Impact Stories, हिंदी 12th October, 2018

क्या बेटियों को अपने माता-पिता की आर्थिक सहायता करने का हक नहीं ?.

हम अपनी बेटी की कमाई नहीं खाते।’

‘वो अपनी बेटी की कमाई खाते हैं।’

समाज की इस तरह के तीक्ष्ण टिप्पणी के कारण कई माता पिता अपनी बेटियों के नौकरी करने का विरोध करते हैं। इस पितृसत्तात्मक सोच के कारण कई लड़कियों के सपने अधूरे रह जाते हैं। घर की खराब आर्थिक हालात के बावजूद उनकी कभी हिम्मत नहीं होती की वे अपने माता-पिता को आर्थिक सहायता दे पायें। शीलू व उसकी बहन की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी|उसके पिता ने उसको पास के विद्यालय में पढ़ाने की अनुमति दे दी थी किन्तु समाज के डर से शीलू कभी उन्हें अपनी कमाई देने की न हिम्मत कर पायी न ही व्यावसायिक उन्नति के लिए प्रयास कर पायी।

ब्रेकथ्रू द्वारा चलाये जा रहे तारों की टोली कार्यक्रम से उसे प्रेरणा मिली| उसे समझ में आया की लड़कियाँ भी वो सब कर सकती हैं जो लड़के करते हैं। शीलू बताती है कि जब उन्हें स्कूल के प्रधानाध्यापक ने तारों की टोली का ध्रुव तारा बनने को कहा तो उन्हें तारों की टोली के ट्रेनर पर बड़ा गुस्सा आया| उन्हें  गुस्सा था की तारों की टोली के बच्चो की ज़िम्मेदारी उन्हें दे दी गयी थी| प्रधानाध्यापक के आदेश के कारण वो मजबूर थी| अब वो तारों की टोलीं की क्लास में हर माह रहने लगी | शीलू बताती है कि एक क्लास के बाद उन्हें तारों की टोली की क्लास अच्छी लगने लगी क्योंकि उन्हें हर क्लास में कुछ नया सीखने को मिलता | सत्र के दौरान ही शीलू ने जाना कि लड़की और लड़कों के काम में कोई फर्क नहीं है। दोनों ही सारे काम कर सकते हैं | लड़कियाँ भी लडको की तरह ही घर की सारी ज़िम्मेदारियाँ उठा सकती हैं, चाहे वो घर चलाने की ज़िम्मेदारी ही क्यों न हो |

शीलू एक मध्यम वर्ग परिवार की सदस्य है| उसके घर में उसके अलावा उसके माता पिता, एक छोटी बहन और दो छोटे भाई हैं| शीलू के पिता एक होम गार्ड की नौकरी करते हैं जो पूरे परिवार की आजीविका का एकमात्र स्रोत है| शीलू बताती है, पहले उन्हें लगता था कि घर के खर्च की ज़िम्मेदारी उठाना सिर्फ उनके पापा और उनके भाइयों (यानि पुरुषों) का काम है |घर की आर्थिक तंगी को देखकर उन्हें लगता की उन्हें भी कुछ करना चाहिए पर इस भ्रम के कारण वो कुछ करने का नहीं सोच पायी |

तारों की टोली के सत्रों ने जो उन्हें समझ दी उससे उन्होंने ठाना कि अब वो घर के लिए कुछ करेंगी | उन्होंने अपने विचार मुझसे (ब्रेकथ्रू के ट्रेनर मोहित) से साझा किये | उन्होंने अपनी आय का स्रोत बढ़ाने के लिए दूसरा काम तलाशना शुरू किया | एक माह के भीतर उन्होंने अपनी बहन के साथ दूसरे विद्यालय में पढ़ाना शुरू कर दिया जिससे 1500 के स्थान पर अब वो 3000 रुपये पाने लगी और उनकी बहन को भी 2000 रुपये मिलने लगे | इन पैसो से उन्होंने अपने घर में मम्मी पापा की मदद करने की शुरुआत की |

शीलू के पापा ने शुरू में तो मना किया पर शीलू के ज़िद करने पर वो इस बात के लिए तैयार हो गए | पर शीलू अभी इस काम से भी खुश न थी | इससे वो अपना और अपने भाइयों के खर्च ही उठा पा रही थी | उसने मुझसे जॉब के सम्बन्ध में जानकारी मांगी | मैंने एक एन जी ओ के बारे में उन्हें बताया। उसने वहां पर अपनी बहन के साथ जाकर इंटरव्यू दिया और उन दोनों को जॉब मिल गयी जिससे उन दोनों को 16000/- (8000/- प्रति) सैलरी मिलने लगी। अब वो अपने घर में मदद कर पाती है |

उसके इस दृढ़ संकल्प से गाँव की और लड़कियों को भी प्रेरणा मिल रही है| अब शीलू का पूरा परिवार उसकी तारीफ़ करता है|

 

Leave A Comment.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Get Involved.

Join the generation that is working to make the world equal and violence free.
© 2024 Breakthrough Trust. All rights reserved.
Tax exemption unique registration number AAATB2957MF20214