18 साल की आरती अपनी छोटी बहन और पापा के साथ लखनऊ रहकर पढ़ाई करती थी। बचपन में वह गाँव में रहती थी लेकिन जब पापा नौकरी करने लगे तब से परिवार के साथ वह भी शहर में ही रहती थी। अभी कोविड महामारी के कारण उसको अपने परिवार के समेत हुसेनाबाद गाँव में आकर रुकना पड़ा। पिछली बार जब हुसैनाबाद में ब्रेकथ्रू की मीटिंग हुई तब आरती उसमें शामिल हुई और उसने अपने अनुभव साझा किये।
आरती लखनऊ से पढकर और वहां के माहौल में रहकर आई थी। वो जैसे शहर में रहना पसंद करती थी वैसे गाँव में भी रहना चाहती थी। लेकिन जब भी कोई भी काम करती तो उससे बोला जाता, “ये शहर नही है, गाँव है”। अगर आरती घर के बाहर किसी से बात करती तो चाचा के लड़के तेज़ आवाज में मना करते! घर का कोई न कोई सदस्य टोक देता, “आरती, ये ठीक नहीं है। यह गाँव है, यहाँ पर लड़कियों को घर के अंदर रहकर काम करना चाहिए, बाहर अच्छा नहीं लगता, इज्जत चली जाती है।”
हुसैनाबाद गाँव की ही कोमल भी है जो ब्रेकथ्रू के किशोर किशोरी शशक्तिकरण प्रोग्राम से पिछले साल जुड़ी। कोमल ने महिला हिंसा, भेदभाव पर अपनी समझ विकसित कर ली है। रीति रिवाज, महिलाओ के लिए पर्दा, कम बोलना, लडकियों को गाँव के हिसाब से रहना, ज्यादा सैर सपाटा न करना, बड़ो की मानकर चलना चाहिए – धीरे धीरे कोमल पर इन बंदिशों की जंज़ीरें कमज़ोर पड़ रही हैं। वह समझ गयी है कि यह नियम भेदभावपूर्ण हैं। इसी का नतीजा था की कोमल ने अपने पापा मम्मी ,भैया से बात करके अपनी शादी के खिलाफ पहल की और पढ़ाई की बात जारी रखी। उसको कामयाबी मिली और उसकी शादी की बात को टाल दिया गया।
कोमल और आरती अच्छी दोस्त हैं। एक दिन आरती के घर में किसी का जन्मदिन था। अपनी सहेलियों के साथ सेल्फी और फोटो क्लिक करके उसने फेसबुक पर डाल दिए। उसे नहीं पता था की गाँव में इन बातों को लेकर इतना हंगामा हो जाएगा। चाचा के लड़के ने घर में बहुत उल्टा सीधा कहा – “यहाँ पर कोई लड़की फ़ोन नहीं चलाती है और आरती की इतनी हिम्मत की ये फोटो डालेंगी, इतना फास्ट और एक्टिव है।” उन लोगों ने आरती की मम्मी पापा को भी भड़काया अपनी बिटिया को दबा के रखने के लिए।
घर के लोग और बाहर के लोग ताने मारते रहे – “क्या अब इतनी बड़ी हो गयी है कि फेसबुक चलाएगी?”
आरती को समझ नहीं आ रहा था की उसने कौन सा अपराध कर डाला। इसके बाद समस्या टली नहीं। आरती ने जो फोटो फेसबुक पर डाले थे, उसपर एक लड़के ने कमेंट कर दिया। अब तो आरती की खैर नहीं। सभी परिवार के सदस्य को बुलाया गया और कहा गया कि परिवार में लड़कियां स्मार्टफोन नहीं चलाएंगी।
आरती ने हार नहीं माना। कोमल ने भी आरती का समर्थन किया। दोनों ने अपनी बातों को सबके सामने अच्छे से रखा | बहस हुई, बहुत बातें हुई ,बहुत ड्रामा हुआ और उस दिन फोन आरती से ले ही लिया गया। बाद में ये भी तय हुआ की फोन दिया जाएगा। लेकिन इस शर्त पर कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कुछ भी देखना/भेजना गलत होगा। आरती फोन पर बात कर सकती है, पढाई कर सकती है, पर अभी भी वह समाज के दबाव के कारण खुलकर अपनी जिंदगी को नहीं जी पा रही है।
आरती जैसी बहुत सी लड़कियां हैं जिन्हें इंटरनेट की दुनिया से आज भी दूर रखा जाता है। गाँव के लोगों के हिसाब से आरती गलत थी, सबको लगता था की ये सभी लड़कियों को खराब कर देगी। लेकिन आरती ने सच का साथ दिया और उसको देख अब और भी लडकियां (जैसे कोमल) मानने लगी हैं – जिसे जो सोचना है वो सोचे, हम अब और प्रतिबंधित नहीं होंगे, लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी।