हम सभी इस सच से वाक़िफ़ है कि पितृसत्ता पुरुषों का बखूबी गान करती रहती है। जिसका असर सभी की ज़िंदगी को प्रभावित करता रहता है। इस पितृसत्ता ने मेरी ओर मेरे पिता जी की ज़िंदगी को भी प्रभावित किया और लगातार कर रही है।
हम पांच बहन और दो भाई हैं, और मैं सबसे बड़ी हूँ। हम निम्न स्तर के गांव के रहने वाले हैं जहाँ रोज़मर्रा की ज़िंदगी जीने के लिए ज़रूरत का सामान भी मुहैया नही हो पाता क्योंकि यहाँ संसाधनों की भारी कमी है।
इन सभी के चलते मेरे पिता जी को बार बार पितृसता की जकड़न से जूंझना पड़ रहा है। हमारे आस पड़ोस ओर मिलनसार लोगो ने हमेशा मेरे पिता को नीचे दर्जे से देखा है और ये भी कहा कि तुम मर्द नही हो।
क्योंकि मेरे पिता जी के पास हम पाँच लड़कियाँ है, और समाज में ये प्रचलित है कि जिसके घर मे सिर्फ लड़कियाँ पैदा होती है, उसे नामर्द कहकर पुकारा जाता है ।इसी वजह से जब तक मेरे छोटे भाइयों का जन्म नही हुआ तब तक मेरे पिता जी को भी ये सब सुनना पड़ा। प्रतिदिन ये शब्द मुझे कह़ी न कह़ी सुनने को मिलते रहते क्योंकि समाज के लोग मेरे पिता को मर्द बनाने में और पितृसता को कायम रखने के लिए पाठ पढ़ाने में लगे हुए थे; जबकि हमारे लिए मेरे पिता जी बहुत अच्छे इंसान हैं।
पितृसता ओर मर्दानगी के बोझ को सहन करते हुए मेरे पिता जी ने मेरा बहुत साथ दिया।
हमारे गांव में प्राथमिक शिक्षा तक का स्कूल नही था; पैदल दूसरे गांव में जाना पड़ता था और न ही यहाँ लड़कियों को पढ़ाया जाता था। हमारे दलित समुदाय से होने के कारण ये मुसीबत और ज्यादा बढ़ती चली जाती।
पर मेरे पिता सारी दुनिया, पितृसता,ओर मर्दानगी, सबसे लड़ते रहे और हम पांचो बहनों को अच्छी शिक्षा मुहैया करवाई। मेरे पिता जी को दुनिया वाले ताने मारते रहते थे, कि खुद बेटा पैदा नही कर सकता और इन लड़कियों को कलेक्टर बनाने चला है। “ये लड़कियाँ बोझ होती हैं, इन्हें दूसरे घर जाना होता है, तुझे कंगाल कर देगी; ये बेटियां है न कि बेटे जो बुढ़ापे में तेरा सहारा बनेगी। इनकी पढ़ाई को छोड़ और लड़के देखकर इनकी शादी कर दो। अगर शादी नही की ओर पढ लिखकर इनमें से एक भी किसी लड़के के साथ भाग गई तो तेरी नाक काट जाएगी ओर बिरादरी की इज़्ज़त का भी ख्याल रख। इन लड़कियों को घर का काम सिखा ओर 14 या 15 साल की होते ही दो की एक साथ ओर दो की एक साथ शादी करवा दो और गंगा नहाकर आ जाओ तुम्हारे सारे पाप धूल जाएंगे। बेटियां पराया धन होती है और पराये धन पर ज्यादा खर्च नही करते।”
यह शब्द हर रो़ज मेरे कानों में गूंजते रहते ओर मेरे पिता जी को रो़ज ये परम्पराओं को बनाये रखने के लिए किसी न किसी के द्वारा ये पाठ पढाया जाता रहा है । बल्कि बहुत बार समाज की परम्पराओं ओर रीति रिवाज़ों के कारण पिता जी भी कमज़ोर पड़े, पर उन्होंने हिम्मत नही हारी। बल्कि उन्होंने मुझे यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने भेजा जो उस गांव में किसी लड़की के लिए संभव ही नही था। आज मेरे पिता के सहयोग से मैंने समाज कार्य मे मास्टर डिग्री प्राप्त है,और लगभग 5 वर्षो से NGO सेक्टर में नौकरी कर रही हूँ। अब मैं 28 साल की हुँ और अब भी मेरे पिता जी को पितृसता ,मर्दानगी ओर समाज के लोग मजबूर करते है यह कहके, “कि लड़की हाथ से निकल गयी है, उम्र ज्यादा हो गयी है, अब तक शादी क्यों नही कर रहे हो”। लेकिन मेरे पिता जी ने हमेशा मेरा सहयोग किया है और शादी की बात को लेकर आज भी यही कहते है, “तुम्हें जैसे करनी है कर लेना, दुनिया को मैं जवाब दूँगा”।
मेरे पिता जी की हिम्मत ओर सहयोग से आज मैं पढ लिखकर जॉब कर रही हूँ, जिसके बारे में सपने ज़रूर देखती थी पर वह पूरे हो जाएंगे इसकी कतई उम्मीद नही थी,पर मेरे पिता जी के सहयोग से आज मैं अपने सपनों को पूरा कर पा रही हूँ।और केवल मैं ही नही मेरी छोटी बहने भी अपने सपनों को पूरा कर रही हैं; सभी बहनों ने भी B.A. तक पढ़ाई पूरी कर ली है,और अब अलग अलग कोर्स में पढ़ाई कर रही हैं।
मेरे पिता जी वन विभाग में बतौर मज़दूर कार्य करते है, पर हम सभी बहनों, भाइयों की केवल ज़रूरत ही नही पूरी की, बल्कि हमारे सपनों को जीना सिखाया ओर जिंदगी में हमे आगे बढ़ना सिखया है। इसलिए मुझे अपने पिता जी पर गर्व है और वह मेरे लिए दुनिया से लड़ने के लिए सबसे बड़ी ताकत है।