घरेलू हिंसा: लैंगिक समानता और हर तरह के घरेलू हिंसा को पहचानने की बात  .

पिछले दिनों महाराष्ट्र के ठाणे में एक व्यक्ति ने अपने बहु को सुबह के नाश्ते में देरी होने के कारण पिस्तौल से गोली मार कर हत्या कर दी। महाराष्ट्र के ही एक और घटना में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को महज खाने में नमक ज्यादा होने के कारण गला घोंटकर जान से मार दीया। वहीं हाल ही में, राजस्थान में एक ही घर में ब्याही गई तीन बहनों ने अपने दो बच्चों के साथ दहेज के लिए प्रताड़ित किए जाने से तंग आकर आत्महत्या कर ली। इसमें दो महिलाएं गर्भवती थी और बच्चों में एक नवजात शिशु शामिल था। हम आए दिन इस तरह की कई घरेलू हिंसा की घटनाएं सुनते रहते हैं। ऐसी छोटी-छोटी तर्कहीन कारणों या दहेज को लेकर महिलाओं की हत्या या प्रताड़ित किए जाने की खबरें आज आम हो चुकी है। लेकिन इन ख़बरों में घरेलू हिंसा को केवल एक घटना के रूप में दिखाया जाता है जिसे भूलकर लोग आगे बढ़ जाते हैं। साथ ही, ये ऐसी घटनाएं हैं, जहाँ घरेलू हिंसा मूलतः शारीरिक तौर पर की जा रही थी। लेकिन घरेलू हिंसा सिर्फ शारीरिक हिंसा नहीं होती। अपने साथी या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा यौन, आर्थिक, मानसिक, मौखिक, शारीरिक या भावनात्मक हिंसा भी घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है।  

घरेलू हिंसा सिर्फ शारीरिक हिंसा नहीं है

घरेलू हिंसा को समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि हम इसे शारीरिक हिंसा से अलावा समझने की कोशिश करें। जैसे कि, फिल्म Thappad को लीजिए। इस फिल्म को घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए सराहा गया था। लेकिन यहाँ भी बात जब तक शारीरिक हिंसा तक नहीं पहुँचती, तब तक मौखिक बदसलूकी को पति-पत्नी के बीच की सामान्य बातचीत दिखाई जाती है।

फिल्म में तापसी पन्नू का पति उसे लगातार अपमानजनक बातें कहता है जिस पर उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। किसी भी प्रकार के उत्पीड़न को किसी भी कारण से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए फिल्मों और धारावाहिकों में इसका सामान्यीकरण करना भी बंद करना होगा। हाल ही में जारी हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट अनुसार लगभग आधे भारतीय पुरुष और महिलाएं, पत्नी का अपने कर्तव्यों का पालन न करने पर, घरेलू हिंसा को सही समझते हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में लगभग एक तिहाई महिलाओं ने शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है। शारीरिक हिंसा के 80 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में हिंसा पति द्वारा किया गया। घरेलू हिंसा होने पर, आम तौर पर महिलाओं को यह कहा जाता है कि परेशानी, गुस्सा या शराब के लत के कारण उनका साथी शारीरिक हिंसा करने पर उतर आया है। हम अक्सर यह नहीं समझते कि घरेलू हिंसा की जड़ कोई नशा नहीं बल्कि बराबरी का दर्जा न होना है।

घरेलू हिंसा को किस तरह दिखाता है हमारा बॉलीवुड

बॉलीवुड की कोई भी ऐसी फिल्म ले लीजिए जहाँ घरेलू हिंसा दिखाई गई हो। यहाँ आम तौर पर घरेलू हिंसा को दिखाने के लिए महिलाओं को शारीरिक तौर पर पीड़ित होते दिखाया जाता है। यहाँ न ही महिलाओं और पुरुषों के बीच लैंगिक असामनता की बात होती है, और न ही घरेलू हिंसा के दूसरे प्रकारों को साफ तौर पर दिखाया जाता है। साल 2006 की Kabhi Alvida Na Kehna जैसी फिल्म को लीजिए। हालाँकि पूरी फिल्म दो जोड़ों में आपसी प्यार और तालमेल न होने को दिखाती है। लेकिन पहले जोड़े पर गौर करें, तो शाह रुख खान का अपनी पत्नी प्रीटी ज़िंटा के प्रति प्यार न होते हुए भी स्पष्ट है कि उनके बीच यौन संबंध कायम है। वहीं दूसरे जोड़े पर ध्यान दें, तो रानी मुखर्जी अपने पति अभिषेक बच्चन से भावनात्मक रूप से न जुड़ पाने के कारण, यौन संबंध नहीं चाहती जो अभिषेक को पसंद नहीं आता। यहाँ दोनों ही कहानियों में शादी के बाद यौन संबंध को एक ‘बाध्यता’ के रूप में दिखाया गया है, जहाँ अपने साथी के भावनाओं की शायद कोई अहमियत नहीं। इसके अलावा, यह कहानी घरेलू हिंसा की नहीं, प्यार और रिश्तों की बात कहता है।

वहीं, दूसरी ओर फिल्म Kabir Singh में शाहिद कपूर प्यार के नाम पर अपनी प्रेमिका को न सिर्फ मौखिक बल्कि शारीरिक और भावनात्मक रूप से उत्पीड़ित करता है। हालाँकि इसमें शाहिद को अपनी प्रेमिका के प्रति एक ‘समर्पित प्रेमी’ के रूप में दिखाया गया है, लेकिन पूरी फिल्म कई तरह के हिंसा को बढ़ावा देती नज़र आती है। इसी तरह, स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला लोकप्रिय धारावाहिक Anupama की बात करें, तो जबकि यह कहानी अनुपमा के सशक्त होने की है, इसमें अनुपमा को उसकी सास द्वारा मौखिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने पर कोई बहस नहीं होती। यहाँ तक कि कार्यक्रम में बार-बार सास को ‘पुराने ख्यालों’ वाली बता कर हिंसा की हर घटना को नज़रअंदाज़ किया जाता है। अनुपमा को एक लम्बे समय तक प्रताड़ित किए जाने के बावजूद, घर के किसी भी सदस्य का कोई प्रतिक्रिया न होने को भी धारावाहिक ने सामान्य दिखाया है। 

मनोरंजन की दुनिया में इस तरह की कहानियों को साल दर साल दिखाते रहने से, आम लोगों में दकियानूसी और पितृसत्तात्मक विचार पुख़्ता होते चले जाते हैं। अपनी इच्छा न होते हुए भी, किसी भी दबाव में यौन संबंध बनाना घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है। विभिन्न रिपोर्ट की मानें तो, भारतीय परिवेश में परिवार नियोजन के मामले में महिलाओं की कोई भूमिका नहीं होती।

शादी के बाद उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने साथी के यौन इच्छाओं को बिना किसी शर्त के पूरा करेगी। फिल्मों में ऐसी घटनाओं को महज प्यार की कमी, शादी निभाने का अनिवार्य उपाए या नोक-झोंक के रूप में दिखाने से यौन हिंसा जैसी गंभीर समस्या सामान्य होता नज़र आता है।

साथ ही, महिलाओं के आर्थिक हिंसा की भी यहाँ कोई बात नहीं होती। हालाँकि बॉलीवुड की प्रोवोक या लिपस्टिक अंडर माई बुर्का कुछ ऐसी गिनी-चुनी फिल्में हैं; जहाँ घरेलू हिंसा की गंभीरता को दिखाने की कोशिश की गई है। लेकिन ये फ़िल्में न तो बॉलीवुड की हिट व्यावसायिक फिल्मों का हिस्सा बन पाई और न ही आम जनता के बीच अपनी जगह बना पाई है। यह ज़रूरी है कि हम पुराने विचार और हिंसा के बीच अंतर को समझें। हमारा पितृसत्तात्मक समाज प्यार, फ़र्ज़, रिश्तों और घर की बात के नाम पर अक्सर महिलाओं के दायरे को  हिंसात्मक रिश्तों में तय कर देता है। चूँकि महिलाओं की परवरिश ही एक ऐसे समाज में होती है, जहाँ उसे त्याग, ममता, प्यार और सभी के साथ का पाठ पढ़ाया जाता है, उसके लिए ऐसे रिश्तों से बाहर आना मुश्किल होता है। परिवार का साथ न मिलना या सामाजिक और आर्थिक रूप से स्वतंत्र न होना भी हिंसात्मक रिश्ते से बाहर आने में एक बहुत बड़ी बाधा है। 

क्यों घरेलू हिंसा घर की बात नहीं 

जब तक हम घरेलू हिंसा को घर की बात और इज़्ज़त के नाम पर छिपाना बंद नहीं करेंगे, तब तक हर मामला दर्ज नहीं होगा। महिलाएं कभी डर, तो कभी झिझक, कभी बच्चों का ख्याल तो कभी चुप रहने की सीख की वजह से  घटना की जानकारी नहीं दे पाती। घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलो में समाज और परिवार के लोगों की भी अहम भूमिका है। एक स्वस्थ, सुरक्षित और समान समाज की रचना के लिए लोगों का घरेलू हिंसा को समझना और एक-दूसरे को सहयोग देना ज़रूरी है। 

 

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