Impact Stories, हिंदी 18th August, 2021

प्रीती के पक्के घर और पक्के आत्मविश्वास की कहानी।.

मैं ब्रेकथ्रू में कम्युनिटी डेवलपर के पद पर 12 दिसम्बर 2017 में चयनित हुई थी और जनवरी 2018 को पहली बार प्रीती से मिली। मुझे आज भी याद है की जब मैं प्रीती से पहली बार मिली तो उसमें स्नेहिल व्यवहार और जुझारू व्यक्तित्व की झलक मुझे मिली। प्रीती के गाँव कर्बला पंहुची तो पता लगा की ब्रेकथ्रू की ‘तारों की टोली’ की किताबें जिस स्थान पर रखी जाती हैं वहां की चाभी प्रीती के घर मिलेगी। इसी सिलसिले में मैं पहली बार प्रीती के घर गयी। प्रीती ने बहुत ज़िद की कि चाय पी कर जाऊं। मैंने उसके घर को एक सरसरी निगाह से देखा कि उसका घर छप्पर का है। कच्चा है और चूल्हे में चाय बना रही है। उस समय बारिश हो रही थी जिसके कारण लकड़ियां भी गीली थी और चूल्हा भी गीला था। मगर उसके स्नेहभरे आग्रह को देखते मैं चाय के लिए मना नहीं कर पायी। उसको चाय के लिए काफी परेशानी उठानी पड़ी मगर उसने चाय पिलायी। 

मैंने उससे बातो का सिलसिला शुरू किया तो पता लगा कि उसके पति शटरिंग का काम करते है मगर जब काम लगता है तब करते हैं वर्ना वो भी घर में रहते हैं। इसके कारण उसके घर में पैसों कि तंगी रहती है। उसका एक बेटा है जो कि अभी 5 साल का है। उसने बताया, ‘’दीदी मुझे कक्षा 8 तक कि शिक्षा मिली है और उसके बाद मेरी शादी हो गई।’’ यह भी बताया की उसको घर से बाहर ज्यादा दूर निकलने कि भी आज़ादी  नहीं है। वो केवल गांव में ही जाती है बाकि उसको कही आने-जाने कि आज़ादी  नहीं है। अगर उसको कहीं आना-जाना हो तो उसको अपने पति के साथ जाना होता है या मायके से उसका भाई आता है। तभी मुझे लगा कि कुछ तो करना चाहिये प्रीती के घर की स्थिति बेहतर बनाने के लिए मगर उस समय खामोश रह गयी। 

इसके बाद 26 जनवरी आने वाली थी तो समुदाय में उसकी तैयारी के उद्देश्य से मिलना हुआ। ब्रेकथ्रू की योजना अनुसार हमें महिलाओं व किशोरियों के मध्य चर्चा करवानी थी की उनके लिए आज़ादी का मतलब क्या है। इसके लिए प्रीती ने अगुवाई ली और मुझे सभी किशोरियों के और महिलाओ के घर लेजाकर मिलवाया। जब चर्चा हुई तो  हमारी उम्मीद से परे हमको जवाब मिले कि आज़ादी  मतलब घूमने की आज़ादी, खेलने की आज़ादी, खुलके बोलने की आज़ादी, गलत बातो को रोकने की आज़ादी। प्रीती  के उत्साह को देखते हुए मैंने उसको नारी संघ का हिस्सा बनाया। हमने अपनी नारी संघ की मीटिंग करना शुरू किया। और उसमे महिलाओं के शिक्षा, उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा पर चर्चा शुरू किया। 

जब बच्चों व किशोरियों की शिक्षा पर बात उठी तो निकल कर आया कि गांव का मुद्दा शराब है जिसके कारण महिलाओं व उनके बच्चो के साथ मार पीट प्रायः उनके घर के पुरुष करते हैं और इससे बच्चों की पढ़ाई भी बाधित होती है। प्रीती ने मेरे द्वारा प्रेरित करने पर ब्रेकथ्रू द्वारा आयोजित नारी संघ के प्रशिक्षण में प्रतिभाग किया। इस प्रशिक्षण के अंत में सभी ने अपने-अपने गाँव में कार्य करने की योजना बनायी। प्रीती के गाँव की योजना थी शराब के अभिशाप से गाँव को मुक्त कराना। इस मुद्दे पर भी प्रीती ने अगुवाई ली और महिलाओं को मुद्दे के विरोध में कार्य करने के लिए एकजुट करना शुरू किया। इसके बाद प्रीती ने ब्रेकथ्रू के माध्यम से महिलाओ का एक बड़ा ग्रुप बनाया जिसके लिए उसको मई और जून कि धुप में 5 से 6 किलो मीटर पैदल जाकर आस-पास के गाँव की महिलाओ से बात करना, उनके अन्दर हौसला जगाना, यह सब करना पड़ता था। 

मगर उसको ये पता था कि इससे भी पूरा काम नहीं होगा। इसलिए उसने प्रधान से बात किया। पहले प्रधान ने बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। मगर जब प्रधान जी को ये पता चला कि इस समूह के पीछे ब्रेकथ्रू भी काम कर रही है तब उन्होंने प्रीती की बातों को तवज्जो दिया। और प्रधान के साथ अन्य अधिकारियों का प्रीती के घर आना-जाना हुआ। इसके बाद पास के मीसा गाँव के स्कूल में DM जी का दौरा हुआ जिसके बाद प्रीती ने अपनी सारी समस्याओं को उनके सामने रखा और गांव में रैली निकाली गयी। पुलिस भी गाँव आई और गाँव में अवैध शराब बननी बंद की गयी। प्रीती व महिलाओं व किशोर-किशोरियों के प्रयास से इस शराब के मुद्दे से कर्बला व आस पास के गाँव में काफी राहत मिली। जो बच्चे स्कूल नहीं जा पाते थे घर के खराब माहौल के कारण वे नियमित स्कूल जाने लगे।

इसके बाद ही प्रीती को बहुत कष्ट देने वाली बात उभर कर आयी। उसका पति ही शराब की लत में पड़ गया और घर पर मार पीट भी करने लगा। शहर में काम न मिलने से वह शराब का आदि हो गया था। और प्रीती पर अपनी कुंठा निकालता। प्रीती  इस व्यवहार को सहने को तैयार न थी इसलिए वह अपने मायके चली गयी। किन्तु सोच-विचार करने पर उसने निर्णय किया की वह वापस जायेगी और अपना निजी जीवन भी सुधारेगी। प्रीती वापस आई। इस समस्या पर भी हमारी बात चीत हुई| प्रीती ने अब नौकरी करने की ठानी। उसने एक हॉस्पिटल में आया की नौकरी कर ली जिससे उसे प्रति माह 3000/- रुपये मिलने शुरू हो गए। फिर अपने बेटे का स्कूल में नामांकन करा लिया। इधर प्रीती में बदलाव व स्वावलंबी जीवन की जद्दोजहद देख कर उसके पति में बदलाव आया। उसने शराब पीना बंद कर दिया और प्रीती के घर के कार्यों में भी मदद करने लगा ताकि प्रीती नौकरी कर पाए। अब वह बच्चे को खुद तैयार कर के स्कूल छोड़ने जाता है। 

मेरे द्वारा समय-समय हमेशा महिलाओं के साथ मीटिंग करना और उनका उत्साहवर्धन करना होता रहा और सरकार की योजनाओं की भी समय समय पर जानकारी ब्रेकथ्रू की ओर से दी गयी। अब तक प्रधान जी को भी प्रीती की नेतृत्व क्षमता का पता लग चुका था। मेरे बात करने पर प्रधान जी ने उसको आवास योजना के अंतर्गत पक्का मकान बनाने के लिए उसको 1 लाख 20 हजार की धनराशि दिलवाई। जिससे उसका घर पक्का बना। इसके बाद प्रधान मंत्री जी की उज्ज्वला योजना के अंतर्गत गाँव में फॉर्म भरे गए। जिसके बाद गांव की कई महिलाओं ने बी.डी.सी. और इधर उधर के लोगों के माध्यम से उज्ज्वला योजना के लिए फार्म भरा। मगर प्रीती खुद से गोसाईगंज के शिवलर की एजेंसी में जाकर फॉर्म को भरा। अब प्रीती को लोग अच्छे से पहचानने लगे थे इस लिए उसने अपने फार्म को खुद से भरा। उसने अपना आधार कार्ड लगाया और बैंक कि पासबुक की कॉपी भी संलग्न की। और उसका नाम जब आया तो उसको बहुत ख़ुशी मिली और वह खुद अकेले जाकर अपनी सिलिंडर ले आई। उसको इसमें एक सिलिंडर, चूल्हा और रेग्लूटर मिला।अब उसको खाना बनाने में कोई दिक्कत नहीं होती है। 

अभी एक महत्वपूर्ण काम रह गया था। मकान तो पक्का बन गया पर घर पर शौचालय बनाने के पैसे नहीं बचे थे। प्रीती को माहवारी के समय काफी दर्द होता था मगर उसको कुछ समझ में नहीं आता था कि वो क्या करे।और सुबह जब वो शौच के लिए जाती तब सभी लोग भी निकलते, उसको ये सब बहुत ही बुरा लगता था। मगर पैसों के कारण वो कुछ नहीं कर पाती थी। ब्रेकथ्रू द्वारा स्वास्थ्य के मुद्दे पर रोशन तारा समूह के साथ प्रशिक्षण आयोजित किया गया। जिसमे सेंटर थोडा दूर होने के कारण हमारे रोशन तारा के सदस्यों को अपने साथ लेकर प्रीती सेंटर आयी। पौष्टिक भोजन, तिरंगा थाली के साथ माहवारी को ले कर भी चर्चा हुई। प्रीती ने इसके बाद अपनी शौचालय वाली समस्या को मेरे सामने रखा। मेरे प्रेरित करने पर उसने गांव में भी नारी संघ मीटिंग में इस मुद्दे को रखा और सभी के साथ चर्चा किया। 

इसके बाद ब्रेकथ्रू का एक अभियान चला –‘’तोड़ दो ताले –नहीं रहेगी शिक्षा से दूरी, स्वच्छ साफ़ शौचालय जरूरी’। ये अभियान विद्यालयों में उचित शौचालय सुविधा को लेकर था जिसे नारी संघ की महिलाओं ने संचालित किया। इसमें प्रीती ने अगुवाई की। अपने  ग्राम पंचायत के स्कूल के शौचालयों को देखा और उस पर उन्होंने स्कूल के शिक्षकों से बात किया। इसके बाद ब्रेकथ्रू की तरफ से जनसुनवाई की गई जिसमें उन्होंने अपनी बातों को विविध अधिकारियों के सामने रखा और कहा हम लोगो के घरो में भी शौचालय होने चाहिए। प्रधान और सचिव जी के साथ बातचीत भी हुई।और इसके बाद सरकारी योजना के अंतर्गत 12 हजार रुपये मिले शौचालय के लिए किंतु इतने में सही शौचालय नहीं बन पा रहा था। एक दूसरी गैर-सरकारी संस्था जो कि स्वास्थ्य व खुले में शौच के विरोध में काम करती है, उनसे भी बात की गई। इसके बाद उनको 8 हजार रुपये और मिले जिसके बाद 20 हजार रुपये से प्रीती  के घर एक अच्छा शौचालय बन पाया।

आज भी जब मैं प्रीती के घर जाती हूँ तो वह चाय पिलाये बगैर आने नहीं देती। पर आज दिल को उसके गैस वाले किचेन, पक्के कमरे व बरामदे वाले घर और प्रीती के आत्म विश्वास व ख़ुशी से भरे चेहरे को देखकर सुकून मिलता है की उसे कार्यक्रम से जुड़कर फायदा हुआ। जो कभी बेघर होने की कगार पर थी आज अपने पक्के घर की मालकिन है। यही नहीं गर्व और होता है जब याद करती हूँ वो पल जब आठवीं पास प्रीती को इंटरमीडिएट कॉलेज की छात्राओं व शिक्षकों के सामने अपनी कहानी बताने का मौका मिला, जब उत्तर प्रदेश सरकार के मिशन शक्ति कार्यक्रम के अंतर्गत एक ‘शक्ति योद्धा’ का बैज पहनाया गया। सच में हमारे किशोर-किशोरी सशक्तिकरण कार्यक्रम ने किशोरियों के साथ-साथ नारी संघ की महिलाओं का भी सशक्तिकरण किया है।

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