महिलाओं को अपने जीवन से सम्बंधित निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार आज तक नहीं मिल पाया है, जिसके चलते वह अपने शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और घर से बाहर आने-जाने सम्बंधित अधिकारों से प्रायः वंचित रह जाती हैं। सदियों से चली आ रही भेदभाव पर आधारित परम्पराओं ने महिलाओं को मिलने वाले अवसरों को और भी सीमित कर दिया है। समाज लड़कियों को बोझ मान, बेटे को ही एक मात्र वारिस समझता है तथा महिलाओं के द्वारा किये जाने वाले कार्यों को सम्मान नहीं देता है। इससे महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव का चक्र जारी रहता है।
मिशन हज़ार क्या है ?
अभी आपके आस-पास कितनी महिलाऐं हैं? भारत में प्रति 1000 लड़कों के अनुपात में सिर्फ 914 लड़कियाँ हैं । देश में आर्थिक रूप से विकसित राज्यों में शिशुलिंगानुपात के आँकडे अत्यंत चिंताजनक हैं। समाज में लड़कियों की घटती संख्या का अर्थ है उनका सार्वजनिक स्थानों पर कम देखा जाना जिससे ये स्थान महिलाओं के लिये और भी अधिक असुरक्षित दिखाई पड़ते है तथा महिलाओं के घर से बाहर आने जाने की स्वतंत्रता पर पाबंदी लगती है।
यह वक्त है लड़कियों की कम होती संख्या पर ध्यान केन्द्रित करने का महिलाओं के लिए आवाज उठाने का। मिशन हज़ार के माध्यम से हम गली, खेड़ो, स्कूलों, कॉलेजों, बाज़ार, सड़कों और अन्य सार्वजानिक स्थानों पर महिलाओं को लाना चाहते हैं। हम मानते हैं कि लिंग आधरित भेदभाव को समाप्त करने की शक्ति हमारे अन्दर ही निहित है; हम मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जहाँ बगैर किसी भेदभाव के सब तरक्की करें; सभी के लिए सार्वजानिक स्थान सुरक्षित हो और सभी कामयाब हो सके।
हमारा विश्वास है कि हम बदलाव ला सकते हैं।
आइये हम सब मिलकर इस मुद्दे पर आवाज़ उठाये!