दर्दभरी सुकून।.

आज के इस बदलते दौर में शिक्षा हर बच्चे का मौलिक अधिकार है। वहीं हमारे भारत देश में आज के युग में भी कुछ ऐसे जगह – कुछ ऐसे गांव है, जहां पर लोग पुराने विचार के तले दबे हैं। चाहे लड़का हो या लड़की उन्हें उनका समान अधिकार प्राप्त नहीं हो पा रहा है और ये लोग समाज में हो रहे नई क्रियाओं को जानने में असमर्थ है। इसके बावजूद, आज के इस दौर में शिक्षा के बदौलत नई मुकाम पाने के सपने सजा रहे हैं।  

ऐसे ही सपने सजाए बैठी, एक १७ साल की लड़की ‘मुस्कान’, जो कि हरियाणा के एक छोटे से गांव में रहती है ,जहां पर लड़कियों या महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता है। मुस्कान के घर की स्थिति काफी दयनीय थी, उसके पिता दूसरे के खेतों में काम करते थे। वह रोज़ अपने पिता के लिए दोपहर का खाना लेकर खेतों में जाया करती थी।  मुस्कान का छोटा भाई, मोहित, १२ साल का था और जो गांव के विद्यालय की कक्षा आठवीं में पढ़ाई कर रहा था। जेठ की कड़ी धूप में, खेत से लौटते वक्त मुस्कान अपने भाई की छुट्टी होने का इंतज़ार करती थी। गांव के पुराने घर- जो कि विद्यालय के काफी समीप था, उसी घर की दिवार पर पेड़ की ठंडी छाओं में इंतज़ार करती थी।

 एक बार की बात है, मुस्कान रोज़ाना की तरह उसी दीवार पर बैठी अपने भाई का इंतज़ार कर रही थी। वह उस पेड़ की ठंडी छाओं के नीचे लेट गयी। ठंडी हवाओं  के साथ उसकी आँखे बंद होने लगी और वह एक खूबसूरत सपने में खो गयी। वह सपना उसकी जिंदगी के लिए काफी बड़ा था। उसके सोते हुए चेहरे के पीछे एक खूबसूरत सी  मुस्कान थी। उसको देख ऐसा प्रतित हो रहा था जैसे मानो उसके दिल में कितनी ख़्वाहिशों को दबाए, सपने ही सजा रही हो। खुद की पढ़ाई करने की चाह, कुछ कर दिखाने का जज़्बा, परिवार में मदद करने की इच्छा, खुद पढ़कर गांव के लोगों को शिक्षित करने के सपने सजा कर वह प्यारी सी नींद में खोई हुई थी। पर कहते है ना सपना, सपना ही होता है। सपनों में खोई मुस्कान को धीरे से एक आवाज़ आयी, ‘दीदी  देखो मैं आ गया’।

मोहित धीमी आवाज़ में अपनी दीदी को नींद से जगाते हुए बोला। मुस्कान हड़बड़ा कर अपने पैरो पर खड़ी हो गयी और अपने आँखों को हाथों से मलते हुए कहा, “तू भी ना मोहित, कितना अच्छा ख़्वाब देख रही थी मैं। जो मैं खुले आंखों से नहीं देख पाती हूँ, वो मैं बंद आंखों में कर रही थी। मैं अपने शौक को पूरा होते देख रही थी, पर तू है कि मुझे जगा दिया।” इतना कह वह अपने लाडले भाई के साथ बैठ गई। उसे मुस्कान के सारे ख्वाहिशों के बारे में सबकुछ पहले से ही मालूम था। परन्तु वह यह भी जानता था कि जिस गांव में वे लोग रहते है, वहां पर उसकी बहन का सपना शायद कभी पूरा नहीं हो सकता है। वह अपनी बहन को उदास होता देख, पास से आ रहे आइसक्रीम वाले की सीटी की आवाज़ सुन दौड़, दो आइसक्रीम लाकर अपनी दीदी को देते हुए कहता, “दीदी तुम्हारे सपने ज़रुर सच होंगे”।

ऐसा सुनकर मुस्कान के चेहरे पर हल्की सी और मुस्कान आ जाती है। इस दर्दभरी जिंदगी में एक प्यारा सा सुकून तो है, जो उसके भाई के बातों से मिली थी। वह खुश थी कि मैं ना सही पर मेरा भाई तो है जो अपने भविष्य को संवार सकता है। वह खुशी-खुशी अपने भाई के साथ घर को लौट जाती है, अपने अधूरे सपनों को अपने अंदर दबाये।  

Note: 2018 में ब्रेकथ्रू ने हज़ारीबाग और लखनऊ में सोशल मीडिया स्किल्स पर वर्कशॉप्स आयोजित किये थे। इन वर्कशॉप्स में एक वर्कशॉप ब्लॉग लेखन पर केंद्रित था। यह ब्लॉग पोस्ट इस वर्कशॉप का परिणाम है।  

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