लॉक डाउन में बढ़ी हुई घरेलू हिंसा सबके लिये चिंता का विषय है। क्या कारण रहा इसके बढ़ने का?
दोस्तों घरेलू हिंसा पर बात करने से पहले इसकी समझ होना अति आवश्यक है। घरेलू हिंसा में सिर्फ पति द्वारा की जा रही हिंसा ही नही अपितु माता-पिता, सास-ससुर व अन्य परिवार के सदस्यों द्वारा की जा रही हिंसा को भी शामिल किया जाता है। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं जिसका आधार पितृसत्ता है। पुरुषों का सदैव ही महिला पर अपना अधिकार समझना, उनको अपने से कम समझना व उसे इंसान न समझकर मशीन समझना – यह सब कारण हैं घरेलू हिंसा के।
लॉक डाउन में महिला हिंसा के केस इसलिए बढ़े हैं क्योंकि महिलाओं के साथ दिन भर उनका परिवार सामने है और किसी भी चीज़ कि कमी होने पर महिला को ही दोष दिया जाता है। पुरूष लॉक डाउन में पूरा दिन घर पर ही रहे और अपनी तमाम परेशानियों जैसे आर्थिक परेशानी,नौकरी के छूटने का भय, भविष्य की चिंता, इन सभी अवसाद को अपने पत्नियों पर निकाला। अब ये भी सोचने वाली बात है कि तनाव/गुस्सा क्या सिर्फ मर्दों को ही आता है? तनाव में तो सबसे ज़्यादा महिलाएं ही रहती हैं फिर भी वह अपने पति व ससुराल वालों पर हाथ नहीं उठाती। बजाय बिना आराम किये सारा काम करती हैं।
ज़्यादा से ज़्यादा समय घर में बिताने पर मर्दों ने अपनी पत्नियों से ज़बरदस्ती संबंध बनाएं। इस महामारी के दौर को सबसे ज़्यादा महिलाओं झेल रही हैं। पूरा दिन घर का काम करना, पकवान बनाना, साफ-सफाई करना, बच्चे संभालना, बाहर समान लेने जाना, बच्चों को पढ़ाना, सबकी सेवा करना और पति की शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करना – इसके अलावा और भी बहुत कुछ! इन सबके बीच उसके साथ जो भी हिंसा हो रही है उसके विषय में सोचने का वक़्त ही नही है और अगर वह किसी से मदद लेना भी चाहे तो कैसे घर से निकले? क्या कोई मदद करेगा? बात कौन सुनेगा/समझेगा? और अगर घर में किसी को पता चल गया तो क्या वह घर मे रह पाएगी? अगर ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया तो वह कहाँ जाएगी?
ऐसी ही बहुत सी उलझने होंगी उन महिलाओं के मन में जो प्रताड़ित हो रही थीं परंतु कही से मदद न ले पाई।
पूरे देश में लॉक डाउन के दौरान घरेलू हिंसा की प्राप्त शिकायतों पर विचार विमर्श करें तो देखते हैं कि किसी राज्य में शिकायत अधिक दर्ज की गई हैं और किसी राज्य में कम। शिकायत दर्ज करना महिला की पहुँच और उसकी वर्तमान स्थिति पर निर्भर करता है क्योंकि वह पूरा समय प्रताड़ना करने वाले व्यक्ति के साथ रह रही है – तो किस समय वह मदद हेतु बाहर निकले।
नेशनल कमीशन फ़ॉर वुमेन के अनुसार 27 फरवरी से 22 मार्च के बीच उनके पास 396, 23 मार्च से 16 अप्रैल के बीच 587 शिकायत दर्ज की गई जिसमें ज्यादातर ईमेल के माध्यम शिकायत प्राप्त हुई हैं। अतः लगभग 50 प्रतिशत केस की बढ़ोतरी हुई। सखी वन स्टॉप सेंटर तेलंगाना के अनुसार सर्वाधिक 89 प्रतिशत केस सिर्फ घरेलू हिंसा के दर्ज हुए हैं और 112 (इमरजेंसी रेस्पांस सपोर्ट सिस्टम) दिल्ली पुलिस द्वारा कुल 2500 शिकायत दर्ज की गई जिसमें सर्वाधिक 1612 शिकायत घरेलू हिंसा के थे। घरेलू हिंसा जैसी महामारी का कहर भारत देश में ही नही बल्कि पूरे विश्व मे देखा गया। यूनाइटेड नेशन के अनुसार लॉक डाउन में घरेलू हिंसा की शिकायत मे 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
इसी के क्रम में मेरे द्वारा सखी वन स्टॉप सेन्टर उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में कार्य कर रहे साथियों से इस विषय पर बात किये तो पता चला कि लॉक डाउन के दौरान उन्हें हिंसा की शिकायत काफी कम प्राप्त हुई हैं, परन्तु जितनी भी शिकायत प्राप्त हुई हैं उनमें सर्वाधिक घरेलू हिंसा के ही प्रकरण हैं। उनके व मेरे अनुसार घरेलू हिंसा की जीतने भी प्रकरण हुए उनमें से बहुत ही कम महिलाओं ने मदद हेतु संपर्क किया। केंद्र में पुराने केस/नए केस में जब कॉल द्वारा संपर्क कर फॉलोअप लिया गया तो उनके द्वारा यह कहा गया कि समय न होने/पब्लिक संसाधन न चलने, कोरोना महामारी के चलते अभी वर्तमान में कोई कार्यवाही नही करनी है। इसके अलावा जिन भी महिलाओ ने मदद मांगी उनकी समस्या को टेली कॉउंसलिंग द्वारा ही सुलझाया गया। कई महिलाओं द्वारा यह जानकारी दी गई कि घर मे छोटी छोटी बातों को लेकर लड़ाई झगड़ा और उसके बाद उनके साथ मार पीट होती है। महिलाओं की आर्थिकस्तिथि अब पहले से और ज़्यादा निम्न हो गई हैं जिस कारण वह तनाव से गुजर रही हैं। पैसे की मांग करने पर व ज़रुरत न पूरी होने पर उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा। कई महिलाओं को उनके मायके में माता पिता,भाई-भाभी द्वारा मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया कि ऐसे महामारी और संकट के दौर में वह उन पर बोझ बानी हुई हैं।
दोस्तों आपको क्या लगता है हिंसा के जितने भी केस होते हैं, क्या सब दर्ज होते हैं? यह इस समस्या का एक पहलू है — थाने में अभी भी घरेलू हिंसा के केस को पारिवारिक विवाद बता कर टाल देते हैं और कहते हैं खुद से निपटा लो। लॉक डाउन में महिला घर से नहीं निकल पायी और अगर निकली पुलिस तक पहुंची तो पुलिस समय कम होने कि वजह से उन पर ध्यान नहीं दे पायी है। कुछ महिलाओं के पास फ़ोन नही है तो कुछ के पास जागरूकता की कमी! पुलिस स्टेशन, कोर्ट, प्रशासनिक कार्यालय में सिर्फ अति आवश्यक कार्य होने एवं सभी पर कार्य का अत्यधिक दबाव का होने कारण भी शिकायत कम दर्ज हुई हैं। साइबर कैफे, पब्लिक वाहन व अन्य सुविधाओं की कमी होने से भी रिपोर्टिंग कम हुई है। लाज, शर्म, हया,इज़्ज़त इन सभी सुंदर शब्दों को सिर्फ महिलाओं से ही जोड़ा जाता है। इस कारण भी कई हमारी बहने इन समस्याओं से खुद ही लड़ती रही ताकि समाज उन्हें व उनके मायके वालों को ताना न मारे।
यह सब दर्शाता है कि 21वी सदी में आकर जब हम आज़ाद देश में रहते हैं जहाँ महिलाओं के संरक्षण/सशक्तिकरण/सम्मान के लिए कितनी योजनाएँ और कानून बने हैं, उसके बाद भी महिलाएं घरेलू हिंसा जैसे जटिल समस्या से आज़ाद नही हो पाई हैं।