Picture courtesy: The Indian Express
हम इस बात से बहुत खुश होते हैं, यहाँ तक कि बहुत गर्व करते हैं कि हम भारत के देशवासी हैं। और हो भी क्यों ना क्योंकि यही ऐसा देश है जहाँ विभिन्नता में एकता है। आप सभी सोच रहे होंगे कि आज अचानक देश, विभिन्नता, एकता के बारे में लिखने की मुझे क्या ज़रुरत महसूस हुई। पर मैं आप सभी का ध्यान विसयोजन यानी (Segregation) की ओर लाना चाह रही हूँ। आज मैं आप सभी से एक ऐसी ही कहानी साझा करने जा रही हूँ ।
हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र ज़िले में एक गांव बसा हुआ है, वो भी वहां जहाँ महाभारत की युद्धभूमि है। उसी गांव की एक छोटी सी बस्ती, गांव से लगभग 1 से 2 किलोमीटर की दूरी पर बसी हुई है, जहाँ किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नही है, यहाँ तक कि मूलभूत सुविधाएँ भी नही हैं। इस बस्ती में लगभग 150 परिवार रहते हैं।
ये बस्ती गांव से दूर इसलिए है क्योंकि यहाँ केवल दलित जाति से संबंध रखने वाले परिवार बसे हैं। इन परिवारों का शोषण हर तरह से होता था और होता आ रहा है। बस शोषण करने के तरीके बदल दिए जाते हैं। इस बस्ती के लिए किसी तरह का कोई स्कूल नही है। यहाँ के बच्चों को स्कूल के लिए और प्राथमिक शिक्षा के लिए गांव में पैदल जाना होता है ।
इस बस्ती के ऊंची जाति के लोगों ने हर छोटी से बड़ी जरूरत को लेके बस्ती के लोगो के साथ यह विसयोजन (Segregation) किया है। दलितों की बस्ती गांव से दूर बनाई गई। स्कूल में पढ़ने की इजाज़त नही थी फिर भी कोई स्कूल तक गांव में पहुंच जाते तो उनके लिए पीने के पानी के मटके अलग रखे जाते, उन बच्चों को क्लास में नीचे ज़मीन पर बैठाया जाता। अध्यापक भी पढ़ाने की जगह उनसे स्कूल में साफ सफाई का काम करवाते। जो दलित परिवार ऊंची जाति के लोगो के यहाँ मज़दूरी करते हैं उन्हें रोटी और लस्सी भी ऊपर से फेंक कर दी जाती है, जैसे एक कुत्ते के सामने रोटी फेंक देते हैं, बिल्कुल वैसे ही। दलितों के लिए बर्तन भी अलग रखे जाते रहे हैं। यहाँ तक कि पीने के पानी के कुएँ ओर नल भी अलग अलग हैं। जो काम साफ सफाई से जुड़े हैं, वो ज़्यादा करवाये जाते हैं। वह ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि ये नीची जाति के हैं और अछुत हैं।
दलित महिलाओ का शोषण लगातार होता आ रहा है। वैसे तो दलित अछुत है लेकिन दलित महिलाओ के साथ हर जगह जो उनका मानसिक और शारीरिक शोषण हो रहा है, उसे ऊँच जाती अपना अधिकार मानते हैं। दलितों के साथ जो उनके मन मे आये वो करते हैं और कोई रोकने वाला भी उस समय नही मिलता हैं। कहा जाता है की ये हमारा मनोरंजन नही करेंगे तो कौन करेंगे। और दलित इसलिए भी ये सब सहन करते हैं क्योंकि मजदूरी और काम तो उनके खेतो में ही करना है, वही से परिवार चलता है।
अगर कोई महिला या दलित शोषण के खिलाफ बोलता है तो उसे सजा दी जाती है। उसके घर को जला दिया जाता है, या पूरी बस्ती में आग लगा देते हैं। इसलिए डर के कारण कोई भी बोल नही पाता हैं। दलित कितना भी पढ़ा लिखा या अच्छे पद पर नौकरी करने वाला ही क्यों न हो उसे भी शोषण का शिकार होना पड़ता है क्योंकि वह दलित हैं। यह हालात केवल इस बस्ती का नही है। हर जगह हमे दलित बस्ती, गांव में अलग जगह ही बसी मिलेगी और इसी तरह का Segregation हमे देखने को मिलेगा। यह हर दलित की कहानी है।
सभी ऊँची जाति के लोगो की सोच दलित का शोषण करना नही है। कुछ ऐसे भी है जो दलितों को इस स्थिति से बाहर निकालना चाहते हैं और बहुत कुछ लिख रहे हैं, अलग अलग तरीकों से काम कर रहे हैं। पर शोषण करने वाले भी इसी समाज का हिस्सा है और उन्हें भी समझना होगा कि इंसान इंसान ही होता है चाहे वह किसी भी धर्म,जाति से क्यों न हो। जब तक मानसिकता नही बदलेगी और Segregation को खत्म नही किया जाएगा तब तक हम चाहे किसी भी सदी में क्यों न हो तब तक जाति प्रथा खत्म नही हो सकती है। इसलिए शायद सही ही कहते हैं कि जाति कभी नही जाती।
More than casteism this is impact of poverty. Have u ever seen any affluent ST and SC going through this(there are many. And thanks to reservation their children get easy way to top colleges and govt jobs). Ofcource if somewhere people still follow this. It should be condemned and dealt with law.
Hi, Richa. There is a documentary by Stalin K called “India Untouched: Stories of a People Apart”. Do give it a watch. It addresses all the points and questions you are raising. People who are economically comfortable and belong to lower castes, also face discrimination. Access to money is not the only hurdle which limits a person’s access to opportunities like education etc.