कैसी दोस्ती, कैसा प्यार, जब हो बीच में जातिवाद का दीवार?.

मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था। मेरा स्कूल गाँव से काफ़ी दूर था और मैं रोज़ पैदल चलकर स्कूल जाया करता था। मैं अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता था। मेरे क्लास में उस साल एक नयी लड़की का दाख़िला हुआ। वह पढ़ने में काफ़ी तेज़ थी। वह हर वर्ष कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होती थी। उसका स्वभाव काफ़ी सौहार्द एवं स्नेह भाव से भरा था और वह एक धनी परिवार से थी। उसकी सुंदरता, अच्छा चरित्र एवं सुशील स्वभाव को देखकर, उसको लोगों से काफ़ी प्रोत्साहन भी मिलता था।

मैंने एक दिन उससे दोस्ती करने की बात सोची, किंतु लड़की ऊँची जाती की थी और मैं निम्न जाति का। मैं उस वक्त उदास होकर सोचने लगा पर बार बार मेरे आँखों के सामने उसकी हँसी, उसकी बोली, उसकी चाल एवं चेहरा नज़र आता था। कुछ समय बाद मैंने अपनी बात कह दी, क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी”।

उसने हाँ तो कह दिया पर इस दोस्ती में सिर्फ उसका निजी फायदा का सोच था। जब मेरी नवीं कक्षा की परीक्षा थी, मेरे पास पैसों की कमी होने के कारण कुछ पुस्तकें नहीं ख़रीद सका। तब मैंने उससे मदद माँगी, इस उम्मीद से कि शायद वो मुझे कुछ नोटबुक दे दे। पर कोई सहायता नहीं मिला। उसने सीधा कह दिया, “तुम्हारे परिवार की कमज़ोरी है”। मुझे दुःख हुआ। तब मुझे एहसास हुआ कि यह एक तरफ़ा प्यार था।

उसने आठवीं और नवीं कक्षा तक हमारे स्कूल से पढ़ाई की। उसके बाद उसने किसी दूसरे स्कूल में दाख़िला ले लिया। ये बात मुझे पहले से पता नहीं था। मेरा न पढ़ाई में मन लगता और न ही किसी काम में और न ही दोस्तों के साथ घूमने-फिरने में।

लेकिन एक दिन आया, जब हमारी बोर्ड की परीक्षा-सेंटर एक ही स्कूल में पड़ी। वहाँ जाते ही उससे नज़र मिल गयी। वहाँ अन्य स्कूल के बच्चे भी आए हुए थे। परीक्षा ख़त्म होने के बाद उसने मुझे आवाज़ दिया, मैं रुक गया और कहा – “नमस्ते”। उसने मुझसे फ़ोन नंबर माँगा और पूछा, “दे सकते हो न”? मैंने कहा, “हाँ बिल्कुल”। उसे मैंने अपना नंबर दे दिया, ताकि एक दूसरे के संपर्क में तो रहें!

दसवीं की परीक्षा का रिजल्ट आया। हम दोनों के नंबर में काफ़ी अंतर था। वह आगे की पढ़ाई के लिए शहर चली गयी। उसने वहाँ पढ़ाई अच्छे से की। मैंने गाँव से दूर एक कॉलेज में दाख़िला ले लिया। कॉलेज में पढ़ाई करते-करते मेरी नौक़री लग गयी। अचानक अपनी ड्यूटी जाते वक़्त एक दिन वह मुझे रास्ते में मिली। उसने मेरा हाल चाल पूछा।  

वह एक जीप में थीं। उसने मुझसे पूछा, “क्या तुम मुझसे शादी करोगे”? मैंने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। सब कुछ ठीक-ठाक था पर ऊँच-नीच जाति होने के कारण लड़की की शादी कहीं और हो गयी। १४ साल बाद भी हम केवल दोस्त ही रहें। उसकी नौकरी भी अच्छे पोस्ट पर थी और मैं उससे एक पद नीचे था।  

आज के युग में, मैं मानता हूँ कि निम्न जाति तथा निम्न परिवार के लोग ऊँची जाति के लोगों से ज़्यादा इज्ज़तदार तथा मददगार होते हैं। आज ज़्यादातर देखने को मिलता है कि अमीर परिवार के यहाँ कोई भी निम्न जाति के लोग जाते हैं तो उन्हें कोई बैठने तक को नहीं कहता। लेकिन वही निम्न परिवार के यहाँ सभी को सम्मान, व्यवहार और इज़्ज़त दिया जाता है।

कुछ साल बाद मेरी शादी हुई। शादी होने के बाद भी, उसी की यादें आँखों के सामने आती थी। हम दोनों की शादी तो नहीं हुई, लेकिन जब भी किसी रास्ते या फंक्शन में मिल जाते थे, तो बातें अच्छी तरह से हो ही जाती थी। अलग जाती के होने के वजह से हमारा प्यार दोस्ती ही रह गया।

Note: 2018 में ब्रेकथ्रू ने हज़ारीबाग और लखनऊ में सोशल मीडिया स्किल्स पर वर्कशॉप्स आयोजित किये थे। इन वर्कशॉप्स में एक वर्कशॉप ब्लॉग लेखन पर केंद्रित था। यह ब्लॉग पोस्ट इस वर्कशॉप का परिणाम है। 

Leave A Comment.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Get Involved.

Join the generation that is working to make the world equal and violence-free.
© 2024 Breakthrough Trust. All rights reserved.
Tax exemption unique registration number AAATB2957MF20214