ममता रात के करीब 10 बजे खाना खाने बैठी ही थी जब उसे पड़ोस से किसी महिला के रोने-चीखने की आवाज़ आई। पति पत्नी दोनों खाना छोड़ कर पड़ोसी के घर की ओर भागे, वहां देखा तो पति, पत्नी को मार रहा था। पति ये मोटा डंडा लेकर मारने चला आ रहा था और वो बचने के लिए चिल्ला रही है। थोड़ी देर बाद लड़ाई खत्म हुई और सभी चटकारे लेते हुए अपने-अपने घर चले गए।
ममता फिर खाना परोसने लगी, पर अभी भी उसका मन अशांत था। इतने में ही उसका पति चिल्लाया, “पानी दे! बहरी है क्या? सुनाई नही दे रहा कब से चिल्ला रहा हूँ पानी के लिए। खाना दे दिया, पानी कौन देगा? तेरा बाप या भाई? तुझे भी उसके जैसे डंडे पड़ेंगे तो सही रहेगी..डंडे से ही सही चलती हो तुम औरतें, नही तो चर्बी जम जाती है।” ममता चुप रही। वह कुछ नही बोली क्योंकि उसे डर था कि वह कुछ बोलेगी तो मार खायेगी।
ममता अपनी शादी के 20वें साल में है। उसके बच्चे भी 16-17 बरस के हैं। वो घर पर ही रहती है और उसकी ख़ामोशी के कारण सब ठीक चल रहा है। ममता एक संस्था के साथ छोटे व्यवसाय चलाने की ट्रेनिंग ले रही है। प्रशिक्षण के बाद अब वह अपना मसाले का काम करती है।
एक दिन वह अपने घर के बाहर दुकान लगाने की तैयारी कर रही थी, तभी उसके पड़ोस से एक महिला की ऊँचा बोलने की आवाज़ आई। यह आवाज़ उसकी नई पड़ोसी पूजा की थी। पति पत्नी दोनों पढ़े लिखें हैं और पति किसी अच्छी पोस्ट में हैं। उनके दो छोटे छोटे बच्चें हैं। पूजा अपने पति को बोल रही थी, “बच्चों को देखो तो, मैं रोटी बनाती हूँ, या तो तुम रोटी बना लो, में इनको देखती हूँ।” ऐसा कई बार सुनाई देता, पूजा कई बार अपने पति से काम बाटने के लिए बोलती। उसका पति भी कुछ नही कहता और रोटी बनाने रसोई में चला जाता।
ममता को यह सब अच्छा नही लगता। एक दिन उसने पूजा को कहा, “एक बात कहूँ- बुरा मत मानना, तुम अपने पति से इस तरह क्यों बात करती हो? आखिर वो तुम्हारे पति हैं, तुम्हें उनकी इज़्ज़त करनी चाहिए।” पूजा ने ममता से पुछा, “दीदी आपको ऐसा क्यूँ लगता है कि मैं उनकी इज़्ज़त नही करती?” ममता ने जवाब दिया, “कहाँ इज़्ज़त करती हो? कभी कहती हो चाय बनाओ, कभी कहती हो रोटी बनाओ, कपड़े धो। वो बाहर कमाने जाते हैं और तुम घर का काम भी नही कर सकती?”
पूजा बोली, “दीदी में एक बात कहूँ, आप बुरा मत मानना। मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करती हूँ और वो भी मेरी इज़्ज़त करते हैं इसलिए मेरी बात मान लेते हैं। उन्हें समझ है कि मैं उनकी बेइज़्ज़ती करने के लिए काम नही कहती। पर एक बात साफ है हम औरतें ही खुद को समाज की नज़रों में अच्छी औरत बनने के चलते सारा काम खुद के सिर ले लेती हैं। इसके अलावा कुछ सोच भी नही पाते हम, यही सहूलियत और मजबूरी भी है। इस सब के कारण, घर के सारे काम हमारे बना दिये जाते हैं। अब जब हमने बाहर के कामों में हिस्सेदारी दिखाई है, फिर भी घर के काम हमारे ही हिस्से रहते हैं। हम जिंदगी और सपनों को दांव पर लगाकर अपने परिवार के ऊपर न्यौछावर कर देते हैं। मान लो हम बाहर काम करते, तो क्या घर की ज़िम्मेदारी ख़त्म हो जाती? परिवार तो दोनो का है ना। तो जिम्मेदारी भी दोनों की है। कोई काम छोटा या बड़ा नही है और किसी काम मे आदमी या औरत नही लिखा है। इसलिए दीदी सोच बदलो, समय बदल रहा है।”
ममता अब बहुत बदल गयी है। अब वह बोलने लगी है, जवाब देने लगी है। शायद उसके छोटे से व्यवसाय ने उसे ये हिम्मत दी है। पति को फैक्ट्री और बच्चों को स्कूल भेज कर, घर का सारा काम समेटकर, वो मसाले का दुकान लगाती है। शाम को पति वापिस आता है, दुकान उठा कर, वो सबको खाना परोसती है। आज फिर वो पानी देना भूल गई। पति फिर बोलते बोलते बाप पर पहुंच गए। पर आज वो चुप नही रही और बोली, “बाप दादा पे मत जाइए। एक गिलास पानी ले के तो आप पी सकते हैं। आप बाहर काम करके आएं हैं तो मैं भी तो दिन भर दुकान लगाती हूँ, कमाती हूँ और घर का काम भी करती हूँ। आपकी तरह मैं भी थकी हूँ। फिर भी मैं आपको खाना परोस के दे रही हूँ। क्या आप एक गिलास पानी भी नही लेकर पी सकते? या कम से कम आराम से मांग सकते हैं।”
पति ने खाना नही खाया क्योंकि ममता ने आज पलट कर जवाब दिया। रात भर ममता के पति चुप रहे। सिर्फ इस बात से नही कि वह बोली। बल्कि इस बात से कि शादी के 20 साल बाद अचानक वह बोलने की हिम्मत कहाँ से लाई। आजकल हर बात पे ही वो जवाब देने लगी है।
कुछ दिनों बाद उन्होंने भी नये पड़ोसी के घर मे महिला को अपने पति को कुछ काम करने की लिए कहते सुना। तो वह समझ गये कि ममता को आजकल जवाब देने की हिम्मत यहां से मिली है। एक रात खाना खाने के बाद ममता से बोले, “मुझे समझ मे आ गया है, तुम्हारे मुँह में ज़ुबान और बोलने की हिम्मत कहाँ से आई है। इतने बरसों से जो एक बात भी नही कही, अब कुछ दिनों से मुझे उल्टा जवाब देती हो। पड़ोसी से सीखी हो। कमाने लगी हो तो घर की मालिक बन गयी हो? मर्द से ज़ुबान लड़ाती हो।” ममता ने जवाब दिया, “जब आप पड़ोसी को देख के लड़ना सीख सकते हो, मारना पीटना सीख सकते हो, तो मैं क्या पड़ोसी से अपने हक़ की बात कहना नही सीख सकती?”