्या क्या सिखाया? आपने उनको कितना सिखाया, आपने महिलाओं को आज़ाद रखा? अपने उसमें कितना आत्मविश्वास भरा और कितने अवसर दिए ताकि वह खुद को साबित कर सकें? स्त्री पुरुष की तुलना कभी करनी ही नहीं चाहिए। महिलाओं को आपने मल्टी टैलेंटेड के ख़िताब से नवाज़ा हुआ है, पर उस टैलेंट की कद्र है आपको? ज़्यादातर पुरुषों को इस बात से कुछ लेना देना नहीं होता की महिलाओं की क्या अहमियत होती है। वे खुद को सबसे ज़्यादा शक्तिशाली समझते हैं, जो एक गलत धारणा है।
हमको बदलाव खुद के घर से शुरू करनी होगी। हमको देखना होगा हमारी माँ, बहनों, बेटिओं के साथ कहीं भेदभाव तो नहीं हो रहा? हमको समझना होगा की क्या यह जो असमानता का बीज है इसको हम पोषण प्रदान कर रहे हैं? आपने खुद के घर में कभी दूध का गिलास या खाने की प्लेट हमारी बहनों या हमारी बेटी के हाथों में न होकर हमारे हाथों में या हमारे बेटों के हाथ में देखा होगा। मैंने अपने घर में देखा है असमानता का माहौल। मेरी माँ हम सभी भाई बहनों से प्यार करती हैं मगर मुझे बचपन के वो दिन याद हैं जब मैं खुद को कोसता था कि मैं लड़का क्यों हूँ? मेरी माँ मुझे खाना अपने हाथों से निकाल कर देती थी और मेरी बेहेन को खुद निकलना पड़ता था और वो भी तब, जब घर के सभी पुरुष खाना खा चुके होते थे। मुझे वो समय आज भी काटने को दौड़ता है। मुझे तब भी यही महसूस होता था कि यह तो गलत बात है, हम एक ही माँ की औलादें हैं फिर ये भेदभाव क्यों? मुझे आज भी यह बात समझ नहीं आती कि पुरुषवादी समाज अपनी मानवतावादी सोच को कहाँ छोड़ आया है? यह अत्यंत असंवेदनशील लगता है, यह ऐसा लगता है मानो समाज पर एक धब्बा लगा हो, एक मैला सा निशान जो साड़ी व्यवस्था को उथल पुथल कर रहा है।
हम सब को पुरुषवादी समाज के विरोध में आवाज़ उठानी होगी। अब जब आप खुद के घर में या बहार कहीं भी असमानता का सुबूत देखें तो उसी समय उसको निपटाने की सोचे और लोगों को जागरूक करें – बताएं की आप एक अपराध कर रहे हैं, भेदभाव करना अपराध है। अगर आप एक पुरुष है, आप अपने सभी महिला मित्र और महिला रिश्तेदारों को आत्मनिर्भर बनने के के लिए प्रेरित करें।
हर कोई एक एक क़दम बढ़ाकर ही आगे बढ़ता है। यह जो महिलाओं के प्रति असमानता है ये कहीं न कहीं हमारे देश को खोखला कर रही है। सबको आगे आना होगा और एक मुहिम चलानी होगी। मेरा उद्देश्य है महिलाएं पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चलें न की घर की चार दीवारी में बंध कर बस एक कठपुतली की ज़िंदगी बिताऐं।