सीखते सिखाते, हम चल पड़े हैं बदलाव के सफर पर।.

ब्रेकथ्रू में कंसलटेंट पद पर कार्य करते हुए मुझे पूरे पांच साल हो गये हैं। मेरी ज़िंदगी के ये पांच साल कितनी तेज़ी से सीखते हुए बीत गये, पता ही नही चला! यह पांच साल कितनी सारी चीज़ों को सीखते हुए, ट्रेनिंग लेते हुए, लिंग भेद भाव व लिंग चयन और अन्य मुद्दों की समझ बनाते हुए निकल गए। इससे मेरे काम करने के तरीके और बेहतर हुए और मुझे एक बेहतर ट्रेनर के रूप में ब्रेकथ्रू ने स्थापित किया।  

ब्रेकथ्रू के शुरुआती तीन साल स्कूल में बच्चों को लिंग भेद भाव के बारे में जागरूक करते हुए गुज़रे। खेल खेल में बच्चों की लिंग भेद भाव के बारे में समझ विकसित किया गया। मैंने अपने जीवन में जिस शिक्षा पद्धति से शिक्षा ली वो कही न कही दबाव बनाने वाली और डराने वाली रहीं। मगर ब्रेकथ्रू में तारों की टोली में जिस तरह बच्चों को समझाया जाता, वे बच्चे हमारा इंतजार करते रहते और बहुत खुश होते जब हम स्कूल में जाते। सभी टीचर्स और प्रिंसिपल भी तारीफ़ करते हुए कहते की हमारे बच्चे आपके पढ़ाने के तरीके से ज्यादा खुश रहते हैं।

बच्चों की जो समझ विकसित हुई उससे वे सवाल करने लगे, खुलकर अपनी बातों को रखने लगे और साथ में हर गतिविधि में खुलकर प्रतिभागिता करने लगे। ये सब मेरे लिए भी नया था। जहां मैं बच्चों को सिखा रहा था, स्वयं भी उनसे बहुत सारी चीजों को सिख रहा था। मेरे लिए सब नया और खुश करने वाला था क्योंकि जाने अनजाने मैंने काम का ऐसा क्षेत्र चुन लिया जिसमे मुझे काम करते हुए बहुत अच्छा लगने लगा।

पिछले पांच साल से जिन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था, वो शुरू में 7 वीं और 8 वीं क्लास में थे जिन्होंने अब 11 वीं और 12 वीं पास कर ली है। आज उन बच्चों को देखता हूँ तो उनमें एक अलग बदलाव देखता हूँ। वो अब बिना किसी डर अपनी बात को आगे रखते हैं। उनमें हिचकिचाहट खत्म हो गयी है और उनमें अपने अधिकारों के बारे में जागरूकता है।

ब्रेकथ्रू ने पिछले दो साल में समुदाय में काम करना शुरू किया। जहां स्कूल का काम करते हुए नया सिखा, उसी तरह समुदाय में भी बहुत कुछ सीखा। आंगनवाडी वर्कर्स के साथ बेहतर तालमेल स्थापित करते हुए, तारों की टोली के बच्चों के परिवार वालों के साथ बात करते हुए, हम स्वयं को उस गाँव का हिस्सा समझने लगे। युवाओं, महिलाओं और कई और अलग स्तर पर मीटिंग किये गए जिससे समुदाय में सभी के साथ एक बेहतर जान पहचान स्थापित हो गयी। इसी दौरान गाँव में किशोरी समूह ग्रुप भी बनाये गये जिससे ब्रेकथ्रू के कार्य का जिस तरह विस्तार हुआ, उसने हमे भी एक नये और बेहतर मुकाम पर खड़ा किया।

स्कूल में हम बदलाव साफ़ तौर पर देख रहे थे। जहां स्कूल में अलग अलग कार्यक्रमों में तारों की टोली के सभी बच्चे अपनी बात रखते, यही बात हमे समुदाय में किये हुए रात्री चौपाल कार्यक्रम “बड़ी सी आशा” में भी दिखाई दिया। उन्होंने कार्यक्रम को व्यवस्थित करवाने में मदद की वहीं दूसरी तरफ उन्होंने कार्यक्रम के बीच में गीत, कविताओं, भाषणों के माध्यम से अपनी बात भी रखी।  

अब लड़कियाँ भी अपनी आगे की पढ़ाई और अपने सपनों की बात खुलकर करने लगी हैं। तारों की टोली के कार्यक्रम का यह परिणाम रहा की इससे जुड़े माँ बाप अपने बच्चों को अब आगे कॉलेज की पढ़ाई के लिए भेजना चाहते हैं। वे भी उन्हें आगे पढ़ाकर उनके सपनों को पंख लगाने की बात करते हैं।  

इस कार्यक्रम की वजह से मैं एक बेहतर इन्सान के रूप में लोगों से जुड़ पाया। जब आप समुदाय में काम करते हो तो आपको दूसरों की बात को भी सुनना पड़ता है, उनकी भावनाओं से जुड़ना पड़ता है। हर किसी के पास सुनाने के लिए बहुत सारी कहानियाँ होती हैं, उन सभी ने संघर्ष किया होता है चाहे वो कोई महिला, पुरुष, किशोर या किशोरी हो। सभी से बात कर, सबके बारे में जानकर, मुझे बहुत अच्छा लगा और अब मैं अपने आप को एक जज़्बाती इन्सान के रूप में देख पाता हूँ।

बदलाव की जो प्रक्रिया इन बच्चों में शुरू हुई है वो एक बीज से वृक्ष की यात्रा की ओर बढ़ रही है। मेरी स्मृति पटल में हमेशा इन गाँव में किया काम जीवित रहेगा। जो भी कुछ मैंने सिखा वो यहीं से सिखा है और ब्रेकथ्रू के साथ साथ इन सबने मुझे सिखाने में बहुत सारी मदद की है। 

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