हम अक्सर सुनते आये हैं…..और सुनते ही सुनते बड़े भी हुए है कि ढंग के कपडे पहनो, ढंग से चलो, ढंग से बोलो, ढंग से उठो………….चार लोग क्या कहेंगे??????? ये ढंग से उठाना, बैठना, चलना क्या होता है और वो चार लोग कौन है??????मुझे तो आज तक तो वो चार लोग नही मिले जिससे मैं ये पूछ पाती कि हम लड़कियों ने आपका क्या बिगाड़ा जो ये “ढंग/कायदा/मर्यादा” हमारे लिए………
कहते हैं छेड़छाड़ और कपड़ों का पुराना नाता है | फलानी लड़की ने छोटे कपड़े पहने तो मन मचल गया और सीटी ही तो बजायी, दुप्पट्टा थोड़े ही खीच दिया जो इतना गुस्सा कर रही हो | लेकिन क्या कभी सोचा है ये सीटी बजाना, दुपट्टा खीचना इनसे हमारी जिन्दिगियों पर क्या प्रभाव पड़ता है| हमारा घर से निकलना बंद करवा दिया जाता है, कही भी जाना हो तो भाई या किसी पुरुष को साथ भेझा जाता है , हमारी सुरक्षा के लिए चाहे वो अपनी सुरुक्षा खुद न कर पाता हो | इसी से मुझे एक वाक्या याद आ रहा है, मेरा भाई जो मुझसे चार साल छोटा है मेरे साथ पास की दुकान तक गया सामान लेने के लिए | उसके पीछे गली के आवारा कुत्ते पड़ गये | अब मैं उसकी सुरक्षा करूं या वो मेरी | हार कर मुझे ही उसकी सुरक्षा करनी पड़ी |
ये चार लोग एक और कहावत बोलते हैं, “लड़की हंसी तो फसी और उसकी ना में भी हां है ” अरे अब वो चार लोग हमारे हंसने और बोलने पर भी पाबंधी लगायेंगे क्या????? “काश वो चार लोग मिल पाते”
यौनिक उत्पीडन लड़कियों और महिलाओं के साथ अकसर होने वाली घटना है जिसे अब अपराध की नजर से देखने की जरूरत है, यह छेड़खानी नही यौन उत्पीड़न है इसे चुपचाप सहने की सीख ना दें | हमें अपनी चुपियों को तोड़ना होगा, वो चार लोग क्या कहेंगे ये सोचना बंद करना होगा एवं महिलाओं और लड़कियों की राह को बेखौफ बनाने की पहल करनी होगी | यह किसी और को नही करना है यह हमको और आपको ही करना है तो चलिए कदम मिलाइये हमारे साथ और बनाइये बैखौफ राह…..
So true , anonymous ‘chaar log’ dictate how we spend our lives and their misdemeanors curtail our freedom
Yes.The fear of stigma is used as a tool to curtail our freedom. Thank you for commenting Supriya.