कोरोना कहर का महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?.

कोरोना कहर के चलते लॉक डाउन का एक बड़ा असर महिलाओं पर पड़ रहा है। महिलाओं पर कई तरह का दुष्प्रभाव पड़ रहा है और आगे भी पड़ने वाला है क्योंकि महिलाएं हमारे समाज में कई तरह के शोषण का शिकार होती हैं। इस महामारी के कारण, इस शोषण में वृद्धि देखी जाएगी।

पोषण: 

हम जानते हैं कि हमारे समाज में लड़कियों और महिलाओं को सबसे आखिर में और सबसे कम पोषण वाला खाना मिलता है। इसके पीछे पितृसत्तात्मक सोच है जो औरतों को पुरषों से कम समझता है। परिवार में सबके खाना खाने के बाद ही महिलाएं खाना खाती हैं; कई बार अगर खाना नहीं बचे तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता है। लॉक डाउन के इस समय में जब परिवारों में खाने और अन्य सुविधाओं की बेहद तंगी है तो उन्हें इस समय और भी ज़्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। देश की 70 फीसदी आबादी पहले ही 20 रुपये रोज़ाना से कम पर गुजारा करने को मजबूर है। ऐसे में इन परिवारों की महिलाओं के सामने पूरे परिवार के लिए भोजन जुटाने और खुद के पोषण का बड़ा सवाल पैदा हो गया है। 

काम का तिहरा बोझ: 

एक कविता में पढ़ा था कि औरतों का रविवार नहीं होता क्योंकि रविवार के दिन उन्हें रोज़ाना के घरेलू काम के अलावा बाकी परिवार वालों की खाने पीने की फरमाइशों के चलते और ज़्यादा समय किचन में गुज़ारना पड़ता है। ऐसे में जब परिवार के सभी सदस्य लगातार घर  में ही हैं तो उन पर किचन का और बोझ बढ़ गया है। इसके अलावा हर समय उन्हें झाड़ू पोछे की समस्या से भी दो चार होना पड़ रहा है। इसके अलावा कामकाजी औरतों को वर्क फ्रॉम होम भी करना पड़ रहा है। ज़्यादातर समय फोन और लैपटॉप पर रहने के कारण उनके घरों में तनाव और क्लेश बढ़ रहा है क्योंकि उनके परिजनों को उनका यह काम समझ नहीं आ रहा है। निम्नमध्यवर्गीय परिवारों में एक या दो फोन ही होने के कारण और बच्चों की क्लासें भी व्हाट्सऐप पर होने के कारण फोन बच्चों के साथ भी शेयर करना पड़ रहा है, जिसका असर उनकी परफॉर्मेंस पर भी पड़ रहा है। साथ ही बच्चों के आंगनवाड़ी केंद्र, प्ले वे और स्कूल-कॉलेज बंद होने के कारण बच्चों को भी उन्हें ही सम्भालना पड़ रहा है; साथ ही उन्हें स्कूल का काम कराने की ज़िम्मेदारी भी ज्यादातर उन्हीं के कंधों पर है। इस कारण वे अपने मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य और विकास पर भी ध्यान नहीं दे पा रही हैं।

घरेलू हिंसा: 

हमारे समाज में हर पांच वी महिला आमतौर पर, किसी न किसी तरह की हिंसा का शिकार होती है। ऐसे में जब सभी घरों में बंद है, उनमें कई औरतें और बच्चें ऐसे हैं, जो अपने ही परिवार के हिंसक सदस्यों के साथ बंद हैं। कई पुरुष लॉक डाउन का गुस्सा बच्चों और महिलाओं पर निकाल रहे हैं क्योंकि पितृसत्ता के चलते वह बच्चों और महिलाओं को अपनी जागीर समझते हैं और उन पर किसी भी तरह की हिंसा करने का अपना हक़ समझते हैं। लॉक डाउन के कारण उनको मदद भी पाने में मुश्किल हो रही है। राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार मार्च में महिलाओं के खिलाफ अपराध की फोन पर 257 शिकायतें और ईमेल पर 69 शिकायतें दर्ज की गई। यह उन महिलाओं का आंकड़ा है जो पढ़ी लिखी हैं या जिनकी पहुँच फोन और इंटरनेट तक है और जो महिला हेल्पलाइन के बारे में जानती हैं। लेकिन इसमें देश की बड़ी आबादी की मजदूर और किसान महिलाएं शामिल नहीं हैं, अगर उनका आंकड़ा भी इसमें शामिल हो तो यह तादाद हजारों में पहुँचेगी। अगर कोई महिला पुलिस तक भी पहुँच पा रही है, तो कोरोना के चलते उसकी शिकायत पर अभी कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है।

पहले समाज में पानी लाने, कपड़े धोने के लिए नदी- नहर, पोखर, कुएँ- सार्वजनिक नल और पनघट व बाहर खुले में शौच के लिए जाने के समय महिलाओं को अपनी बातें, अपने दुख दर्द शेयर करने के लिए समय और स्पेस मिल जाता था; लेकिन अब यह समय और स्पेस बिल्कुल खत्म हो गया है। घरों में देवरानी-जेठानी, माँ-बेटी, ननद-भौजाई या सास-बहू अपनी बातें कर पाती थी लेकिन लॉक डाउन के चलते सभी पुरुषों समेत पूरा कुनबा उसी जगह मौजूद रहने के चलते उनका बचा कुचा स्पेस और समय भी समाप्त हो गया है। जिसके कारण उन्हें अपनी बातें अपनी चिंताएं अपने मन के भीतर ही घोंटनी पड़ रही हैं।

पति द्वारा जबरन और असुरक्षित यौन सम्बन्ध:

हमारे समाज में पति द्वारा पत्नी की इच्छा के विरुद्ध जबरन सेक्स को बलात्कार नहीं माना गया और पत्नी को पति की सम्पत्ति माना जाता है। इसलिए औरत की यौनिकता पर उसके पति का ही नियंत्रण है। इस लॉक डाउन में पति सारा समय घर पर ही है, इसलिए इस अपराध में और बढ़ौतरी हो सकती है। 

यौन उत्पीड़न और यौन हिंसा:

कई जगह महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के केस भी सामने आ रहे हैं। गया की एक घटना में आइसोलेशन वार्ड में एक डॉक्टर द्वारा एक मरीज़ महिला के साथ बलात्कार किया गया। इस समय घरों में होने के कारण ज्यादातर लोग अधिकांश समय फोन और इंटरनेट पर व्यस्त हैं। इसका एक परिणाम यह भी है कि हम महिलाओं के खिलाफ अश्लील चुटकुले और साइबर यौन उत्पीड़न की घटनाएँ में वृद्धि देख रहे हैं। 

माहवारी प्रबंधन: 

इस समय क्योंकि ज़्यादातर घर के बाहर निकलने पर पाबंदी है तो इसका एक बड़ा नुक्सान माहवारी के समय लड़कियों और महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है क्योंकि वे सेनेटरी पैड लेने के लिए बाज़ार नहीं जा पाती। घर में सभी के होने के कारण वे खुलकर अपनी परेशानियों के बारे में बता भी नहीं कर पा रही हैं। बाकी परिवार के लोगों के लिए इस समय सेनेटरी पैड की बजाए अन्य जरूरतें प्राथमिकता में है, इसलिए भी लड़कियों की इन ज़रूरतों पर उतनी तवज्जो नहीं है। 

लॉक डाउन का यह समय सभी के लिए मुश्किल इम्तिहान की घड़ी है। इसलिए ज़रुरत है कि हमारे परिवारों, समाज और सरकार में इन सभी मुद्दों पर भी बात शुरू हो और इन मुद्दों पर गौर दिया जाए ताकि लॉक डाउन के और बढ़ने की परिस्थितियों में हम सभी के स्वास्थ्य और सामाजिक ज़रूरतों पर ध्यान दे सकें

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