मैं अभी हज़ारीबाग से M.A, 4th सेमेस्टर की पढ़ाई कर रही हूँ। मुझे मेरी पढ़ाई फिर भी अधूरी सी लगती है क्योंकि जो मेरा विषय है, अच्छा तो है लेकिन मैं दूसरा विषय लेकर दूसरे जगह से पढ़ाई करना चाहती थी। इसके लिए मैंने अपनी माँ को ये बात बताई तो उन्होंने कहा, “नहीं बच्चे जो तुम दूसरे जगह पर जाकर पढ़ाई करोगी वो तुम यहाँ भी रहकर कर सकती हो। दूसरे शहर या दूसरे जगह पर जाने कैसे लोग होंगे, उनका व्यवहार कैसा होगा पता नहीं। वहाँ पर तुम ठीक से रह पाओगी या नहीं और आज के समय में अकेला जाना भी सुरक्षित नहीं है। देखती हो ना अख़बार में और T.V. में कि लड़कियों के साथ क्या-क्या होता रहता है। तुम्हें जो भी पढ़ाई करनी है हज़ारीबाग में ही रहकर करना होगा। तुम अपने दीदी के कॉलेज में दाख़िला ले लो। दोनों साथ रहकर पढ़ाई कर लो।”
तब मैंने भी माँ की बात मान ली और दीदी के कॉलेज में दाख़िला ले लिया। उस समय मैंने कुछ सोचा नहीं और अपनी पढ़ाई शुरू कर दी। मैं Hons. में कुछ और लेना चाहती थी पार्ट-1 के बाद, लेकिन उसमें सीट भर जाने के कारण दीदी ने मेरा विषय बदल दिया। तब मुझे बहुत गुस्सा आया था, लेकिन मैंने किसी को कुछ नहीं कहा। उस विषय को भी मैंने अपने परिवार के कारण पढ़ा। लेकिन जब भी अकेले होती, तो मेरे दिमाग़ में बार-बार यही प्रश्न आता कि माँ मुझे अगर कहीं और भेजती या जो विषय में पढ़ना चाहती, वो मुझे मिलता तो जिंदगी थोड़ी ही सही लेकिन अलग होती। मैं शायद कुछ और कर रही होती।
मुझे लगता है कि बच्चों को परिवार का सहयोग मिलना चाहिए ताकि वे जो करना चाहते हैं, वे कर सके। न कि अपनी इच्छाओं को अपने तक ही सीमित रखें।
मेरे पड़ोस में एक परिवार कुछ साल पहले ही आया है।उन्हें देखकर मैं सोचती हूँ कि काश, मेरा परिवार भी नेहा के परिवार जैसा होता। मैं अपनी मर्ज़ी से कहीं भी जा-आ सकती और अपनी पढ़ाई कर पाती बिलकुल भैया की तरह, बिना किसी के दबाव के। हमेशा लड़कियों को ही क्यों टोका जाता है? लड़कों को क्यों नहीं कहा जाता है कि बेटा ये काम मत करो, यहाँ मत जाओ, वो जगह तुम्हारे लिए अच्छी नहीं है, पता नहीं वहाँ पर कैसे लोग होंग, तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार करेंगे? ये सारी बातें एक लड़के को क्यों नहीं समझाई या बोली जाती? हमेशा लड़कियों को ही क्यों समझाई जाती हैं?
मुझे बुरा लगता है, जब मैं कोई भी चीज़ बोलती हूँ, बिना समझे मेरी बात को इनकार कर दिया जाता है। वही बात अगर भैया बोलते हैं तो उसे समझा जाता है और किया जाता है।
मुझे लगता है कि जैसे एक लड़के को सहयोग मिलता है और कहीं भी आने-जाने की पूरी आज़ादी होती है, उसी तरह लड़कियों को भी आज़ादी मिलनी चाहिए। उन्हें जो पढ़ना या करना अच्छा लगता है, उसपर समझौता न करना पड़े। मेरी तरह किसी को अपनी पढ़ाई अधूरी न लगे।
Note: 2018 में ब्रेकथ्रू ने हज़ारीबाग और लखनऊ में सोशल मीडिया स्किल्स पर वर्कशॉप्स आयोजित किये थे। इन वर्कशॉप्स में एक वर्कशॉप ब्लॉग लेखन पर केंद्रित था। यह ब्लॉग पोस्ट इस वर्कशॉप का परिणाम है।