मुझे समाज सेवा करते हुए 5 -6 साल हो गए हैं। आज कल सिनेमा जगत मे आई नई चर्चित फिल्म है – “Toilet एक प्रेम कथा”। फिल्म में नायिका अपने पति का घर शादी के दूसरे दिन ही छोड़ देती है जब उसे पता लगता है की शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा उस घर में नहीं है| फिल्म में दर्शाया गया है की नायिका के इस कदम के कारण नायक किस तरह पुरानी सोच, स्वच्छता की तर्कहीन मान्यताओं व रूढ़िवादी सोच से लड़कर अंततः वह अपने घर में शौचालय बनवाता है, तथा पत्नी को वापस बुलाने में कामयाब होता है | इस पूरी जद्दोजहद में वह अपने आस पास के लोगों में घर में शौचालय की सुविधा की आवश्यकता पर जागरूकता फैलाने में भी कामयाब होता है|
ये फिल्म देखकर मुझे अपनी फील्ड की एक कहानी याद आ गई। हमारे एक गाँव के एक परिवार की कहानी कुछ- कुछ ऐसी ही है। यह कहानी “खोजे का पुरवा” गाँव की है। नियाज़ अहमद, तीन भाई और चार बहने व माता- पिता के साथ में रहते थे। नियाज़ जी सबसे बड़े हैं । उनका निकाह हुआ और निकाह के कुछ ही दिन बाद उनकी बीवी मायके गई और फिर लौट कर नही आई।
कारण पूछने पर बताया गया कि वह लड़की कभी शौच के लिए बाहर नही गई है और आपके यहाँ शौचालय नही बना होने के कारण ही वह अब वापस जाने को तैयार नही है। फिर उनका तलाक हुआ और उनकी दूसरी बार फिर शादी करवाई गई। इस बार तो लड़की ने शादी के दूसरे ही दिन अपने घर वालो को बुलाया और वो चली गई। कारण वही था कि इनके घर मे शौचालय नहीं था। गाँव मे इनके परिवार की बहुत बदनामी हो रही थी।
गाँव के एक दो घरों में ही शौचालय थे| अधिकतर लोग बाहर खुले में खेतों में अथवा नहर के किनारे शौच जाते थे| घर में शौचालय बनवाना पैसों की फ़िज़ूलखर्ची माना जाता था तथा घर में शौचालय को अस्वच्छता का प्रतीक माना जाता था| यह भ्रान्ति जागरूकता की कमी के कारण थी| घर में शौचालय होने से होने वाले फायदे से वे अनभिज्ञ थे|
कुछ समय बीत जाने के बाद नियाज़ जी की फिर शादी की बात शुरू हुई। अब तीसरी बार फिर शादी बड़ी धूम- धाम से करवाई गई। सब लोग बहुत खुश थे।लेकिन समय को फिर वही कहानी दोहरानी थी। फिर इस बार, बहू घर छोड़कर चली गई। पर इस बार ये हुआ कि इनके गाँव में स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय के महत्व के विषय पर बैठक के माध्यम से जानकारी दी गई। इस बैठक में इन्हे कम खर्च वाला और सुंदर, टिकाऊ शौचालय निर्माण के बारे मे जानकारी दी। संस्था कि तरफ से कुछ ईनामी राशि भी दिलवाई गयी जिससे इनकी बीवी वापस आ गई और इनके परिवार के जैसे ही अन्य घरों मे शौचालय का निर्माण किया गया। अन्य लोगों ने भी नियाज़ अहमद के जीवन से सीख ली एवं अपने घरों में शौचालय बनवाये|
आज ज़रुरत है की नियाज़ अहमद की पत्नियों की तरह महिलाएँ, किशोरियाँ व बालिकाएँ अपनी इस बुनियादी जरूरत की मांग करें, चाहे वह घर हो अथवा विद्यालय| आज महिलाओं को शर्म एवं झिझक छोड़ कर अपने इस हक के लिए पहल करने की आवश्यकता है क्योंकि यह मुद्दा सीधे उनके स्वास्थ्य एवं सुरक्षा से जुड़ा हुआ है| खुले में शौच जाते वक़्त शर्म के कारण महिलाएँ पानी तक नहीं ले जा पातीं हैं | महिलाओं के लिए शौच हेतु लोटा या डिब्बा ले जाना मर्यादा के विरुद्ध माना जाता है| ऐसी दशा में व्यक्तिगत स्वच्छता न रख पाने के कारण उन्हें कई प्रकार के संक्रमण का सामना करना पड़ता है | तबियत खराब होने, दस्त की शिकायत के समय अथवा माहवारी के वक़्त घर या विद्यालय में शौचालय न होने के कारण महिलाओं, किशोरियों व बालिकाओं को अत्यधिक कष्ट का सामना करना पड़ता है | यह मात्र असुविधा का विषय नहीं बल्कि निजी स्वास्थ्य, सुरक्षा व अधिकार का विषय है|
मुझे ख़ुशी है की हमारे हाइपर लोकल कैंपेन के ज़रिये विद्यालयों में इस बुनियादी जरूरत को सुनिश्चित कराने की एक पहल चल रही है जिसका सबको समर्थन करने की आवश्यकता है| कई विद्यालयों में शौचालय की स्थिति बहुत ही जर्जर है और विघालय मे शौचालय की ऐसी हालत के कारण बच्चे और अध्यापक – अध्यापिकाओ को बहुत ही दिक्कतो का सामना करना पड़ता है । विद्यालय में शौचालय न होने के कारण कई किशोरियाँ विद्यालय छोड़ देती हैं या माहवारी के समय विद्यालय नहीं जातीं | अतः शौचालय की सुविधा के अभाव में स्वास्थ्य या सुरक्षा ही प्रभावित नहीं होती बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता व निरंतरता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है |
हाइपर लोकल कैंपेन के ज़रिये तीन जनपदों (गाजीपुर, जौनपुर व सिद्धार्थनगर) में स्वयं सहायता समूहों को तैयार किया गया है ताकि वे विद्यालयों में शौचालय सुविधा का सर्वेक्षण करें, बंद शौचालयों के ताले खुलवाएं, शौचालय सुविधा सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय हल खोजने के साथ साथ शिक्षा विभाग व प्रशासन से मांग करें ताकि यह सुविधा छात्र-छात्राओं को सुलभ हो| इन विद्यालयों के छात्र-छात्राओं की आवाज़ प्रशासन तक पहुचे इसके लिए ऑनलाइन माध्यमों का प्रयोग कर इसे एक जन अभियान में परिवर्तित करने का प्रयास किया जा रहा है| हम सबकी आवाज़ व प्रयास से विद्यालयों में इस आधारभूत सुविधा को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी| नियाज़ अहमद की पत्नियों की तरह कई महिलाओं ने आवाज़ उठायी और सफलता हासिल की | अब हमें भी इनका साथ देना है ताकि स्वच्छ साफ़ व सुरक्षित शौचालय की उपलब्धता घरों और विद्यालयों में सुनिश्चित हो पाए |
बहुत अच्छी पहल समाज के लिए प्रेरित करता है
धन्यवाद मनीष।