मैने बचपन से हमारे घर के सारे पुरुषों को महिलाओं का सम्मान करते हुए, उनके काम में हाथ बटाते हुए देखा है, और साथ ही ये भी देखा है कि किस तरह से उनका मज़ाक बनता रहा है। क्योंकि वे समाज के बनाये दायरों में फिट नहीं होते।
बात उन दिनों की है जब मेरी शादी हुई और मैं अपने पति के साथ नार्थ दिल्ली में रहती थी। मुझे अपने जॉब के लिए उनसे पहले निकलना होता था तो सुबह के नाश्ते की ज़िम्मेदारी उनपर थी। इसी समय हमे पानी भी भरना होता था क्योंकि वो पानी आने का समय भी था। इसी तरह से जिंदगी चल रही थी पर एक दिन मोटर संबंधित किसी खराबी के कारण मेरे पति को जल्दी में नीचे जाना पड़ा और उस समय उनके हाथ में आटा लगा था। बस अब क्या था, जैसे ही वो नीचे पहुंचे मेरी पड़ोसन ने उनके आटे से सने हाथो को देखा। वही कुछ और आस पास की महिलाऐं भी थी। वो सब हैरान थी – “भैया आप आटे के साथ क्या कर रहे थे?”,“आप रोटी बना रहे थे?”। इस तरह से बातें हो रही थी जैसे उन्होंने कुछ निचले दर्जे का या कुछ गलत काम कर लिया हो।
इस घटना के बाद मेरे पति भी कुछ असमंजस में पर गए। क्या सच में उन्होंने कुछ गलत किया? दरअसल वो हैरान इसलिए भी थे क्योंकि वो शादी से पहले भी अपना खाना खुद बनाते थे और आस पास के लोग ये जानते थे। खैर हमारे लिए ये कुछ बड़ी बात नहीं थी पर हद उस दिन हो गयी जब इसी बात पर सोसाइटी के पुरुषों ने मेरे पति को समझाया की वो औरतों वाले काम न करे, घर की सफाई और रसोई का काम तो औरतों को ही करने चाहिए। वो ऐसा क्यों करते हैं ? क्या हम दोनों के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा? क्या मेरी कमाई उनसे ज्यादा है? ये सब सवाल उठे। उनके हाव भाव से भी मेरे पति को यही लगा कि उन्होंने कुछ गलत और नीच काम कर लिया था।
उसके बाद जब मैं आते जाते अपने पड़ोसियों से मिली तो इस घटना की चर्चा हुई। मुझे भी समझाया गया कि पति की इज़्ज़त कैसे की जाती है। क्या काम सिर्फ औरतों को करने चाहिये और क्या मर्दों को,पति को, यह सब समझाया गया मुझे।
हम दोनों ने हमारे आस पास के लोगो को समझाने की कोशिश की कि कोई भी काम कोई भी कर सकता है, औरत हो या पुरुष। पर ये एक नाकामयाब कोशिश रही और हम दोनों को एक अलग नज़र से देखा गया। बातों बातों में उन्हें ये भी पता चला की आर्थिक फ़ैसलों में भी हम दोनों मिल कर निर्णय लेते है। कई बार इस कारण हम मज़ाक के पात्र भी बने खास तौर पर मेरे पति, कि वो मर्दों जैसे नहीं हैं । मुझे खास तौर पर ये सुनने को मिला की मैं एक संवेदनहीन पत्नी हूँ। मेरे पति मुझे सर पर उठा कर रखते है क्योंकि मैं उनके लिए पैसे कमाकर लाती हूँ।
यहाँ समस्या कई तह में है, एक तो लिंग के आधार पर काम का विभाजन, दूसरा महिलाओं से संबंधित हर काम हर चीज़ को निचले दर्जे का मानना। तीसरा बदलते परिवेश के साथ खुद की सोच को नहीं बदलना और चौथा ये की यह समस्या साक्षरता से कही आगे है क्योंकि ये सभी पढ़े लिखे सभ्य समाज के लोग थे।
आज के समाज में खास तौर पर शहरों में महिलाओं के नौकरी करने से प्रतिबंध हट गया है क्योंकि वो एक ज़रुरत बन गयी है। घर चलाने के लिए, EMI, बिल , किराया, इन सबके लिए दोनों का काम करना ज़रुरी हो गया है। पर उसके साथ पुरुष भी घर के कामों में हाथ बटाए ये ज़रुरी नहीं। ऊपर से जो ऐसा करते हैं उन्हें खींच कर रुढ़िवादी के तरफ ले जाना , उनका असम्मान करना हमारे समाज को और पीछे धकेलता है। इसका प्रभाव औरतों पर पड़ता है और पुरुष भी इससे अछूते नहीं रहते।
पित्रसतात्मक सोच हर एक वर्ग को प्रभावित करता है। वो एक तरफ जहाँ पुरुषों पर दबाव डालता है कि उन्ही को सब चीज़े संभालनी है, सारा कंट्रोल उनके पास होना चाहिए, वही औरतों से सारे अधिकार छीन लेता है, यहाँ तक की अपनी जीवन से संबंधित निर्णय लेने की आज़ादी भी उन्हें नहीं देता।
अतः काम का पार्टनर वही हो सकता है जो सच में काम आए चाहे वो घर के काम में हो या बहार के काम में।
It’s true….On one side our society wants an well educated and good earning girl for their son to support him financially,,,but on the other side society doesn’t want their son to support his wife in daily work….This mentality must be changed..
yes and at the same time people expect their son in low to help their daughters but not son to help their daughter in laws.
for woman also there are categories.