कोविड-19 के दौरान ऑनलाइन दुनिया में बढ़ती हिंसा.

कोरोना ने पूरी दुनिया में कोहराम मचाया हुआ है और पूरी दुनिया को घरों में बंद होने को मजबूर कर दिया है। जिसके चलते सभी यातायात तथा उत्पादन गतिविधियाँ बंद हैं। इस दौरान इंटरनेट तकनीकी एक बड़े सहारे के रूप में उभर कर सामने आई है। आज सरकारी विभाग, मीडिया, निजी विभाग समेत बहुत सारे सेक्टर इंटरनेट तकनीक के दम पर ही अपने काम को जारी रखे हुए हैं। ज्यादातर कंपनियां अपने कर्मचारियों से वर्क फ्रॉम होम के ज़रिये ही काम करवा रही हैं। स्कूल कॉलेज इत्यादि भी व्हाट्सप्प, वीडियो कॉल, हैंगआउट कॉल, ज़ूम इत्यादि के माध्यम से बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि यह युग सूचना संचार क्रांति का युग है।

लेकिन इसने हमारी निजता में भी सेंध लगाई है। इस समय अधिकांश लोग अपना समय फेसबुक, व्हाट्सप्प, टिकटॉक, इंस्टाग्राम, ट्विटर इत्यादि पर व्यस्त हैं लेकिन कुछ लोग इसका गलत फायदा उठा रहे हैं। लॉकडाउन की इस समयावधि में ऑनलाइन हरासमेंट की घटनाओं में भी उछाल आया है। कई हफ्ते पहले, ट्विटर पर बॉयज लाकर रूम नाम का एक इंस्टाग्राम ग्रुप ट्रेंड कर रहा था जिसके कई स्क्रीनशॉट वायरल हो रहे हैं। जहां कई स्कूली लड़के नाबालिक लड़कियों की तस्वीरें शेयर कर रहे हैं, प्राइवेट पार्ट्स को लेकर मज़ाक बना रहे हैं और साथ ही सामूहिक बलात्कार करने की प्लानिंग कर रहे हैं। इस वायरल ट्रेंड पर दिल्ली महिला आयोग ने संज्ञान लिया और दिल्ली पुलिस से इस मामले की जांच करने और इंस्टाग्राम से इस केस से जुड़ी डिटेल्स मांगी। जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने सोशल मीडिया की कई धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज किए हैं। क्या लॉकडाउन के दौरान सोशल मीडिया सेक्सुअल हरासमेंट का एक प्लेटफॉर्म बन चुका है?

संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशंस) ने लॉकडाउन के दौरान बच्चों के वर्चुअल मंच पर अधिक समय बिताने को लेकर आगाह करते हुए कहा कि इससे दुनिया भर में लाखों बच्चे ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का शिकार हो सकते हैं और साथ ही इंटरनेट पर डराने-धमकाने के मामले भी बढ़ सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र की बाल मामलों की एजेंसी यूनिसेफ ने कहा कि दुनियाभर में स्कूल बंद होने के कारण 15 लाख बच्चे प्रभावित हुए और अब वे वर्चुअल मंचों पर अधिक समय बिता रहे हैं।

बच्चों के वर्चुअल मंच पर अधिक समय बिताने से वे ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का शिकार हो सकते हैं और उनमें कुत्सित भावनाएं उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि कई लोग कोविड-19 का फायदा उठा रहे हैं। दोस्तों और साथियों से मिल ना पाने के कारण वे कामुक तस्वीरें भेज सकते हैं, जबकि ऑनलाइन अधिक एवं अव्यवस्थित तरीके से समय बिताने से बच्चों की संभवत: हानिकारक और हिंसक सामग्री तक पहुंच बढ़ सकती है, जिससे इंटरनेट पर डराने-धमकाने के मामले बढ़ने की आशंका भी अधिक हो सकती है।

यूनिसेफ ने ग्लोबल पार्टनरशिप टू एंड वायलेंस अगेंस्ट चिल्ड्रेन, इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन, यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर एक नया तकनीकी नोट जारी किया है, जिसका उद्देश्य सरकारों, शिक्षकों और अभिभावकों को सतर्क करना है ताकि वे यह सुनिश्चित करें कि कोविड-19 के दौरान बच्चों का ऑनलाइन अनुभव सुरक्षित और सकारात्मक हों। बच्चों के खिलाफ सेक्सुअल एब्यूज की सामग्री अपलोड करने के मामलों में भारत 19.87 लाख यानि कुल रिपोर्ट्स का 11.7% के साथ पहले पायदान पर है।

इस दौरान लड़कियों और महिलाओं के साथ भी ऑनलाइन हरासमेंट के मामले बढ़े हैं। ब्रिटेन में ससेक्स की एक एडवोकेसी एजेंसी के अनुसार ऑनलाइन स्टाकिंग के केसों में पिछले तीन महीनों के मुकाबले लॉक डाउन पीरियड के दौरान 26 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जहाँ ऑनलाइन हरासमेंट के केस बढ़ रहे हैं वहीं इंटरनेट के अलग अलग माध्यमों पर महिलाओं के खिलाफ चुटकुलों और वीडियो की भी बाढ़ आ हुई है। असल में हमारे समाज में महिलाओं को एक सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में ही देखा जाता है इसीलिए उनके खिलाफ यौन प्रताड़ना और यौन हिंसा की घटनाएँ सामने आती हैं। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए और सख्ती से कानून का पालन करना चाहिए। क्योंकि अब यह वक्त आ गया है कि हमको समझना होगा कि ऑनलाइन हरस्मेंट, हिंसा का ही रूप है।

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