Customize Consent Preferences

We use cookies to help you navigate efficiently and perform certain functions. You will find detailed information about all cookies under each consent category below.

The cookies that are categorized as "Necessary" are stored on your browser as they are essential for enabling the basic functionalities of the site. ... 

Always Active

Necessary cookies are required to enable the basic features of this site, such as providing secure log-in or adjusting your consent preferences. These cookies do not store any personally identifiable data.

Functional cookies help perform certain functionalities like sharing the content of the website on social media platforms, collecting feedback, and other third-party features.

Analytical cookies are used to understand how visitors interact with the website. These cookies help provide information on metrics such as the number of visitors, bounce rate, traffic source, etc.

Performance cookies are used to understand and analyze the key performance indexes of the website which helps in delivering a better user experience for the visitors.

Advertisement cookies are used to provide visitors with customized advertisements based on the pages you visited previously and to analyze the effectiveness of the ad campaigns.

In Focus, हिंदी 4th December, 2018

दो महिलाओं की दोस्ती की कहानी.

“औरत ही औरत की दुश्मन है।” हमारे समाज में यह बात इतनी बार कही जाती है कि सच लगने लगती है। हालाँकि, इस धारणा के अपवाद भी मौजूद है लेकिन, इसे कोई उजागर नहीं करता। मैं जब अपने ज़िंदगी के पन्नों को पलटती हूँ तो बहुत सी महिला दोस्त दिखाई देती है, उन सब मे सबसे पहले मेरी माँ का स्थान आता है जिनके सहयोग से आज मैं अपनी एक पहचान बना पाई हूँ।   

बिहार के एक राजपूत जमींदार परिवार में मेरा जन्म हुआ और काफी प्यार–दुलार से पालन- पोषण भी हुआ। लेकिन जैसे-जैसे किशोरावस्था में पहुंची, जेंडर आधारित भेद-भाव को अपनी ज़िंदगी में महसूस किया (ये बात आज समझ आती है पहले इस असमानता को जानती भी नहीं थी)। मेरे पिताजी तीन भाई थे। उनके दो भाई काफी पढ़े-लिखे है जिसकी वजह से वो आज एक डाक्टर व दूसरे दिल्ली के विश्वविधालय में पढ़ाते है। मेरे पिताजी सिर्फ नवीं कक्षा तक पढ़ें, क्योंकि वो जन्म से ही गूंगे-बहरे थे (ये शब्द अपने पिताजी के लिए सुनते व् संबोधित करते हुए मुझे बचपन से ही अच्छा नहीं लगता लेकिन आज का समाज इन्हें इन्ही नाम से पुकारता है व विकलांगता की श्रेणी में रखता है )। पिताजी की इस पहचान की वजह से कोई जमींदार व् सवर्ण परिवार से रिश्ता नहीं आया। यह मानते हुए कि मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की उनके साथ एडजस्ट कर लेगी और शादी के रिश्ते को बनाये रखेगी, उनकी शादी मेरे माँ से हुई। मेरी माँ की उम्र उस समय 16 वर्ष थी। वह 10वीं पास थी, आगे पढ़ने की इच्छा थी लेकिन शादी उनकी पढ़ाई से ज़रूरी समझी गई। माँ और पापा के बीच एक अच्छी बौन्डिंग थी।

हम सब जानते है कि पितृसत्तात्मक समाज में परिवार में जिनके पति पढ़े-लिखे व एक अच्छे पद पर होते हैं, उनकी पत्नी का रुतबा भी उस परिवार में ज़्यादा होता है। इस मामले में मेरी माँ का स्थान उस परिवार में न के बराबर था। दादा-दादी के सामने चाचा- चाची की अहमियत ज़्यादा थी और घर के सारे फैसले में दादा- दादी व् चाचा-चाची की ही भूमिका होती थी। मेरी माँ को हमेशा मैंने हमारे बड़े होने तक उनकी सेवा में लगे हुए देखा, क्योंकि वो ये मानती थी कि मेरे बच्चों को बेहतर मार्गदर्शन (शिक्षा व् करियर के मामले में) वो ही दे सकते है। मन ही मन सोचती रहती ..क्यूँ मैं एक ऐसे परिवार का हिस्सा हूँ?

मुझे आज भी याद है जब मैं 12वीं की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी और आगे की पढ़ाई करने के लिये मुझे शहर में रहना था ताकि मैं कॉलेज में एडमिशन ले सकूं। दादा जी की इच्छा थी कि मेरी शादी उनके जीते जी हो जाए, क्योंकि उनको डर था कि मेरे पिताजी मेरे लिए एक अच्छा लड़का/परिवार ढूंढने में असमर्थ होंगे। उनका एकमात्र एजेंडा था मेरी शादी। मैं शादी के लिए तैयार नहीं थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? किससे मदद मांगू? मेरे ताऊ जी ने बचपन से ही मुझे ये आश्वासन दिया था कि वो मुझे अपने साथ शहर ले जायेंगे (जहाँ उनकी पोस्टिंग थी) और मुझे डॉक्टर की पढ़ाई करने में मेरी मदद करेंगे। इस मुश्किल समय में, मैंने ताऊ जी से बोला-“आपने मुझे बोला था कि आप मुझे डॉक्टर बनायेंगे, मुझे आपने साथ ले चलिए मुझे शादी नहीं करनी”। उन्होंने इधर–उधर के बहाने बना कर, मेरी बात को टाल दिया।

कुछ दिन बाद मेरी माँ ने उनसे इस सिलसिले में बात की, तो ताऊ जी ने कहा, “बेटी को ज़्यादा पढ़ाओगी तो पढ़ा-लिखा दामाद पाने के लिए ज्यादा दहेज़ कहा से लाओगी? तुम्हारा पति तो कुछ कमाता भी नहीं है”। उनकी ये बातें आज भी बहुत तेज चुभती है। साथ ही मैं अपने माँ का ताऊ जी को जवाब भूल नहीं पाई हूँ –“मेरी बेटी के ज़िंदगी के फैसले आप लोगो के कहने से तय नहीं होंगे, वो अगर आगे पढ़ना चाहती है तो मैं उसे पढ़ाऊंगी, चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े”। बहस खत्म होने के बाद वो मेरे पास आई और गले लगा कर मुझे बोला “तुझे आगे पढ़ना हैं न, मैं पढ़ाउंगी तुम्हें, चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े…तू चिंता मत कर मैं सबसे लड़ लुंगी”।

मेरी माँ को मैंने पहली बार उस घर में किसी बात पे विरोध करते हुए देखा था…और वो विरोध सिर्फ मेरे लिए था । उसके बाद वो कभी चुप नही रही। मेरा दिल्ली में रहकर पढ़ाई करना भी लोगो गवारा नहीं था । मुझे समय पे पैसे नहीं भेजे जाते थे ताकि मैं वापस घर चली जाऊ, लेकिन मेरी माँ सबसे छिपाकर पैसे भेजती थी । मेरी पढ़ाई को पूरा करने में साथ देनेवाली माँ ने मेरे inter-caste marriage को भी सपोर्ट किया। दुनिया, समाज, परिवार, रिश्तेदारो की बातों कि परवाह किये बिना मुझे हर समय सपोर्ट किया ।

आज मैं जो भी हूँ वो मैं अपनी माँ के सपोर्ट की वजह से हूँ और ये सिर्फ मैं नहीं मेरे परिवार, रिश्तेदार व गाँव के लोग भी मानते है । अगर उस रात की बहस में वो मेरा सपोर्ट नहीं करती तो शायद मैं भी आज किसी जमींदार परिवार की बहु, पत्नी, माँ के नाम से जानी जाती । मेरी खुद की पहचान जो मुझे आज मिली है वो मेरी माँ के कदम-कदम के सहयोग से ही संभव हुआ है। वो मेरी सबसे पहली बेस्ट फ़्रेंड हैं । इसके अलावा और भी बहुत सारी महिलाएं है जो मेरे यहाँ तक के सफ़र को पूरा करने में हमेशा मेरा साथ व हिम्मत बनी है। मैं ये मानती हूँ कि सबकी जिंदगी में कोई न कोई महिला ज़रूर होगी जो उनका साथ देनेवाली दोस्त रही होगी । गुज़ारिश है, उन्हें याद करे और सबसे साझा करे ताकि हम “महिला ही महिला की दुश्मन है” की जगह अपनी अपनी सच्ची कहानियों से समाज को यह बता सके कि “महिला ही महिला की दोस्त है”।

Leave A Comment.

1 thought on “दो महिलाओं की दोस्ती की कहानी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Get Involved.

Join the generation that is working to make the world equal and violence free.
© 2025 Breakthrough Trust. All rights reserved.
Tax exemption unique registration number AAATB2957MF20214