कट्टर सोच या प्यार: आप किसका साथ देंगे?.

इस कहानी की शुरुआत हर रोज़ की एक सुबह की तरह ही हुई। विपुल हाल ही में अपनी बारहवीं क्लास का इम्तिहान दिया था। हर लखनऊ के बच्चे की तरह, सपने उसके भी DU (दिल्ली विश्वविद्यालय) जाने के थे। आज उसका रिजल्ट आने वाला था। उसको चिंता इस बात की नहीं थी कि वो अच्छे नंबर लाएगा कि नहीं। चिंता इस बात की सताए जा रही थी कि उसका सेलेक्शन DU में होगा कि नहीं और पिताजी दाख़िला कैसे करवाएंगे।

विपुल ने पूरे लखनऊ में टॉप किया। अख़बारों में भी ख़बर छपी और दोस्तों को भी ताने सुनने को मिले। वो कहते हैं ना दोस्त अगर फेल हो जाये तो बुरा लगता है, पर दोस्त अगर फर्स्ट आ जाये तो ज़्यादा बुरा लगता है। तो उसके दोस्तों की ऐसी प्रतिक्रिया जायज़ थी। बहन ने भी अपनी दसवीं की परीक्षा में ९०% प्राप्त किये थे। माताजी और पिताजी फूले ना समा रहे थे। हर रिश्तेदार को २-२ डब्बे  मिठाई बाँट रहें थे। अब भैया! खुशियाँ भी तो डबल थी।

कुछ समय बाद विपुल का दाख़िला DU के नामी कॉलेज में हो गया। उसकी दुनिया बाक़ी लोगों की दुनिया से थोड़ी अच्छी चल रही थी कि एक रात जब वो अपनी माँ से दिन का और दिल का हाल बता के फ़ोन रखने ही जा रहा था, उसके फ़ोन में एक नोटिफ़िकेशन सा दिखा। उसने अपना फ़ोन खोला तो देखा एक लड़की का इंस्टाग्राम पर फॉलो रिक्वेस्ट आया था। वो देखते ही उसने फ़ौरन अपना इंस्टाग्राम एकाउंट को खोला और रिक्वेस्ट को झट से एक्सेप्ट कर लिया।

लड़की का नाम फ़ातिमा रिज़वी था, उसने भी उसको फॉलो बैक करने की रिक्वेस्ट भेज दी। तभी उसके फ़ोन में एक और मैसेज आता है – “hi”  ये देख विपुल को ख़ुशी भी होती है और अपने दोस्तों का किये जाने जैसा मज़ाक का

भी शक होता है। वो मन ही मन मुस्कुराता है और जवाब में भेजता है ‘hi’। बातचीत की शुरुआत के लिए दोनों एक दूसरे के हॉबी, पसंद-नापसंद, स्कूलिंग, कॉलेज वगैरह जैसी आम बातें करते हैं।

बात होने के बावज़ूद विपुल का शक दूर नहीं हुआ तो उसने लड़की से नंबर माँगा। उसने उस नंबर को सेव किया और फिर मैसेज किया ‘hi’। रात के बारह बज रहें थे। डबल टीक तो दिख रहा था पर देखा नहीं था। उसने दूसरा मैसेज भेजा, तब जाकर उसने मैसेज देखा और जवाब आया। अब बातों के साथ-साथ वौइस् मैसेज भी आने लगे। तब विपुल को लगा कि ये उसके दोस्तों की कोई करामात नहीं है।

बातें होते-होते, महीने, दो महीने, तीन महीने हो गए और विपुल को लड़की से प्यार होने लगा। विपुल को लगने लगा था कि लड़की भी कहीं ना कहीं उसको चाहने लगी है। फ़िर वो दिन आख़िरकार आ ही गया जिसका विपुल को इंतज़ार था। अंततः वो अब उस लड़की से मिलने वाला था, जिसको वो अपने मन में अपना मान बैठा है।

फ़ातिमा से मिलकर, विपुल को एक बात तो पता था कि वो उससे प्यार करने लगा है। कॉफ़ी पर मिलते-मिलते विपुल और फ़ातिमा को आधा साल बीत चुका था। फ़िर एक रोज़ हर शाम की मुलाक़ात की तरह ऐसे ही एक मुलाक़ात में विपुल ने फ़ातिमा को प्रोपोज़ कर दिया और फ़ातिमा ने भी झट से उसको हाँ में जवाब दे दिया। विपुल की तो ख़ुशी का कोई ठिकाना ना था। वो ख़ुशी के मारे इतना पागल हो गया था कि उसने झट से फ़ातिमा को गले लगा लिया। इन दोनों का प्यार गहरा पर गहरा होता गया।

विपुल और फ़ातिमा ने अब तो पार्ट टाइम जॉब भी एक ही जगह ढूँढ ली थी ताकि साथ-साथ रहें। वो सीधे कॉलेज से अपने काम पर आ जाते थे। प्यार का पता तो एक ना एक दिन माँ-बाप को भी चल ही जाता है। फ़ातिमा के माँ-बाप, ज़रा बिरादरी और संस्कृति से जुड़े होने का ढोंग करने वालों में से थे। जिनका मानना था की बिरादरी में ही शादी होनी चाहिए। वहीं विपुल के पिताजी भले ही सरकारी नौकरी वाले एक मिडिल क्लास आदमी थे, लेकिन उनकी सोच सुलझी हुई थी। उन्होंने सीधा समर्थन तो नहीं दिया विपुल को, पर मम्मी से शिकायत की और मम्मी ने विपुल और बहन से।

तो अब असली परेशानी फ़ातिमा के घर पर थी। उससे भी बड़ी परेशानी थी उनका आख़िरी साल था, कॉलेज में। उसके बाद उनको दुनियाँदारी का पाठ सीखना था जो वो शायद सीखना शुरू कर चुके थे। फ़ातिमा के माँ और पिता गुस्सा ज़रूर थे पर थोड़ी समझ होने की वजह से, फ़ातिमा को घर पर नहीं बिठा लिया था क्योंकि वो उनकी इकलौती संतान थी और वो उससे बेइंतेहा मोहब्बत करते थे। वो थोड़े नाराज़ ज़रूर थे पर अपनी सोच अपनी बेटी पर थोपना नहीं चाहते थे। आख़िर फ़ातिमा इतनी बड़ी थी कि अपनी जिंदगी के अहम निर्णय ले सके। बेमन से ही सही पर फ़ातिमा को अपने माता-पिता से भी मंज़ूरी मिल गयी थी।

कॉलेज की छुट्टियों में फ़ातिमा और विपुल अपने घर आ गए थे। माँ के हाथ की दुलार और पिता की प्यारी सी फटकार सुनने के लिए। उन दोनों ने एक दूसरे को अपने माँ और पिता से मिलवाया, विडिओ कॉलिंग की मदद से। विपुल की माँ और उसके पिताजी को फ़ातिमा बहुत पसंद आयी। पर फ़ातिमा के पिताजी अभी भी दिल में एक डर लिए बैठे थे कि बिरादरी वाले क्या कहेंगे और वही पुरानी कट्टर सोच और विचार से लड़ रहे थे।

फ़ातिमा को अब ये पता चल गया था की उसके पिता को विपुल पसंद तो आया है पर उनकी सोच उनको न बदलने पर मजबूर कर रही है। तो इसको देखते हुए, विपुल अपने माता-पिता को फ़ातिमा के माता-पिता से मिलवाता है और विपुल के पिता उनको मनाने में सफ़ल हो जाते हैं। फ़िर उन दोनों की शादी तय होने की बात पर, विपुल के पिता, बच्चों को समय देने के लिए अनुरोध करते हैं, ताकि दोनों अपनी ज़िंदगी में एक लक्ष्य पा सके और उसके बाद अपना परिवार शुरू करें।

इस बात को बीते चार साल हो गए थे और चार साल में बहुत कुछ बदल गया था। विपुल एक बड़ी सी मैनेजमेंट कंपनी में एक अच्छी ख़ासी पोस्ट पर था। फ़ातिमा भी HR डिपार्टमेंट में थी, उसी कंपनी के। विपुल और फ़ातिमा के दो बच्चे भी हो गए थे जो की जुड़वाँ थे। बच्चों की देखभाल के लिए दिल्ली में उनके नाना-नानी और दादा -दादी उनके साथ रहते थे और विपुल और फ़ातिमा को दो माँ और दो पिता का प्यार मिल रहा था। बहुत कुछ भले ही बदल गया हो पर विपुल और फ़ातिमा की मुस्कान और उनके मिलने की जगह की फ़ोटो आज भी वैसी ही थी।

आज भी उस पुरानी फ़ोटो, जो उन लोगों ने मेहरौली पार्क में खिंचवाई थी, उनके पुराने दिनों की याद दिलाता है और उनके माँ-बाप के समर्थन की एक अलग ही कहानी बयान करता है, जो कि कट्टरपंथी समाज के अस्तित्व पर एक पूर्ण विराम लगा देता है।

Note: 2018 में ब्रेकथ्रू ने हज़ारीबाग और लखनऊ में सोशल मीडिया स्किल्स पर वर्कशॉप्स आयोजित किये थे। इन वर्कशॉप्स में एक वर्कशॉप ब्लॉग लेखन पर केंद्रित था। यह ब्लॉग पोस्ट इस वर्कशॉप का परिणाम है।

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