सम्मान के नाम पर हत्या बनाम ऑनर किलिंग.

उत्तर भारत के कई राज्यों में प्रेमी जोड़ों की हत्याओं की घटनाएं लगातार बढती जा रही हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि पहले ऑनर किलिंग नहीं होती थी। ऑनर किलिंग बहुत लंबे समय से होती आ रही है। अंतर इतना है कि अब संचार के माध्यम बढ गए हैं। प्रचार माध्यमों व लोगों के साहस के कारण इस तरह के मामले सामने आने लगे हैं। ऑनर किलिंग कब शुरू हुई इस पर न ध्यान देते हुए हम यह जानने की कोशिश करेंगे की ऑनर किलिंग के क्या कारण है?

हरियाणा राज्य में लंबे समय से ऑनर किलिंग के समाचार आ रहे हैं। जब एक ही गांव के लड़के लडकी एक दूसरे से प्यार करके एक साथ जीवन गुजारना चहाते हैं तो समाज की इज्जत के नाम पर उस प्रेमी जोडे को कत्ल कर दिया जाता है। कई मामलों में तो यहां तक सुनने को आया है कि लड़के और लड़की को तड़पा तड़पा कर मारा जाता है जिससे सुनने वालों के रोंगटे खडे हो जाते हैं। कुछ समय तक गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांव के लड़के और लड़कियां डर के मारे बातें करना बंद कर देते हैं लेकिन प्यार ज्यादा दिन नहीं छुपता फिर कहीं न कहीं से कोई प्रेमी जोडा पैदा हो जाता है।

ऑनर किलिंग के मामलों में देखने को मिला है कि ऐसा नहीं कि केवल एक गांव के लड़के लड़की हों तभी उन्हें मारा जाता है इसके विपरीत यदि एक गोत्र हो अन्तर्जातीय हो या दूसरा धर्म हो ऐसी स्थिति में भी प्रेमी जोड़ों का कत्ल कर दिया जाता है। प्रेमी जोड़ों को मौत के घाट उतारने के फैसले खाप पंचायतें सुनाती हैं जिन्हें कोई कानूनी अधिकार नहीं है। जून2010 में अदालत ने अपने एक फैसले में खाप पंचायतों के फरमान पर होने वाली ऑनर किलिंग रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को सख्त कदम उठाने को कहा था फिर भी हालत जरा भी नहीं बदले। खाप पंचायतों का तानाशाही रवैया किसी से छिपा नहीं जहां गौत्र जाति और धर्म के नाम पर बर्बर तरीके से प्रेमी जोड़ों को कत्ल कर दिया जाता है। कई मामलों में तो यहां तक देखने को मिला है कि शादी के बाद जब बच्चे पैदा हो जाते हैं और कोई आरोप लगा देता है कि इनका एक ही गौत्र है तो उन्हें भाई बहन बनने पर मजबूर किया जाता है।

खाप पंचायतों का इतना दबदबा है कि कोई शख्स इनके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं कर पाते।  इन फैसलों की हर जगह आलोचना होती है और ये फैसले सामाजिक सद्भाव और भाईचारे को नुक्सान पहुंचा रहै हैं।

किसी भी सामाजिक संस्था को कानून अपने हाथ में लेने का हक नहीं है। उन्हें न तो किसी को मृत्युदंड के फैसले देने का अधिकार है, न किसी के मूलभूत मानवीय अधिकारों के हनन का हक है और न ही किसी को भाई बहन घोषित करने का अधिकार है। एक सभ्य समाज में ऐसे फैसले नहीं लेने चाहिए।

कहीं दफन हैं जो चिराग

धुंआ वहां से उठ रहा है

आओ मिलकर बैठे

करें गुफ्तगु समय कबतक नहीं

हमारा साथ देगा।

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