यह कहानी सिर्फ प्रीति की नही है। ये कहानी तमाम उन लड़कियों औऱ महिलाओं की है जो अकसर स्कूल, ऑफिस व बाजार जैसी जगहों पर जाने के लिए घर से जब निकलती है तो इस तरह की परिस्थितियों से गुजरती हैं। जिसे हम आम भाषा में छेड़छाड कहते हैं, वो सिर्फ छेड़छाड़ कह कर नजर अंदाज करने वाली चीज़ नहीं ।अब हम वापस आते है असल घटना पर जो प्रीति के साथ हुई। कानपुर की प्रीति के मन में पढ़ने की बहुत ललक थी। तमाम मुश्किलों के बाद वो अपने घर वालों को इसके लिए राज़ी कर पाई थी। शादी की उम्र हो चुकी है….क्या करोगी पढ़ कर जब शादी के बाद खाना ही बनाना है? ज़माना इतना खराब है कौन रखवाली करेगा तुम्हारी? वैसे भी मोबाइल ने दिमाग खराब कर रखा है। ऐसी नजाने कितनी बातें प्रीती की मां एक सांस में बोल गई थी। वो चाची के बहुत कहने पर किसी तरह सहमत हुई और प्रीति के चेहरे पर मुस्कान लौटी। कॉलेज का पहला दिन था वो बहुत खुश थी नए दोस्त और नए महौल में पढ़ाई को लेकर। प्रीति का मन बल्लियों उछल रहा था। कॉलेज के बड़े-बड़े पंखे लगे कमरे देख कर वो बहुत खुश थी कम से कम यहां तो गर्मी नही लगेगी,घर पर पंखा था नहीं औऱ लाइट का हॉल तो बस पूछो मत।
पहले ही दिन उसकी रीता से दोस्ती हो गई। रीता पास के ही गांव की थी। दोनों में तमाम बाते हुई, कुछ घर की कुछ परिवार की औऱ दोनों पक्की सहेली बन गई।कॉलेज का पहला दिन खत्म हुआ और प्रीति अपने आप से बाते करते हए, रीता के बारे में सोचते हुए घर लौट रही थी। अभी वो आधे रास्ते में ही पहुंची थी कि अचानक से उसे लगा कोई उसका पीछा कर रहा है। उसकी सांस अचानक से तेज़ चलने लगी और कदम भी तेज़ी से बढ़ने लगे। वो कुछ कदम बढ़ी थी कि बगल से उसके करीब से एक मोटर साइकिल गुजरी और आवाज आई, “जानेमन तुम्हारा नाम क्या है?” वो आवाक सी रह गई,उसके कानों में मां की आवाज गूजने लगी: “ज़माना खराब है कौन रखवाली करेगा तुम्हारी?” किसी तरह वो घर पहुंची तमाम सवाल उसके मन में थे कि मां को कैसे बताए, कहीं वो उसकी पढ़ाई बंद न करा दें और उसका पुलिस में जाने का सपना आखों में ही न सूख जाए। कहीं मां इसके लिए उसको ही ज़िम्मेदार न माने। फिलहाल किसी तरह वो हिम्मत जुटा कर मां के सामने पहुंची औऱ मां को पूरी घटना बताई। लेकिन उसके बाद जो मां ने कहा उसने उसके जख्म को औऱ गहरा कर दिया। मां ने कहा लड़के हैं तो यह करेगें ही, छेड़ा ही तो है, इससे कौन सा तुम्हारे शरीर में जख्म हो गया? तुम अपना रास्त बदल दो
अब वो मां को कैसे बताए कि दिखने वाले जख्म तो वक्त के साथ ठीक हो जाते हैं लेकिन उसके मन पर, दिल पर औऱ उसके जहन पर लगा जख्म शायद ता उम्र कभी उसके दिलो-दिमाग से निकल पाए।
मां ने कितने हलके में कह दिया कि ‘छेड़ा ही तो है’। छेड़ा या छेड़खानी: क्या ये शब्द काफी हैं उसके साथ जो हुआ उसको बताने के लिए? शायद नहीं, इस घटना का दर्द उसके ज़हन को, उसकी रूह को अंदर तक झलनी कर गया था। उसे लगा कि यह अपराध है उत्पीड़न है। उसका यौन उत्पीड़न शायद कल जब वो कॉलेज जाएगी तो फिर होगा या जब वो बाजार को निकेलेगी तब भी। किसी भी मोटर साइकिल की आवाज़ उसे डराएगी, इन आवाजों से उसकी पढ़ाई पर असर पड़ेगा। वो इसका ज़िक्र शायद ही कभी मां से कर पाए, क्योंकि उसे डर है कि कहीं उसकी पढ़ाई न छूट जाए?
यह एक प्रीति की कहानी नहीं है। यह हमारे आस-पास हमारे आप के घर की लड़कियों औऱ महिलाओं के साथ अकसर होने वाली घटना है जिसे अब अपराध की नजर से देखने की जरूरत है। यह छेड़खानी नहीं, यौन उत्पीड़न है। हमें अपना चश्मा या कहें लेंस बदलने की जरूरत हैं और महिलाओं और लड़कियों की राह को बेखौफ बनाने की जरूरत है, जिससे वो कामयाबी की नई इबादत हर रोज लिख सकें और कामयाब न भी हो तों भी उनकी राह आसान और बेखौफ बनी रहें। यह किसी और को नहीं करना है, यह हमको और आपको ही करना है। तो चलिए कदम मिलाइये हमारे साथ और बनाइये बैखौफ राह।