अधुरे सपनों को पूरा करने चली हूँ।.

कल तक काफ़िलों में क़ैद थी,

आज खुद के पीछे एक क़ाफ़िला बनाती हूँ,

कल तक खुद के लिए जीती थी,

आज औरों के चेहरे पर तबस्सुम

ला रही हूँ।

 

मैं जो कभी एशो-आराम में जीती थी,

कभी इनके ना होने पर गौर ना करती थी,

आज इन सब से रुबरु हो रही हूँ,

मन में कई और सपनों को

तवज्जोह दे रही हूँ।

 

पहले जो कभी खुद के लिए सोचती थी,

आज (एहसास) से जुड़ कर

औरों के लिए सोचती हूँ,

पहले जो खुद में गुम रहती थी,

आज औरों को मुस्कान बाँट रहीं हूँ।  

 

इसे सिर्फ़ अपना पेशा नहीं, वस्ल

समझती हूँ,

जिनका कोई नहीं, उनका मुहाफ़िज़

बनने चली हूँ।

 

हाँ मैं उनके अधुरे सपनों को,

पूरा करने चली हूँ।  

 

उनके कटे हुए पंख को

नई उड़ान देने चली हूँ,

कुछ ख़्वाबीदा निगाहों के

बिखरे सपनों को समेटने

चली हूँ,

मैं कुछ मुस्कान बाँटने चली हूँ।

 

हाँ ये वही बच्चे हैं, जो अपने माँ-बाप से बिछड़े हैं,

ये वही नन्ही निगाहें हैं जो हिज्र से गुज़रे हैं,

इनके चेहरे की मुस्कान मानो

ख़ुदा की इनायत हो,

इनकी क़ुर्बत में रहना

मानो, सितारों की कहकशा

में रहना हो।  

 

जब ये पाक हाथों से

आपको गले लगाते हैं,

आपको अपनी  मुस्कान की वजह बताते हैं,

ख़ुदा कसम ये कायनात की हर खुशी,  

इनके सामने फ़ीकी करा जाते हैं,

जब ये हाल-ए-दिल अपना सुनाते हैं।

 

तब अब्र से बर्क बन आँखों से

अश्क छलक आते हैं,

तब अपने अधूरे सपने भी गुमान दे जाते हैं,

अपने छोटे-छोटे सपने सुनाते हैं।  

Note: 2018 में ब्रेकथ्रू ने हज़ारीबाग और लखनऊ में सोशल मीडिया स्किल्स पर वर्कशॉप्स आयोजित किये थे। इन वर्कशॉप्स में एक वर्कशॉप ब्लॉग लेखन पर केंद्रित था। यह ब्लॉग पोस्ट इस वर्कशॉप का परिणाम है।

Leave A Comment.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Get Involved.

Join the generation that is working to make the world equal and violence free.
© 2024 Breakthrough Trust. All rights reserved.
Tax exemption unique registration number AAATB2957MF20214