माहवारी पर न टूटने वाला सन्नाटा क्यों ?.

“तुम इस बारे में बात ही क्यों करते हो? तुम पुरुष हो।”

“हमारा धर्म सिखाता है ऐसी चीज़ के बारे में खुल कर बात नही करनी चाहिए।”

“वेस्टर्न मीडिया के बहकावे में मत आइये, ये हमारी संस्कृति नही है।”  

और भी कई तरह के कमेंट, गालियों के साथ आपको मेरे उस फेसबुक पोस्ट पर मिल जायेंगे जिस पर मैंने एक फोटो के साथ बस इतना लिखा था:

 

“ये सेनेटरी पैड है, जो पिछले 3 दिन की ट्रेनिंग के दौरान मैंने ख़ुद बनाया है। हो सकता है आपको सुनने में अजीब लगे पर ये सच है। मैं पिछले दिनो ब्रेक्थ्रू और जतन संस्था के माध्यम माहवारी प्रबंधन ट्रेनिंग में रहा जिसमें मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।

माहवारी एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में हमेशा बंद कमरे में भी छुप कर बातें होती है, पर हक़ीक़त ये है कि इसके बारे में हमें बात करने की ज़रूरत है। इस दौरान महिलाओं को आपके सहयोग की कितनी ज़रूरत होती है, ये आपकी पार्टनर आपको अच्छे से समझा सकती है।

इस विषय में जानिए और समाज में फैली भ्रांतियों को दूर कीजिए।”

बस ये लिखना था और फेसबुक की ट्रोल आर्मी ने मुझे अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया। उनकी सब बातों में गालियों और मुझे धर्म से अधर्मी बताने के अलावा बातों को अगर संक्षेप में प्रस्तुत करें तो, उसका ये मतलब निकलता है कि माहवारी के मुद्दों पर पुरुषों को बात नही करनी चाहिए। ये सिर्फ़ महिलाओं का मुद्दा है और महिलाएं भी इसे छिपा कर रखे तो बेहतर है। आप ऐसा नही करते हैं तो आप मीडिया के बहकावे में आकर अपने समाज और संस्कृति के ख़िलाफ़ जा रहे है ।

सब कमेंट पढ़ने के बाद, मैं इस निष्कर्ष पर पंहुचा कि ऐसा लिखने में मैं उनकी गलती नही मानता हूँ, क्योंकि मैं खुद उस समाज का हिस्सा रहा हूँ। माहवारी के मुद्दे को समझने से पहले मैं भी इस सोच का हिस्सा रहा हूँ।

मैं पिछले 8 सालों से सोशल सेक्टर में हूँ और इस बीच हज़ारों बार मैंने “माहवारी” शब्द जिसको आम भाषा में महिना आना कहा जाता हैं सुना होगा। पर इस शब्द को सुन कर मैं हमेशा अपनी गर्दन झुका लेता था या उठ कर रूम से बाहर चला जाता था। महिलाओं को भी इस बारे में छुपकर ही बात करते देखा था और ना ही कभी अपने दोस्तों में इस विषय पर कोई चर्चा सुनी, तो बस ये लगा कि ये महिलाओं की छुपी हुई बात है और इस पर हमे बात नही करना चाहिए।

परन्तु दिसम्बर माह में मैंने ब्रेकथ्रू और जतन संस्था के माध्यम से उदयपुर में माहवारी प्रबंधन पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण में हिस्सा लिया। इस प्रशिक्षण में शामिल होने के बाद मैं पहली बार इस विषय को समझ पाया और किशोर अवस्था में होने वाले बदलाव, माहवारी प्रक्रिया, माहवारी चक्र, गीले सपने एंव माहवारी को लेकर सामाजिक भ्रांतियों को भी बेहतर तरीके से जान पाया।

प्रशिक्षण के दौरान मैनें महसूस किया कि एक महिला जब माहवारी से होती है तो उसे कितने दर्द का सामना करना पड़ता और इससे उन  पर कैसा मानसिक प्रभाव पड़ता है। ये वही वक़्त होता है जब लड़कियों और महिलाओं को सबसे ज़्यादा साथ और सहयोग की ज़रूरत होती है, और इसी वक़्त हम उसे सामाजिक भ्रांतियों में शामिल होकर घर, परिवार और समाज में सबसे कमज़ोर और गिरा हुआ मानने लगते है।

यदि 16-17 साल तक की लड़की को माहवारी नही होती है तो परिवार लड़की की चिंता में परेशान होने लगता है और माहवारी से होने पर उसे परिवार से बिलकुल अलग कर दिया जाता है। जब उसे सबके साथ, सहयोग और पोष्टिक खाने की ज़रूरत होती है तो उसे घर के एक कोने में कैद कर दिया जाता है। हर धर्म अपने ग्रंथो में महिला के गरिमा और सम्मान की बात करता है तो फिर हम कैसे एक महिला को उस वक़्त छोड़ देते है जिस वक़्त उन्हें सहयोग की ज़रूरत होती है।

एक ओर जहाँ आसाम के कामाख्यां देवी मंदिर में माहवारी रक्त को शुद्ध बताते हुए उसकी पूजा की जा रही है, वही दूसरी ओर केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष तक की लड़कियों और महिलाओं के प्रवेश पर इसलिए रोक लगा दी जाती है क्योंकि ये उम्र माहवारी की होती है। क्या हम इस तरह के दोहरे व्यवहार से महिला की गरिमा और सम्मान को ठेस नही पंहुचा रहे है? हमे सोचना होगा कि आखिर हम किस तरह का समाज बना रहे हैं और कैसी दुनिया की तरफ बढ़ रहे हैं ?  

मंदिर से लेकर घर तक और घर से कार्य स्थल तक, हर स्तर पर माहवारी में महिलाओं के साथ दोहरा व्यवहार आसानी से देखा जा सकता है। मेरा काम गारमेंट कारख़ानों से जुड़ा हुआ है और वहां भी महिलाएं माहवारी में अनेक चुनौतियों का सामना कर रही हैं। जब महिलाएं माहवारी में इस्तेमाल करने के लिए फ़ैक्टरी से कपड़ा लेती हैं तो इस पर उनके सुपरवाइज़र/पुरुष सहकर्मी का हँसने का व्यवहार महिला के असामान्य होने के संकेत देता, देखा जा सकता है।

इस बदलते हुए समाज में पुरुषों को भी इस विषय को समझना होगा और आगे आकर इस विषय पर चुप्पी तोड़ते हुए खुलकर बात करनी होगी। ऐसा करते हुए ही हम हम अपने परिवार और समाज को महिलाओं और लड़कियों के लिए बेहतर बना सकते है।  

एक छोटी सी शुरुआत करें, माहवारी के बारे में बात करें।

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