‘अपनी ज़बान संभाल कर बात करें! यदि यहाँ बैठना है तो मर्यादा बना कर रखें। आप यह क्यों कह रहे हैं की प्रधान का अवैध संबंध है। प्रधान मैं हूँ और जिस व्यक्ति के बारे में आप बात कर रहे हैं वह मेरा पति हैं। वह प्रधान नहीं है, मैं प्रधान हूँ। आप मेरे पति को जो चाहे अपशब्द कहें पर प्रधान को नहीं।’
इस प्रकार विद्यावती को आवेग के साथ सबको शांत करते देख मैं स्तब्ध थी। अचम्भे के साथ ख़ुशी भी थी यह देख कर की जो औरत कुछ माह पूर्व अपने पति के इशारों पर हर वक़्त चलती थी, वह आज उसके दिए गए धोखे और दुःख को पीकर अपने प्रधान पद की गरिमा बनाये रखने हेतु भीड़ से किस प्रकार दृढ़ता से बात कर रही है |
जब मैं लखनऊ के मोहनलालगंज ब्लॉक के कनेरी ग्राम पंचायत की प्रधान विद्यावती से पहली बार मिली थी तो वह एक अत्यंत संकोची, शर्मीली एवं पति के डर में जीने वाली महिला थी जो कुछ बोलने के पहले भी पति की आज्ञा का इंतज़ार करती थी | प्रतिभागी उपस्थिति सूची में दस्तख़त के लिए भी उसे अपने पति –‘प्रधान पति’- की अनुमति चाहिए थी |
नारी संघ बैठकों के दौरान उसमे कुछ बदलाव तो प्रतीत होता था किंतु हाल की घटना के कारण उसके अंदर से मानो ज्वालामुखी फूट पड़ा था – शायद जो काबिलियत और तेज़ी उसमें सुशुप्त थी वह उसके अंतर्द्वंद और भीतरी भावनात्मक हलचल के कारण प्रस्फुटित हो गयी थी |
बात यह थी की हाल ही में विद्यावती को अत्यधिक भावनात्मक कष्ट झेलना पड़ा क्योंकि उसका पति एक महिला के साथ गाँव से भाग गया था। इसके कारण उसके पूरे परिवार को लोगों के कटाक्ष व हंसी का सामना करना पड़ रहा था। उसके पति के विरुद्ध पुलिस रिपोर्ट दर्ज करा दी गयी थी, उस अन्य महिला के पति द्वारा। किंतु शर्मिंदगी, व हंसी के पात्र बनाए जाने के बाद भी विद्यावती ने हिम्मत बनाये रखी। उसने पुलिस से अपने पति के विरुद्ध उचित कार्यवाही के लिए कहा है तथा अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी स्वयं वहन करने का निर्णय लिया।
गाँव में बैठक के दौरान जब कुछ व्यक्तियों ने उसका मज़ाक बनाने की कोशिश की तब विद्यावती ने ज़ोरदार आवाज़ में उनका विरोध इस प्रकार किया ‘अपनी भाषा को नियंत्रित करें। प्रधान पद की गरिमा के विरोध में मैं कुछ नहीं सुनना चाहती| मैं प्रधान हूँ इसलिए बैठक में शिष्टता बना कर रखें।’
उससे बात करने पर उसने बताया की तारों की टोली के सत्र उसके घर पर चलते थे। किशोर किशोरियों को इन सत्रों में जेंडर, भेद भाव व अधिकारों के बारे में रोचक तरीकों से समझाया जाता था। इन सत्रों में हुई चर्चाओं ने उसके मन पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा। इसलिए जब उसे कठिन परिस्थितियों ने घेरा तो उसने सोचा की वह भी सब कुछ कर सकती है। महिलाएँ व किशोरियों में भी क्षमता होती है जो किशोर या पुरुषों में होती है | इससे उसका आत्म विश्वास बढ़ा। साथ ही नारी संघ की बैठकों से भी उसे इसी प्रकार का संबल व विश्वास मिला। इन बातों के कारण आज एक सहमी रहने वाली महिला ने सिद्ध कर दिया की महिलाएँ मर्दों के सामान ही क्षमता दिखा सकती हैं |
इस ‘दे ताली’ कार्यक्रम के दौरान एक महिला प्रधान को इस तरह सशक्त होते देख मुझे गर्व हुआ| विद्यावती ने आखिरकार अपने अधिकार को ही नहीं समझा अपितु अपने पद का उत्तरदायित्व भी संभालने का भरसक प्रयास कर रही है। एक दबी आवाज़ आज बुलंद हो चुकी है। विद्यावती के जज़्बे को सलाम!