मेरा परिवार एवं मेरे ससुराल के लोग लखनऊ के गोमतीनगर में प्रतिष्ठित सेंट जोजफ अस्पताल में सुबह 09 बजे आ चुके थे और ये 14 जनवरी 2019 की तारीख थी। मेरी पत्नी 13 जनवरी की रात को अस्पताल में एडमिट हो चुकी थी और अगले दिन डॉक्टर को सिजेरियन ऑपरेशन करना था। अस्पताल में सुबह 9:30 बजे मेरी पत्नी को डॉक्टर के निर्देश पर नर्स एवं पैरामेडिकल स्टाफ ऑपरेशन थिएटर में ले जाते हैं और मैं और मेरे परिवार एवं ससुराल के लोग बाहर इंतजार करते हैं। ऑपरेशन थिएटर के बाहर सिर्फ एक या दो लोगों को रुकने की अनुमति मिलती है इसपर मैं, मेरी मम्मी और सासू माँ वहां रुक जाते हैं और अंदर से आने वाली प्रत्येक पुकारने की आवाज़ को बहुत कौतूहलपूर्वक सुनते हैं और ज़रा सी भी आवाज़ आने पर अंदर जाने के लिए तैयार रहते थे। ऑपरेशन थिएटर में कई महिलाएं थी जिनका ऑपरेशन होना था। इसीलिए कई अन्य महिलाओं के परिजन ऑपरेशन थिएटर के बाहर इंतजार कर रहे थे।
तभी अंदर से किसी दूसरे मरीज़ के परिजन को बुलाने के लिए गार्ड चिल्लाया और दूसरे मरीज़ के घर के लोगो ने महिला के पति को अंदर भेजा। वो बहुत उत्साह के साथ अंदर गया और करीब 10 मिनट के बाद बहुत ही अनमने, उदास चेहरे के साथ बाहर आया। परिवार के लोगो ने अंदर के बारे में पुछा तो उसने बताया “’बेटी हुई है”। इतना सुनते ही उसके परिवार के लोग उसको सांत्वना देने लगे कि कोई बात नहीं, जो आता है अपना भाग्य लेकर आता है, परेशान मत हो। उनमें एक महिला, शायद लड़के की मां थी वो तो थोड़ी देर तक कुछ बोली ही नहीं जैसे उनको बड़ा सदमा लग गया हो। मेरी सासू मां ने भी मुझसे कहा जैसे लड़की का नाम सुनते ही घर वालो को सदमा लग गया हो।
करीब 10:30 बजे मेरी पत्नी का नाम लेकर गार्ड ने आवाज़ लगाई, मेरी मम्मी एवं सासू मां ने मुझे अंदर जाने का इशारा किया और मैं अंदर गया। जैसे ही मैं अंदर गया नर्स ने मुझे देख कर मेरी पत्नी का नाम बोला और मुझे अपने साथ नवजात शिशुओं के पास ले गयी। वहां कई बच्चे जो तुरंत जन्मे थे वो लेटे हुए थे। नर्स मुझे मेरे बच्चे के पास ले गयी और मेरे पहुँचते ही नर्स ने बच्चे की दोनों टांगो को फैलाकर दिखाया और मुझसे कहा की आपकी पत्नी को बेटी हुई है और मुझे सामने बैठे डॉक्टर के पास जाने को कहा। मैं डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने मुझसे पूछा की आपने बच्चे को देख लिया? मैंने मुस्कारते हुए कहा- जी सर, देख लिया। डॉक्टर ने दोबारा पूछा- लड़का है या लड़की? मैंने हँसते हुए कहा लड़की है।
मैं अपनी बेटी को करीब पांच मिनट तक निहारता रहा और वो पल मेरे लिए एक अद्भुत पल था क्योंकि मैं पापा बन गया था और मैं मन से बहुत खुश था।
मैं खिलखिलाते हुए बाहर निकला और अपने घर के लोगो के गले लगकर उनको बेटी होने की जानकारी दी। मेरे घर के लोग शायद मुझसे ज़्यादा खुश थे और वो आपस में ही एक दूसरे के गले मिलने लगे। मेरे ऑफिस के कई साथी इस खुशी के प्रत्यक्ष गवाह थे।
मेरे घर के एवं ससुराल के लोगो ने मेरी पत्नी के बाहर आते ही उससे हालचाल पूछा और जब उन्होंने बताया की सब ठीक है तब सभी ने लड्डू, काजू कतली, गोंद के लड्डू की मिठाई एवं तरह तरह की मिठाई अस्पताल में बाँटना शुरू किया। जब कोई भी मिठाई पाता तो वो ये ज़रूर पूछता- क्या लड़का हुआ है? लेकिन जैसे ही उसको ये बताते लड़की हुई है तो बड़े अजीब तरह की मुस्कान चेहरे पर लाते हुए मिठाई उठाते।
ये मेरे लिए व्यक्तिगत अनुभव था जब मैंने देखा की बेटी और बेटे के जन्म पर कैसे प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है। उस समय तो मैं पापा बनने और अपनी नन्ही मासूम बेटी के चेहरे को निहार पाने के सुख में इस कदर खुश और प्रफुल्लित था की बार बार बोले जाने वाले इस प्रश्न पर मेरा ध्यान ही नहीं गया। किंतु बाद में यह प्रश्न मुझे कई बार याद आया और जब याद आया तो मुझे गुस्सा भी आया और खेद भी हुआ। मैं काफी समय से महिला मुद्दों पर कार्य करने वाली संस्था में कार्य कर रहा हूँ| मेरे व्यक्तिगत अनुभव ने मुझे काफी झकझोर दिया। शायद यह अनुभव उस स्थान पर हुआ जहाँ अनेक महिला पुरुष को माँ और पिता बनने की ख़ुशी मिलती है। ऐसे समय और ऐसे स्थान पर जहां एक महिला अपने प्राण संकट में डाल कर अपने बच्चे को जन्म देकर निकलती है, कई ऐसी पीड़ा से गुजर कर बच्चे को जन्म देती हैं जिसकी पुरुष कल्पना भी नहीं कर सकते, ऐसे स्थान पर स्त्री जन्म पर दुख? खेद? सांत्वना?
यही नहीं और भी बुरी बात यह की कई लोग अपनी सन्कीर्ण मानसिकता और पूर्वाग्रह के कारण अन्य लोग की ख़ुशी भी धूमिल कर देते हैं यह पूछ कर ‘’क्या लड़का हुआ है?’’ मैं अपने मन में जब भी उस पल को याद करता हूँ तो खुद से पूछता हूँ कि क्या हमारी लैंगिक समानता और बराबरी की बाते आज भी सिर्फ कागज़ी हैं और आज भी सिर्फ कोरी कल्पना है? क्यों हम आज भी बेटियों का गर्मजोशी से स्वागत करने के लिए तैयार नहीं हैं ? लेकिन चर्चाओं में हम सभी सभ्य कहलाने वाले एक झूठ ज़रूर बोलते हैं- हम अपने लड़के-लड़की में कोई फर्क नहीं करते। शायद ये सबसे बड़ा झूठ है। क्योंकि हम स्वयं भी भेद भाव करते हैं और जो नहीं करते उनकी ख़ुशी भी अपने विचारों और कथनों से धूमिल करते रहते हैं।
शायद इस मुद्दे पर पहले भी बहुत से लेख लिखे गए हैं लेकिन इस लेख का मकसद सिर्फ अपने साथ हुई घटना को आप तक पहुंचाना है और यह संकल्प और दृढ़ करना है की अपने घरों में बोले जा रहे झूठ को अपने घर से बाहर निकालना है – इसपर अभी और बहुत काम करना बाकी है।
लड़की का घर आना घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है और बेटियां क्या नहीं कर सकती बेटी दो घरों की रौनक होती है लोगों को यह सोचना होगा अगर बेटी नहीं होगी तो बहू कहां से लाओगे