आज बेटी हुई है तो कल बेटा भी होगा.

“आंधी आवेगी , तो मीह भी आवेगा”

यह एक मुहावरा है जिसके अलग-अलग समय पर अलग-अलग अर्थ निकाले जाते हैं। जब मेरी बेटी “पीहु” का जन्म हुआ तब यह लाईनें काफी बार सुनने को मिली जिसका शाब्दिक अर्थ यह निकाला जाता है कि “आज बेटी हुई है तो कल बेटा भी होगा”।

सदियां बीत गई, सालों बीत गए लेकिन आज भी हमारे समाज में रूढ़िवादी परम्पराएं व मान्यताएं ज्यों की त्यों चल रही है और इन रूढ़िवादी मान्यताओं व परम्पराओं की जकड़न में गांव से लेकर शहर तथा निरक्षर से लेकर साक्षर तक सब ही जकड़े हुए है। अगर प्रत्यक्ष रुप से देखा जाए तो यह सभी मान्यताएं व रीति-रिवाज महिला विरोधी हैं जो सिर्फ महिलाओं को ही सीमा रेखा में बंधे हुए हैं । आज के समय में ये रीति -रिवाज पुरे परिवार को प्रभावित करने के साथ -साथ खासतौर से लड़कियों और महिलाओं पर दुष्प्रभाव डाल रहे हैं । जिसका मैंने खुद अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया है ।

कुछ समय पहले की ही बात है जब मेरी बेटी “पीहु” गर्भ में थी तो मुझे समाज के लोगों से अलग-अलग बातें सुनने को मिली । कुछ लोगो का कहना था कि फलानां जगह दवाई मिलती है जिससे शर्तियाँ लड़का ही होगा तुम लक्ष्मी (मेरी पत्नी का नाम) को वहां दिखा दो, तो कुछ लोग कहते थे कि फलानां व्यक्ति महिला की चाल-ढाल देखकर बता देता है कि उसके पेट में लड़का है या लड़की हैं, इसलिए एक बार अपनी पत्नी को उसके पास ले जाओ ।

यहां तक कि गांव में जब भी मैंने और मेरी पत्नी ने अपने से बड़ों को नमस्कार किया तो​ उनके आशीर्वाद में सिर्फ यही मिला कि “भगवान तेरे चांद सा बेटा दें , या फिर “दूधो नहाओ पूतों फलों” । हर किसी की जुबान में यही होता कि कौनसा महिना चल रहा है, कब मुंह मीठा करवाओगे, कब पोते का मुंह दिखाओगे। इस तरह की बातों ने मुझे मानसिक रूप से बहुत हिला दिया था कि क्या औरत को सिर्फ लड़का ही पैदा करना होता है। समाज के इन व्यंग्य बाणों ने मेरे दिल को काफी छलनी कर दिया।

किसी के घर जाओ या बाहर कोई मिल जाये, बस सबका एक ही सवाल होता था कि इस बार “बेटा ” होने की पार्टी लेनी है । इस बात पर जब मैं उनसे यह कहता कि चाहे बेटा हो या बेटी मै पार्टी दूंगा, तो बस यही सुनने को मिलता कि पार्टी तो तभी लेंगे जब तेरा बेटा होगा, जब तेरा चिराग आएगा, जब तेरा वंश आगे बढ़ेगा । इस तरह की बातों ने मुझे बहुत झंझोड़ दिया था ।

खैर जैसे – तैसे समय बीतता गया और नोवें महीने के अन्त में मेरे घर में एक नन्हे मेहमान का आगमन हुआ, जिसका नाम मैंने “पीहु” रखा। जब इस बात का पता गांव में, रिश्तेदार को और पड़ोसियों को चला कि मेरे घर में बिटिया का जन्म हुआ है, तो सबके चेहरे फीके पड़ गये, सबके चेहरे का रंग उड़ गया जैसे कि कोई सांप देख लिया हो । जो जानकार, परिचित बच्चे के आगमन से पहले यह कहते थे, कि बेटा होने पर पार्टी लेंगे वे या तो दूरी बनाने लगे या फिर कुछ सांत्वना देने लगे कि घबरा मत । समय एक जैसा नहीं रहता, इस बार खराब समय था तो लड़की हुई, लेकिन अगली बार अच्छा समय आएगा । कुछ ने दबी-दबी आवाज में कहा कि अब तो यह अर्थवान हो गया । कुछ ने कहा कि घबरा मत” आंधी आवेगी तो मीह भी आवेगा” हालांकि मैंने बार-बार उन्हें समझाने का प्रयास भी किया किया कि मैं और मेरा परिवार बहुत खुश हैं ।

मैंने उन्हें कहा कि..
“पीहु सफर है मेरा,
पीहु ही है मेरी मंजिल,
पीहु के बिना गुज़ारा…….ऐ दिल है मुश्किल”

लेकिन समाज की जो सोच है शायद वह सोच बदलने में समय लगेगा।

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