हमारे कार्य क्षेत्र गया में एक गाँव की आशा ने हमें सूचना दी कि हमारे गाँव में एक परिवार अपनी 13 वर्षीय लड़की का विवाह करने वाले हैं। जब सरपंच के माध्यम से हमने उस परिवार से बात की तो पता चला कि वह परिवार बेहद गरीब है और लॉकडाउन में कोई रोज़गार न मिलने के कारण अपनी लड़की की पढ़ाई छुड़वाकर उसकी शादी करना चाहते हैं और उनके अनुसार लड़की 18 वर्ष पार कर चुकी है। लॉकडाउन और उससे उपजे आर्थिक हालात की सबसे बड़ी गाज लड़कियों की पढ़ाई और उनकी ज़िंदगी पर पड़ी है। ऐसी एक नहीं कई घटनाएँ आ रही हैं और बहुत सारी संस्थाएं ऐसी आशंका जाहिर कर रही हैं। अकाल, सूखे और बाढ़ जैसी विपदाओं के दौरान भी यह रुझान देखा गया है।
लॉकडाउन लड़कियों और महिलाओं के लिए नई मुसीबतें लेकर आया है। इस समय जब स्कूल-कॉलेज सभी मार्च के शुरू से ही बंद हैं और अधिकांश शिक्षण संस्थानों ने बदली हुई परिस्थितियों में बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना शुरू किया है ताकि उनकी पढ़ाई बाधित न हो। ऐसे समय में हमें शिक्षण के नए रास्ते तलाशने ही होंगे और टेक्नोलॉजी ने इस दौरान हमारी काफी मदद की है लेकिन यहाँ भी लैंगिक भेदभाव साफ साफ नज़र आ रहा है। हम जानते हैं कि कमजोर तबकों, देहाती इलाकों और महिलाओं की तकनीकी तक पहुँच पहले से ही बेहद कम बल्कि न के बराबर है। लॉकडाउन के दौरान यह और भी साफ निकलकर सामने आ रहा है।
हमारे पितृसत्तात्मक समाज में महिला और पुरुष के बीच एक गहरी खाई है और लड़कियों के जन्म और उन पर निवेश को बेकार माना जाता है। यही कारण है कि शिक्षा, खेल, नौकरी, बिज़नेस इत्यादि में लड़कियों और महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। लेकिन लॉकडाउन में बदली हुई परिस्थितियों में लड़कियों की शिक्षा और भी गंभीर रूप से बाधित हुई है। संकट के इस समय में जब लोगों के पास राशन और अन्य जरूरी चीजों के लिए पैसों का अभाव है तो लाज़िमी है कि इसकी सबसे पहली गाज लड़कियों और महिलाओं पर ही गिरनी है। ऑनलाइन शिक्षण पद्धति पूरी तरह से मोबाइल, लैपटॉप, कम्प्यूटर और इंटरनेट की उपलब्धता पर निर्भर है। हमारे समाज में लड़कियों तक मोबाइल और इंटरनेट की पहुँच पहले ही बहुत कम है क्योंकि यह माना जाता है कि मोबाइल देने से लड़कियाँ बिगड़ जाएंगी और किसी के साथ भाग जाएंगी। इसलिए कभी कभी ही रिश्तेदारों से बात करने के लिए ही उन्हें मोबाइल पकड़ाया जाता है।
कई अध्यापक-अध्यापिका, मित्रों और अपनी टीम के साथियों से बात हुई तो उन्होंने बताया कि जब उन्होंने अपनी कक्षा के बच्चों को ऑनलाइन क्लास के लिए कहा तो कई लड़कियों ने मना कर दिया कि इस समय वे क्लास अटेंड नहीं कर पाएंगी क्योंकि सुबह के वक़्त उन्हें घर के काम करने होते हैं। उनके यह पूछने पर कि जब वे स्कूल आती थीं तो तब भी तो यह काम होते थे तो उन्हें बताया गया कि उस समय स्कूल आने से पहले वे काम निपटा लेती थीं लेकिन अब सारा समय ही काम बढ़ गया है। बहुत सारी लड़कियों का कहना है कि उनके परिवार वाले टोकते हैं कि सारा समय ही फोन लेकर बैठी रहती हो। कुछ लड़कियों का कहना था कि उसी समय उनके भाइयों की भी क्लास होती है और घर में एक ही फोन होने के कारण भाई को ही फोन दिया जाता है। कई मामलों में गाँवों में इस वक़्त केवल उनकी पढ़ाई के लिए महँगा इंटरनेट रिचार्ज कराना भी उनके माता पिता को पैसों की बर्बादी लगता है। एक मामले में तो एक पिता ने अपनी लड़की को फोन देने और उससे बात कराने से ही मना कर दिया कि उसकी लड़की बिगड़ जाएगी और उनके हाथ से निकल जाएगी। बहुतों के घर में केवल एक ही कमरा है और सभी के होने की वजह से शोरगुल होने व ध्यान भंग होने से पढ़ाई नहीं हो पा रही है।
हमने अपने काम के दौरान देखा है कि माँ-बाप दोनों के काम पर जाने के कारण छोटे भाई बहनों को संभालने, किसी रिश्तेदार के आने पर काम करने, गेहूं-धान की कटाई का सीजन होने पर लड़कियों को काम में हाथ बंटाने के लिए साल में 40-50 दिन स्कूल छोड़ना पड़ता है जिससे उनकी पढ़ाई में रुकावट आती है। घर में आर्थिक समस्या होने पर भी पढ़ाई छुड़वाकर उनकी जल्दी शादी कर दी जाती है। ऐसे समय में घरों में बढ़ते आर्थिक संकट का तीखा असर लड़कियों की पढ़ाई पर पड़ रहा है, और स्थिति सामान्य होने के बावजूद बिगड़े हुए आर्थिक हालात के कारण बहुत सारी लड़कियों के स्कूल और पढ़ाई छुड़वा दिए जाने के आसार हैं क्योंकि उनकी पढ़ाई को अक्सर एक बोझ और गैर जरूरी खर्चा ही माना जाता है। इसलिए एक जागरूक समाज के नाते हमें इस गंभीर समस्या पर गंभीरता से सोचना होगा। साथ ही साथ सरकार और सामाजिक संस्थाओं को भी कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए ताकि लड़कियों की पढ़ाई न छूटे और उन्हें कम उम्र में विवाह का शिकार न होना पड़े।