पढ़ी लिखी लड़कियाँ: कुछ नारीवादी पंक्तियाँ.

स्त्री-पुरुष समीकरण

1.

जब पिता, पिताओं से नहीं होते

छोड़ देते हैं अपनी शासक छवि

और अपनी बेटियों के साथ खड़े होते हैं

 

उसी तरह जब भाई बहनों से हो जाते हैं

अपनी बहनों की प्रेम कथाओं को अपने भीतर महफ़ूज़ रखते हैं

अपनी बहनों की आज़ादी के लिए लड़ते हैं 

ऐसे पति भी हैं, जो पत्नियों के स्वामी नहीं हुए 

अपनी पत्नियों की सहेलियों सा बन जाते हैं 

 

ऐसे पिता, पति और भाई 

उनके चेहरे पर स्त्रियों जैसी ही यात्रा दिखाई देती 

उन्हें स्त्री ही कहा जाता है 

इसका मतलब दो तरह से लिया जाता है

एक गाली और एक गुण की तरह 

लेकिन ये दोनों ही तरह से व्यवस्था को चुनौती देते 

ऐसे पुरुष हर समय की पैदाइश होते हैं 

और अपने पुरुषत्व: के साथ ही स्त्री होना बंद नहीं करते

 

2.

कभी-कभी माँएं भी पिताओं की परिभाषा में उतर जाती हैं 

अपने स्त्रीत्व के साथ ही, बिना शासक हुए

अपने बच्चों को सुरक्षित कवच देती 

सृजन की पूरी ज़िम्मेदारी निभाती हुई 

ठीक अपनी परिभाषा के विपरीत

वो सब काम करती हैं

जो पिताओं के लिए रचे गए हैं

 

कभी-कभी बहनों का साहस

कमज़ोर भाइयों की ताकत बन जाता है

पशुओं की तरह हांकी हुई पत्नियाँ 

महत्वपूर्ण और अंतिम निर्णय लेती हैं   

डंके की चोट पर 

वैसे ही जैसे अपेक्षित छवि में मर्द लेते हैं 

 

इस तरह स्त्रियों का पुरुषों सा होना 

पुरुषों का स्त्रियों सा होना

एक प्राकृतिक गुण की तरह 

प्रवाहित होता रहता है

और लैंगिक ढांचों के सारे सूत्र टूटते रहते हैं

 


 

अँधेरे से उजाले की ओर

मुँह-अँधेरे उठकर 

घर के काम निपटा कर 

विद्यालय जाती बच्चियाँ

 

विद्यालय जिसके दरवाज़े पर लिखा है

“अँधेरे से उजाले की ओर”

 

घर से पिट कर आई शिक्षिका 

सूजे हुए हाथ से लिख रही है बोर्ड पर 

मौलिक अधिकार 

 

आठवीं कक्षा की गर्भवती लड़की 

प्रश्नोत्तर रट रही है विज्ञान के “प्रजनन” पाठ से 

 

मंच से महिला पंच ने 

घुंघट में ही भाषण दिया 

महिला उत्थान का 

तालियाँ बजी बहुत ज़ोर से 

सहमति और उल्लास के साथ 

भाषण पर नहीं, सूचना पर 

जो चिपक कर आई थी भाषण के साथ ही 

सूचना जो “करवाचौथ” के अवसर पर आधे दिन की छुट्टी की थी 

 

लौट रही हैं बच्चियाँ,गर्भवती लड़की, पिटकर आई अध्यापिका और घुघंट में महिला पंच 

अपने-अपने घर वापस

विद्यालय से, 

विद्यालय जिसके दरवाज़े पर लिखा है

“अँधेरे से उजाले की ओर’

 

लौट रही हैं सब एक साथ 

अपना-अपना उजाला लिये


पढ़ी लिखी लड़कियाँ

 

लड़कियाँ पढ़ लिख गई

तमाम सरकारी योजनाओं ने सफलता पाई

गैर सरकारी संस्थाओं के आँकड़े चमके

पिताओं ने पुण्य कमाया और

भाईयो ने बराबरी का दर्जा देने की संतुष्टि हासिल की

 

पढ़ी लिखी लड़कियाँ

चुका रही हैं क़ीमत एहसानों की

भुगत रही हैं शर्तें

जो पढ़ाई के एवज़ में रखी गई थी

 

आज़ादी के थोड़े से साल जो जिए थे हॉस्टल में ली गई छूट से, उनको सहेजने की, जी तोड़ मेहनत की

उच्च शिक्षा ली

ताकि कुछ कमाएं धमाएं और शादी के एक दो साल और टल जाएं

एम ए बी एड लड़कियाँ ब्याही जाती रहीं और

एक कमाऊ ग़ुलाम के हासिल होने पर

इतराते रहे निकम्मे पूत

 

काम आ रही हैं

पढ़ी लिखी लड़कियाँ 

बच्चों को पढ़ाने में 

महफिलों को सजाने में

चमड़ी गलाकर दमड़ी कमाने में

 

भोग रहे हैं असली सुख उनके हुनर का अलग-अलग भूमिकाओं के शासक

लड़कियाँ इस बात को बखूबी समझ रही हैं

 

आज़ादी का चस्का क्या है 

बता रही हैं अलग-अलग पीढ़ियों को

और तैयार कर रही हैं आज़ाद नस्लों को 

तमाम मुश्किलों के बावजूद

ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने पढ़ा है 

आज़ादी के आंदोलनों का इतिहास

वे जान रही हैं

कि कैसे रची जाती हैं योजनाएं संगठनों में किसी मिशन को कामयाब बनाने के लिये।

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