बेटियों से नहीं! बेटों से पूछें कि देर रात वे घर से बाहर क्या करने गए थे ?.

ध्यान दें: इस पोस्ट  में सीमा की कहानी, एक असली कहानी नहीं है।

निजी क्षेत्र में 9 से 5 बजे वाली अपनी नौकरी करते हुए सीमा, माता-पिता और छोटे भाई के साथ हंसी खुशी से जिंदगी गुज़ार रही थी। सीमा घर में सबसे बड़ी थी इसलिए जल्द ही अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए उसने एक कम्पनी में डेटा एंट्री की जॉब ले ली थी। छोटा भाई अभी 11वीं कक्षा में पढ़ रहा था। नौकरी से सारे खर्चे पूरे नही हो पा रहे थे इसलिए सीमा ने शाम को नौकरी से लौटने के बाद घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था। शुरुआत में ये सब थोड़ा मुश्किल ज़रूर था लेकिन धीरे-धीरे सीमा की मेहनत रंग लाने लगी और स्थिति बेहतर होने लगी।

सवेरे उठ कर घर के सारे काम करना, फिर ऑफिस जाना और वापस आकर घर के कामों के साथ बच्चों को पढ़ाना, अब यही सीमा की जिंदगी हो गई थी। जिसे वो बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ संभाल रही थी। पर एक दिन, रात के 9 बजने वाले थे और सीमा घर नही पहुंची थी। पिता जी बहुत बार फ़ोन मिला चुके थे पर हर बार फ़ोन स्विच ऑफ बता रहा था। परिवार के सब लोग काफी परेशान हो रहे थे क्योंकि वह हमेशा 6 बजे तक घर पहुंच जाती थी और अगर वो लेट होती थी तो फोन पर पहले ही बता देती थी, लेकिन आज ऐसा नही हुआ।

इसी तरह परेशान होते हुए सुबह के 5 बज चुके थे। एक दो रिश्तेदारो से बात करके सीमा के पिता पुलिस कम्प्लेंट करने की तैयारी कर ही रहे थे कि फ़ोन की घंटी ने सबको चौंका दिया। एक अंजान शख्स ने कहा की आप जल्दी से पुलिस स्टेशन आ जाइये। इतना सुनते ही पूरा परिवार घबरा गया और सीमा के पिता अपने एक रिश्तेदार के साथ पुलिस स्टेशन पहुचें, जहाँ जा कर उन्हें पता चला कि सीमा को गैंग रेप करने के बाद उसे मार दिया गया था और पुलिस ने उसकी बॉडी को हॉस्पिटल पंहुचा दिया है।

सीमा के गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए बहुत लम्बे समय तक सीमा के पिता पुलिस स्टेशन के चक्कर काटते रहे पर पुलिस दोषियों को ढूढ़ने की दुहाई देती रही और फिर जल्दी ही मामला ठन्डे बसते में चला गया और सीमा को इंसाफ नही मिल सका। ये बात सिर्फ़ एक सीमा की नही है, हमारे देश में हर 15 मिनट में एक सीमा का बलात्कार हो रहा है। बलात्कार होता है, थोड़े समय मीडिया उस मुद्दे को उठाता है, विपक्ष उस पर सरकार को घेरने की राजनीति करता है और अक्सर राजनेता लड़कियों को ही दोष देते हुए, उनके कपड़े, उनकी आज़ादी को मुद्दा बनाते हुए, कई तरह की अभद्र टिप्पणियाँ करते दिखते हैं। उनके सियासी नफे और नुकसान तलाशे जाते हैं। इसी तरह धीरे-धीरे वो मुद्दा शांत हो जाता है।

हम सिर्फ़ लड़कियों के व्यवहार, उनके कपड़ो पर दोष मढ़ते हुए, उनको ही इस बलात्कार का ज़िम्मेदार बना देते है। हम लड़की के देर से आने पर उससे दस सवाल करेगें पर लडको को रात-रात भर घर के बाहर रहने पर कोई बात नही करेगें। हम लड़कों को बाहर आने-जाने की आज़ादी देंगे पर लड़कियों को ‘समाज ख़राब है’ की दुहाई देकर घर में ही कैद करके रख देगें। क्या हमने कभी सोचा है, समाज किसकी वजह से ख़राब हैं? क्या समाज में कही दूसरी दुनिया के लोग आ गये हैं ? समाज बना किससे है ?

सड़कों, ऑफिसों या किसी सार्वजनिक स्थान पर महिलाओं के कपड़े नहीं बल्कि उनके चेहरे से झलकता आत्मविश्वास, स्वच्छंद रवैया और, अब तक पुरुषों के कब्ज़े में रहे कई क्षेत्रों में उनकी पहुंच से, कई पुरुषों को बौखलाहट हो रही है। सदियों से स्थापित पुरुष प्रधान समाज के समर्थक, ऐसी औरतों को सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने का ज़िम्मेदार मानते हैं और यौन हिंसा कर उन्हें समाज में उनकी सही जगह दिखाने की कोशिश करते हैं। एक ओर जहाँ लड़कियाँ पहले के मुकाबले ज़्यादा पढ़-लिख रही हैं और कार्य क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं, वही दूसरी ओर पुरुष प्रधान समाज आज भी महिलाओं की कुशलता और क़ाबिलियत को दरकिनार करते हुए, उन्हें पीछे धकेलने और एक दायरे में कैद करने में लगा है।

हमे पुरुष-प्रधान समाज के सभी दायरों को तोड़ते हुए आगे बढ़ना होगा और अपने समाज को ऐसे लोगो से बचाने के लिए एक साथ मिलकर आवाज़ उठानी होगी। हम इसकी शुरुआत घर से करते हुए आगे बढ़ सकते हैं। हमे लड़कियों के साथ लड़कों को भी बताना होगा की हमे लड़कियों और महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, किस तरह से हम अपने समाज को ऐसा बना सके जिसमें लड़कियाँ और महिलाएं सुरक्षित महसूस कर सके और एक सशक्त ज़िन्दगी जी सकें। यौन-उत्पीड़न करने वाले किसी दूसरी दुनिया से नही आते है। वह हमारे समाज से ही हैं और हम अपने घर को सुरक्षित बनाते हुए समाज को सुरक्षित बनाने में अपनी अहम भूमिका निभा सकते है।

हम जो इंसानों की तहज़ीब लिए फिरते हैं,

हम सा वेह्शी कोई जंगल के……दरिंदो में नही..!!

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