मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा…
इस समय हमारे देश में ऐसा समय चल रहा है, जिसमें हमें इस गीत को और इसके शब्दों को आज फिर से सुनने और दोहराने की ज़रुरत है। हम लोग एक ऐसे देश में रहते हैं, जिसकी एकता की मिसाल वर्षों से दी जा रही है। हमारे देश में सौ से भी ज़्यादा धर्म है, कई तरह की भाषाएँ बोली जाती हैं। हर धर्म का अलग पहनावा और भोजन है। इतनी विविधताओं के बावजूद हमारे देश में सभी धर्म के लोग बड़े प्रेम से रहते आये हैं। देश में लोगों के बीच अपने धर्म के प्रति प्रेम स्नेह और दूसरों के धर्म के प्रति आदर है, जिसके कारण सभी यहां सम्मान और समानता से रहते हैं। हमने हर मुसीबत हर लड़ाई को बहुत ही साहस और विश्वास के साथ लड़ा है, विश्वास एक दूसरे के लिए सदैव रहा है। आज भी हमारे देश में कोई भी त्यौहार हो उसको हर धर्म मिलकर साथ में मनाता है। यहां लोगों ने कई बार धर्म को और जात पात को मुद्दा बनाकर अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकी है। लेकिन लोगों ने अपनी एकता और विश्वास से बड़ी से बड़ी लड़ाई जीती है।
लेकिन आज देश की परिस्थितियों ने मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या ये वही देश है? मेरे कार्य क्षेत्र के एक समुदाय में एक घटना हुई जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। ऐसे कुछ गाँव हैं जंहा पर हिन्दू मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग साथ रहते है। बहुत सालो से ये सभी लोग इसी गाँव में बड़े प्रेम से साथ मिल जुल कर रह रहे थे। इसी दौरान एक दिन जब गाँव में एक मुस्लिम परिवार के घर में एक महिला की तबियत ख़राब हुई तो गाँव के पास वाले डॉक्टर ने उन्हें ब्लॉक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए रेफर कर दिया। बस इसी बात को कुछ राजनैतिक तत्व के लोगो ने गलत मोड़ देकर गलत तरीके से प्रस्तुत करना शुरू कर दिया जिससे अफ़वाहों की लपट इन परिवारों को बुरी तरह प्रभावित करने लगी। सबसे कहने लगे कि, “इस परिवार की बेटी को कोरोना हो गया है, इसीलिए डॉक्टर ने उन्हें बड़े अस्पताल भेज दिया है। ये उसी (मुस्लिम) धर्म के लोग है, जो देश में कोरोना फैला रहे है, जिसकी सजा हम जैसे लोगो को भुगतनी पड़ रही है।”
इससे लोगो के व्यवहार में बहुत बदलाव देखा जाने लगा। आने वाले कुछ महीनों में चुनाव भी है, जिसके कारण लोग धर्म और जाति को मुद्दा बना कर अपना उल्लू सीधा करना चाह रहे है। कुछ लोगो ने दूसरे लोगो की बातो में आकर सभी मुसलमानों के आने जाने पर रोक लगा दी और अपने घर के सामने से निकलने वाला रास्ता भी बंद कर दिया। देखा – देखी सभी लोग अब ऐसा कर रहे हैं। और ऐसा कह रहे हैं कि, “इन्हें राशन मत दो ये वही लोग है, जिनके धर्म के लोग देश में कोरोना फैला रहे है। इन्ही के भाई बंधु है, जिन्होंने जगह – जगह इक्कठा हो कर माहौल ख़राब कर रखा है। बीमारी फैलाने में इनका बहुत बड़ा हाथ है। इन्हें अपने घर के आसपास से आने जाने मत दो इनकी मदद मत करो। दूर रहो इनसे नही तो तुम्हें भी ये बीमारी हो सकती है।”
गाँव में ऐसे हालत को संभालने का प्रयास प्रधान द्वारा और प्रधान के सहयोगी लोगो द्वारा भी किया जा रहा है। लोग अफ़वाहों और खबरों पर इतना भरोसा कर रहे हैं कि इतने सालो से साथ रहने वाले पड़ोसियों को अब टेढ़ी नज़रों से देख रहे हैं। सोशल मिडिया के माध्यम से बहुत सी फ़र्ज़ी खबरें भी फैल रही हैं। बिना जाने समझे किसी भी खबर को व्हाट्सप्प के माध्यम से एक दूसरे को फोर्वोर्ड कर रहे हैं।
कुछ समय से हमारे देश के कई शहरों में भी जगह- जगह पर ऐसी विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न हो गई हैं। जिसमें कहीं ना कहीं लोगों के आपसी प्रेम का स्थान.. शंका ने ले लिया। आज फिर से ज़रुरत आ पड़ी है कि सभी मिलकर साथ आएं और एक दूसरे की मदद करें। बहुत से ऐसे लोग या ऐसे तत्व हमें समाज में मिलते रहेंगे जो हमारी एकता और अखंडता को हमेशा तोड़ने की कोशिश करेंगे। हमें उस समय बिना धीरज खोये एक दूसरे की ताकत बनना है और बड़ी से बड़ी नफरत की आंधी के सामने भी डटकर खड़े हो जाना है।
हिंदी में एक कहावत है, ‘आंधी आये बैठ गवाएं’ … इसका मतलब है कि जब कोई समस्या आये तो ऐसी स्थिति का सामना शांति और धैर्य से करो। समय हमेशा एक सा नही रहता है। इसलिए हम इस स्थिति में अपने आप को शांत रखकर और धीरज से काम लें।
जाति धर्म का विषय एक संवेदनशील और भावनात्मक विषय है और इसका दुरुपयोग करके कई लोग फूट डाल कर राजनीतिक फायदा उठाते रहे हैं।आम आदमी बहकावे में आकर खुद के लिए और अपने आस पास के लिए मुसीबत भरा माहौल बनाने में लग जाते हैं जिससे सब आम नागरिक का ही जान माल का नुक्सान होता है।
अभी मैंने हाल ही में एक फिल्म देखी जिसका नाम ‘मुल्क’ है और वह फिल्म देख कर मेरी धर्म को देखने वाली नज़रें और साफ हो गई। एक जगह पर आ कर मेरे पास बातें कम पड जाती थी। मैंने भी सोचा कि वो लोग कौन है? कौन है ये लोग? और मैं कौन? मैं किस पक्ष में आती हूं? मैं अपने आप को कहां खड़ा करूँ? अपने धर्म के साथ या न्याय के साथ। फिर मैंने अपने आप को हर धर्म और जाति से अलग किया और मैंने इंसानियत को सबसे आगे रखा। धर्म के रूप में अगर अपनाना ही है तो इंसानियत का धर्म अपनाइए।
हमारे यहाँ देश में शांति और एकता की ज़रुरत हमेशा से रही है। और आज हमें और भी अधिक ज़रुरत है उसी शांति, एकता, प्रेम, आपसी सहयोग और विश्वास की जिससे हम इस संकट की घड़ी में एक दूसरे के साथ खड़े हो सकें और अपने अपने घरों में रहकर एकता और प्रेम का परिचय दें। अपने आस पास रहने वाले हर ज़रूरतमंद इंसान की मदद करें। बिना किसी की जाति धर्म देखे हर किसी की इस संकट की घड़ी में एक दूसरे का साथ दें, मदद करें। अफ़वाहों में ज़्यादा ध्यान ना दें। अपने आपको और अपने परिवार को सुरक्षित रखे और दूसरों को भी वही सुरक्षा प्रदान करने में सहयोग करें।